‘16 हजार बकाया, अधिकांश माफ’
अक्षिता (परिवर्तित नाम) ने मुरलीपुरा के एक निजी स्कूल से 11वीं कक्षा पास की, लेकिन करीब 16 हजार रुपए की फीस बकाया थी। स्कूल ने स्पष्ट कह दिया कि पहले फीस भरो, तभी टीसी मिलेगी। बच्ची कई दिन तक परेशान रही। फिर चाइल्ड हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कराई गई। काउंसलरों ने स्कूल प्रिंसिपल से बात कर परिवार की स्थिति का हवाला दिया और अधिकांश फीस माफ करवा दी।हेल्पलाइन पर शिकायत, मिली रियायत
सुनील (परिवर्तित नाम), जो सांगानेर के वाटिका क्षेत्र के एक निजी स्कूल में 9वीं का छात्र था। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से उसके पिता ने उसे सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाने की सोची और टीसी मांगी, परंतु स्कूल ने फीस बकाया होने का हवाला देकर देने से मना कर दिया। परेशान परिजन ने हेल्पलाइन से संपर्क किया। काउंसलरों की मध्यस्थता से शुल्क में काफी रियायत दिलवाई गई।बच्चों पर पड़ता है गहरा मानसिक प्रभाव
बचपन में ऐसे अनुभव आत्मविश्वास की कमी और पढ़ाई से दूरी ला सकते हैं। कई बार बच्चा खुद को दोषी मानने लगता है और तनाव में आ जाता है। हम ऐसे मामलों की विशेष निगरानी करते हैं और जरूरत होने पर शिक्षा विभाग को भी अवगत कराते हैं।अनिता मुहाल, सहायक निदेशक, जिला बाल संरक्षण इकाई
समझाइश से निकल रहा हल
ऐसे मामलों में लगभग 70 प्रतिशत प्रकरणों में हम स्कूल और अभिभावकों के बीच समझाइश से समाधान निकाल लेते हैं। दोनों पक्षों को साथ बैठाकर फीस रियायत पर सहमति बनवाते हैं। अधिकतर स्कूल मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हैं और बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता देते हैं। वैसे, बच्चे की टीसी रोकना नियमों के विरुद्ध है।दिनेश कुमार शर्मा, कॉर्डिनेटर, चाइल्ड हेल्पलाइन