Kargil Vijay Diwas: करगिल विजय दिवस के 26 वर्ष
एक तो दुश्मन देश से सीमा पर और दूसरी अपनी घरेलू समस्याओं से। करगिल विजय दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उन बहादुर सपूतों को याद करने का दिन है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। रायपुर के दो पूर्व सैनिकों की कहानी हमें सिखाती है कि फर्ज के आगे अपना दुख भी पीछे छूट जाता है। एक ने पिता के साथ एक ही युद्धभूमि में लड़ाई लड़ी, लेकिन एक-दूसरे से मिल नहीं सके। दूसरे ने पिता को खो दिया, लेकिन उन्हें अंतिम विदाई भी न दे सका। यह केवल दो लोगों की नहीं छत्तीसगढ़ के जज्बे की पहचान है।
पिता भी तैनात थे युद्ध के मोर्चे पर, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी
मैं 255 रेजीमेंट में तैनात था। दुश्मन ऊंची पहाडिय़ों पर था, हम नीचे। लगातार 5 हते तक बिना नींद के दिन-रात गोले बरसाते रहे, लेकिन हौसला कभी नहीं टूटा। मेरे पिता भी उसी युद्ध में शामिल थे। वे पैदल सेना में थे और अगली पहाड़ी पर तैनात थे। मन करता था मिल लूं, पर फर्ज उससे बड़ा था। गर्व था कि एक ही परिवार के दो लोग मातृभूमि की रक्षा कर रहे थे। हम जहां भी जाते, बहनें राखियां लेकर आतीं, मिठाई खिलातीं। हमारी कलाइयों पर राखी बांधतीं। उस प्यार ने घर की कमी नहीं महसूस होने दी। हवलदार विपिन कुमार द्विवेदी तैनाती: सेक्टर 229 जीरो प्वाइंट, कारगिल निवासी: प्रोफेसर कॉलोनी
पिता के गुजरने के छह माह बाद मुझे उनके जाने का पता चला
मैं 28 जुलाई 1998 को सेना में भर्ती हुआ। ट्रेनिंग के बाद हैदराबाद से दिल्ली और फिर कारगिल पहुंचा। युद्ध अपने अंतिम चरण में था। ऑपरेशन विजय की सफलता में भागीदार बनना सौभाग्य की बात थी। लेकिन यह शुरुआत दुख के साथ हुई। भर्ती के एक सप्ताह बाद मेरे पिता का निधन हो गया। मुझे इसकी जानकारी छह महीने बाद मिली। अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया। लेकिन फर्ज ने मुझे पीछे नहीं हटने दिया। सेना से रिटायर होकर अब मैं रायपुर कलेक्ट्रेट में सहायक ग्रेड-3 के पद पर कार्यरत हूं। अंगेश्वर प्रसाद सिन्हा, 66 फील्ड रेजीमेंट निवासी रायपुर
लगेगी शहीद कौशल की मूर्ति
कालीमाता मंदिर चौक में एक महीने में करगिल के शहीद कौशल यादव की मूर्ति लगेगी। शुक्रवार को पुष्पाजंलि अर्पित करने के बाद डिप्टी सीएम अरुण साव ने यह घोषणा की। कौशल यादव 1999 में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उन्होंने 12 घुसपैठिए आतंकियों को मौत की नींद सुला दी थी।