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कटनी

दिव्यांगता को बनाया ताकत, मेहनत और आत्मनिर्भरता की बने मिसाल

भट्टा मोहल्ला निवासी संजय एक हाथ से दिव्यांग होकर भी कर रहे हैं गैस सिलेंडर की होम डिलीवरी, बना रहे हैं प्रेरणास्रोत

कटनीJul 27, 2025 / 08:15 pm

balmeek pandey

story of a self-reliant disabled person

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कटनी. जहां अधिकांश लोग छोटी-छोटी मुश्किलों से हार मान लेते हैं, वहीं संजय कुमार यादव जैसे लोग समाज को यह सिखाते हैं कि अगर जज्बा हो, तो कोई भी कमजोरी रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती। संजय, जो कि जन्मजात एक हाथ से दिव्यांग हैं, आज कटनी शहर में मेहनत और आत्मसम्मान के प्रतीक बन चुके हैं। भट्टा मोहल्ला निवासी संजय की उम्र 40 वर्ष है। वे बचपन से ही एक हाथ से दिव्यांग हैं। जीवन में असमानताओं और शारीरिक अक्षमता के बावजूद उन्होंने कभी परिस्थितियों के सामने घुटने नहीं टेके। 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद वे नौकरी की तलाश में निकले। कई प्रयास किए, आवेदन दिए, लेकिन शारीरिक अक्षमता की वजह से कहीं चयन नहीं हुआ।
उनके ग्राहक न सिर्फ समय पर सिलेंडर पहुंचने से खुश होते हैं, बल्कि उनकी मुस्कान और विनम्रता से भी प्रभावित रहते हैं। समाज में उनके लिए सम्मान की भावना है क्योंकि वे मेहनत से जीना जानते हैं। संजय यादव की कहानी यह प्रमाणित करती है कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि एक मानसिक स्थिति है। उनका जीवन यह सिखाता है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, यदि इरादे मजबूत हों तो कोई भी व्यक्ति समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकता है। वे न केवल एक अच्छे कामगार हैं, बल्कि समाज के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं।
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हार नहीं मानी, आत्मनिर्भर बनने की ठानी

लगातार असफलताओं के बावजूद संजय ने खुद को कमजोर नहीं समझा। उन्होंने ठान लिया कि वो किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे। अपने परिवार की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने के लिए उन्होंने गैस सिलेंडर की होम डिलीवरी का काम शुरू किया। मोटरसाइकिल से पूरे शहर में वे लोगों के घर-घर जाकर सिलेंडर पहुंचाते हैं।
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हर सिलेंडर पर होती है छोटी कमाई

संजय एक-एक सिलेंडर की डिलीवरी पर करीब 20 रुपये की कमाई करते हैं। दिनभर की मेहनत से जो पैसा इक_ा होता है, उसी से उनका घर चलता है। भले ही आमदनी बहुत बड़ी न हो, लेकिन उन्हें अपने आत्मसम्मान पर गर्व है। उनका मानना है कि मेहनत की कमाई सबसे पवित्र होती है, चाहे वो जितनी भी हो। संजय यादव जैसे लोग समाज में बदलाव की चुपचाप क्रांति ला रहे हैं। उनकी मेहनत, लगन और सकारात्मक सोच आज उन हजारों दिव्यांगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो हालात से हार मानकर घर में बैठे रहते हैं। संजय उन्हें सिखा रहे हैं कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो कोई भी दिव्यांगता आपको सफल होने से नहीं रोक सकती।

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