ताकत और आदर्श दोनों जरूरी
भागवत ने कहा कि दुनिया केवल आदर्शों की नहीं, बल्कि ताकत की भी इज्जत करती है। इसलिए भारत को ऐसे रास्ते पर चलना होगा, जहां वह आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बन सके। उन्होंने कहा कि हमारी पहचान, हमारे मूल्य और संस्कृति ही हमारी ताकत हैं। “अगर आप अपनी पहचान खो देते हैं, तो बाकी सारे गुण भी अर्थहीन हो जाते हैं,” उन्होंने स्पष्ट किया।
शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान नहीं
आरएसएस चीफ ने भारतीय शिक्षा प्रणाली पर बोलते हुए कहा कि हमारी शिक्षा दूसरों के लिए त्याग और सेवा का भाव सिखाती है। उन्होंने कहा, सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति को स्वावलंबी बनाए, न कि केवल स्वार्थ की पूर्ति करे। भागवत ने कहा कि शिक्षा केवल स्कूलों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि घर और समाज का वातावरण भी उतना ही जरूरी है। समाज को ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जिसमें जिम्मेदार और आत्मविश्वासी पीढ़ियां तैयार हों।
‘भारत’ को भारत ही कहें
संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि हमें अपने देश के नाम को बदलने या अनुवाद करने की आवश्यकता नहीं है। भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है। हमें इसे बोलते और लिखते समय ‘भारत’ ही कहना चाहिए, इंडिया नहीं। उन्होंने कहा कि यह नाम हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का प्रतीक है।
भारतीय दर्शन पर आधारित शिक्षा की जरूरत
भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को भारतीय दर्शन और मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रणाली अपनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यही प्रणाली राष्ट्रीय प्रगति और सामाजिक सुधार की दिशा तय करेगी। मोहन भागवत का यह भाषण ऐसे समय में आया है जब शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की चर्चा जोरों पर है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भारतीय संस्कृति के अनुरूप ढालने की मांग लगातार उठ रही है।