scriptKargil War: पाकिस्तानी DGMO ने कहा था- ‘क्या करूं, मुझे मियां साहब ने अकेले जूते खाने के लिए भेज दिया’ | During the Kargil warPakistani DGMO called Indian Army's DGMO and asked him to stop the war | Patrika News
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Kargil War: पाकिस्तानी DGMO ने कहा था- ‘क्या करूं, मुझे मियां साहब ने अकेले जूते खाने के लिए भेज दिया’

Kargil War के समय पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) को नियमों के विपरीत भारत के डीजीएमओ से बात करने अकेले ही भेज दिया था। इस पर पाकिस्तानी DGMO ने कहा था कि ‘क्या करूं, मुझे मियां साहब ने अकेले जूते खाने के लिए भेज दिया।

भारतJul 27, 2025 / 09:51 am

Pushpankar Piyush

PAK Army (Photo: IANS)

PAK Army (Photo: IANS)

Kargil War: करगिल युद्ध के अंतिम दौर में समर्पण के करीब पहुंचे पाकिस्तान की हालत इतनी खराब थी कि वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) को नियमों के विपरीत भारत के डीजीएमओ से बात करने अकेले ही भेज दिया था। तब पाक डीजीएमओ तौकीर जिया ने अपने भारतीय समकक्षी लेफ्टिनेंट जनरल एनसी विज के समक्ष लाचारी व्यक्त करते हुए कहा था, क्या करूं, मियां साहब (तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ), ने जूते खाने के लिए मुझे अकेले ही भेजा है।

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भारतीय DGMO ने किया खुलासा

तत्कालीन डिप्टी डीजीएमओ ब्रिगेडियर मोहन भंडारी ने उस दिन को याद करते हुए यह खुलासा किया। उन्होंने बताया कि भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर नवाज शरीफ ने पाक सेना के पूरी तरह पीछे हटने के बारे में बातचीत करने के लिए 11 जुलाई 1999 को अपने डीजीएमओ को अटारी बॉर्डर भेजा था।
वहां भारतीय डीजीएमओ, डिप्टी डीजीएमओ सहित पूरा दल मौजूद था लेकिन पाक डीजीएमओ तौकीर रजा अकेले आए। मिलिट्री प्रॉटोकॉल के तहत अकेले डीजीएमओ से मुलाकात नहीं हो सकती। भारतीय डीजीएमओ ने जब तौकीर के अकेले आने का कारण पूछा तो उन्होंने जूते खाने की टिप्पणी की। बाद में पाक रेंजरों के तीन अफसरों को एकत्र कर प्रतिनिधिमंडल बनाया गया और बातचीत हुई।

सब कुछ डिक्टेट किया लेकिन नहीं माने

तत्कालीन डिप्टी डीजीएमओ मोहन भंडारी के अनुसार बातचीत तीन घंटे तक चली जिसमें भारतीय अधिकारियों ने पाक को डिक्टेट किया कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। वह पूरी तरह सहमत थे लेकिन शर्त का पालन नहीं करते हुए पाकिस्तानी सैनिकों ने करगिल क्षेत्र से पीछे हटते हुए लैंड माइंस बिछा दी। भारत को पता चला तो 15 से 24 जुलाई तक नियंत्रण रेखा के पार उनकी चौकियों पर भारी गोलाबारी की गई। इसके बाद पाकिस्तान पूरी तरह परास्त हो गया। इससे युद्ध 25 जुलाई तक आधिकारिक रूप से समाप्त हुआ वरना यह 16 या 17 जुलाई को ही समाप्त हो जाता।

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