भारतीय बॉन्ड पर अचानक क्यों लट्टू हुए विदेशी निवेशक? कॉरपोरेट बॉन्ड में पैसा लगाते हैं तो ध्यान रखें ये बातें
प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों ने निवेशकों को आगाह किया है कि वे किसी भी बॉन्ड में पैसा लगाने से पहले उसकी क्रेडिट रेटिंग, जोखिम और संभावित रिटर्न को अच्छी तरह समझ लें।
सरकारी बॉन्ड्स में विदेशी निवेशकों का आकर्षण बढ़ा है।
विदेशी निवेशकों में भारतीय सरकारी बॉन्ड के प्रति आकर्षण फिर बढ़ने लगा है। इसकी वजह अगस्त में एक बार और रेपो रेट में कटौती की उम्मीद है। विदेशी निवेशकों ने पिछले एक महीने में 129 अरब रुपए के भारतीय बॉन्ड खरीदे हैं। इससे पहले चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले ढाई महीनों में विदेशी निवेशकों ने 330 अरब से ज्यादा की बिकवाली की थी। लेकिन, जून में खुदरा महंगाई में भारी गिरावट को देखते हुए निवेशक एक और कटौती का अनुमान लगा रहे हैं।
टीटी इंटरनेशनल एसेट मैनेजमेंट ने कहा, अगर महंगाई कम रही और विकास संबंधी चिंताएं बनी रहीं, तो अगस्त में रेपो दर में 0.25 फीसदी की कटौती संभव है। निवेशकों का कहना है कि भारत और अमरीका में ब्याज दरों के बीच बढ़ता अंतर भारतीय ऋण के आकर्षण को बढ़ाएगा।
कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश से पहले ध्यान रखें यह बात
अगर आप ऑनलाइन बॉन्ड प्लेटफॉर्म्स के जरिए कॉरपोरेट बॉन्ड्स में निवेश कर रहे हैं, तो आपको स्टॉक एक्सचेंजों की एडवाइजरी जान लेनी चाहिए। बीएसई और एनएसई ने निवेशकों को आगाह किया है कि वे किसी भी बॉन्ड में पैसा लगाने से पहले उसकी क्रेडिट रेटिंग, जोखिम और संभावित रिटर्न को अच्छी तरह समझ लें। एक्सचेंज ने कहा कि अगर निवेशक इन पहलुओं को सही से नहीं समझते, तो वे गलत निर्णय ले सकते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है। एक्सचेंज ने सुझाव दिया है कि निवेशकों की मदद के लिए म्यूचुअल फंड्स की तरह एक रेटिंग आधारित रिस्क-ओ-मीटर तैयार किया जा सकता है, जिससे वे यह जान सकें कि किसी बॉन्ड में कितना जोखिम और कितना संभावित रिटर्न है।
इन पहलुओं पर जरूर ध्यान दें
-निवेशक यह सुनिश्चित करें कि जिस प्लेटफॉर्म से वे बॉन्ड खरीद रहे हैं, वह सेबी के साथ रजिस्टर्ड हो। -बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग के साथ ही यह भी पता करें कि बॉन्ड जारी करने वाली कंपनी समय पर भुगतान करती रही है या नहीं।
-बॉन्ड की लिक्विडिटी, सेटलमेंट टाइमलाइन और इससे जुड़े टैक्स के नियम देखें। -यील्ड टू मैच्योरिटी (YTM) वह अनुमानित रिटर्न है, जो तब मिलेगा जब बॉन्ड को मैच्योरिटी तक होल्ड करते हैं। लेकिन यह गारंटीड रिटर्न नहीं होता है।
-वाइटीएम ब्याज दरों में बदलाव, बॉन्ड की लिक्विडिटी, बचा हुआ समय और इश्यू करने वाली कंपनी की साख पर निर्भर है। अगर बॉन्ड को परिपक्वता से पहले बेचते हैं, तो मिलने वाला रिटर्न वाइटीएम से अलग हो सकता है।
-निवेशक यह मान लेते हैं कि कूपन रेट (फिक्स्ड सालाना ब्याज) हमेशा मिलेगा, लेकिन एक्सचेंज ने चेताया है कि यह भी पूरी तरह जोखिम-मुक्त नहीं होता है। कूपन रेट कंपनी की वित्तीय स्थिति और क्रेडिट प्रोफाइल पर निर्भर है।
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