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बिहार मतदाता सूची विवाद: आधार और राशन कार्ड को न मानने पर ADR की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Bihar Elections: बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले याचिकाकर्ता एडीआर ने चुनौती दी है।

भारतJul 26, 2025 / 10:50 pm

Shaitan Prajapat

एडीआर का सुप्रीम कोर्ट में ECI को कड़ा जवाब (Photo-ANI and IANS)

Bihar Elections: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सोमवार को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई से पहले याचिकाकर्ता एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) की प्रक्रिया और उसके निर्णयों पर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं। ADR ने शनिवार को एक वकील के जरिए जानकारी दी कि उसने चुनाव आयोग द्वारा दायर जवाब के प्रत्युत्तर में कई तकनीकी और संवैधानिक खामियों को उजागर किया है। सबसे प्रमुख आपत्ति यह है कि आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य रूप से स्वीकृत दस्तावेजों को वोटर सूची में नाम जोड़ने के लिए मान्य नहीं माना गया है।

नकली दस्तावेजों का खतरा, फिर भी आधार खारिज क्यों?

ADR का कहना है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए जो 11 दस्तावेजों की सूची दी है, उनमें भी नकली या गलत तरीके से प्राप्त किए गए प्रमाण पत्रों का खतरा उतना ही मौजूद है, जितना आधार या राशन कार्ड में हो सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आधार कार्ड को सरकार अन्य प्रमाण-पत्रों के लिए मान्य मानती है, जैसे निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, पासपोर्ट आदि। ऐसे में चुनाव आयोग का इसे अमान्य करना अविवेकपूर्ण और विरोधाभासी निर्णय है।

ईआरओ को मिली विवेकाधीन शक्ति पर भी सवाल

ADR ने यह भी कहा कि निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (ERO) को काफी अधिक विवेकाधीन शक्तियाँ दी गई हैं, जबकि नाम हटाने या जोड़ने की प्रक्रिया के लिए कोई पारदर्शी और सुनिश्चित मानक प्रक्रिया तय नहीं की गई है। इससे मनमाने ढंग से फैसले लिए जाने की आशंका है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जिन मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं, उन्हें चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ अपील करने का पर्याप्त समय तक नहीं मिला है।

चुनाव से पहले समय की कमी से मतदाता होंगे प्रभावित

ADR ने अपने जवाब में कहा है कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने की संभावना है, और ऐसे में जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट रोल में नहीं हैं, उन्हें खुद को फिर से मतदाता सूची में शामिल कराने का समय नहीं मिलेगा। विशेष चिंता प्रवासी मतदाताओं को लेकर जताई गई है, जो अक्सर एक ही जनसांख्यिकी और निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रित होते हैं। यदि उन्हें ही सूची से बाहर किया गया तो चुनावी नतीजों पर गहरा असर पड़ सकता है।

असम और बिहार में दोहरा रवैया?

ADR ने चुनाव आयोग के दोहरे मानदंडों को भी निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा कि जब असम में SIR जैसी प्रक्रिया अपनाई गई थी, तब चुनाव आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा था कि नागरिकता की पुष्टि करना ERO का काम नहीं है। लेकिन बिहार के मामले में आयोग का रुख बिल्कुल उल्टा है। NGO ने यह भी आरोप लगाया कि वास्तविक मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, जबकि गैर-मौजूद लोगों के नाम जोड़े जा रहे हैं। साथ ही, वोटिंग खत्म होने के बाद वोट डालने की घटनाओं पर भी चुनाव आयोग की निष्क्रियता को उजागर किया।

चुनाव आयोग का जवाब: सिर्फ भारतीय नागरिकों को अधिकार

वहीं, चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा है कि उसके लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि केवल भारतीय नागरिकों के नाम ही मतदाता सूची में शामिल किए जाएं। यह जिम्मेदारी उसे अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत सौंपी गई है।

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