हाड़ौती में इस सुंदर एवं खूबसूरत से दिखने वाले पेड़ को कड़ाया या खड़ू के नाम से भी जाना जाता है। इसका गोंद दुनिया में सबसे अच्छा व महंगा बिकता हैं तथा कलात्मक सजावटी समान व फर्नीचर भी बनते हैं। जिससे इसकी बड़े पैमाने पर कटाई हुई और अब यह संकटग्रस्त प्रजाति में आ गया है। चांदनी रात में चांदी जैसी आभा बिखेरते तथा जंगल में अलग से दिखाई देने वाले कड़ाया (स्टेरकुलिया वेरेनस) की खुबसूरती देखकर अंग्रेजों ने इसे ’लेडी लेग’ का नाम दिया था। चमकीले आकर्षक सफेद रंग के दिखने के कारण ये पेड़ जंगल में जाने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
कड़ाया के पेड़ मध्यम आकार के होते है तथा 15 से 20 मीटर तक लंबे होते हैं। राज्य जैवविविधता बोर्ड के द्वारा गत वर्ष किए गए प्राचीन पेड़ों के खुले सर्वे में बूंदी जिले के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में कलदां माताजी के पास मोचडिय़ां के देवनारायण स्थान पर राज्य का सबसे बड़ा कड़ाया का पेड़ रिकॉर्ड किया गया है। इस पेड़ की लंबाई 16 मीटर है जो राज्य में एक रेकॉर्ड है। इस पेड़ को बूंदी के पर्यावरणविद पृथ्वी ङ्क्षसह राजावत ने सर्वे कर इसे राज्य में पहचान दिलाई।
देवेंद्र सिंह भाटी, उपवन संरक्षक एवं उपक्षेत्र निदेशक रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व (बफर जोन)