बता दें कि कुछ जिलों में जूली फ्लोरा को हटाने और ग्रासलैंड विकसित करने का काम भी शुरू किया गया था। लेकिन बाद में वित्त की कमी के कारण मामला अटक गया। इससे प्रदेश में जंगली बबूल का साम्राज्य बढ़ता गया।
इन जिलों को किया गया था शामिल
वन विभाग के अनुसार, पूर्व में केंद्र सरकार को भेजे गए प्रस्ताव में सवाईमाधोपुर, करौली, कोटा, बूंदी, बाडमेर, सीकर, भरतपुर, धौलपुर, जैसलमेर, अलवर, टोंक, डूंगरपुर, सिरोही, अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, उदयपुर, पाली और जयपुर जिलों को शामिल किया गया था।
इतना ही काम हो पाया
इसके लिए विभाग की ओर से कुल 954 करोड़ को बजट मांगा गया था। जूली फ्लोरा को हटाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से चरणबद्ध तरीके से बजट जारी किया गया। इस दौरान अजमेर में 2500 हेक्टयर, कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में दो वर्ग किमी क्षेत्र से, अलवर में 159 हेक्टयर, सवाईमाधोपुर में 600 हेक्टयर, टोंक में 400 हेक्टयर, बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व 200 हेक्टयर क्षेत्र से जूली फ्लोरा हटाया गया। लेकिन निरंतर बजट नहीं मिलने से यह मामला लटक गया।
जूलीफ्लोरा को हटाने का काम विगत कई साल से रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में किया जा रहा है। लेकिन कभी इसकी जड़ें रह जाती हैं तो कभी इसके बीज जमीन पर पड़े रह जाते हैं। इसके लिए सतत बजट की जरूरत है। साथ ही इसे हटाने के लिए जूलीफ्लोरा का लगातार उन्मूलन करना भी जरूरी है।
-अरुण शर्मा, डीसीएफ, अरण्य भवन, जयपुर