scriptअब भी धुलती और प्रेस होती है शहीद की वर्दी, करगिल युद्ध के 26 साल बाद भी पूजनीय है जवानों की वर्दी | kargil vijay diwas: Even now the uniform of the martyr is washed and ironed in sikar | Patrika News
सीकर

अब भी धुलती और प्रेस होती है शहीद की वर्दी, करगिल युद्ध के 26 साल बाद भी पूजनीय है जवानों की वर्दी

करगिल विजय दिवस: 1999 में शहादत के बाद परिजनों ने सम्मान से सहेज रखी है शहीदों की वर्दी

सीकरJul 26, 2025 / 03:08 pm

pushpendra shekhawat

kargil vijay diwas
सचिन माथुर / सीकर। सरजमीं के लिए जान देने वाला जवान कभी मरता नहीं बल्कि जन जन के जहन व कण कण में जिंदा होकर अमर हो जाता है। यादों से लेकर यादगारों तक में उसकी यकीनी झलक दिखती है। इन्हीं जज्बातों के साथ वतन पर जान देने वाले वीरों की वर्दी को भी उनक परिजन सर्वोच्च सम्मान के रूप में सहेजते हैं। 1999 के करगिल युद्ध शहीदों के परिवारों ने भी ये परंपरा 26 साल से कायम रखी है। इनमें कुछ परिवार विशेष अवसरों पर वर्दी को धोकर व इस्त्री कर अमर शहीद को अर्पित करते हैं तो कई शहीद के बदन को छू चुकी उस वर्दी को पूजनीय मान जस की तस रखे हुए हैं। पेश है शहीदों की वर्दी पर स्पेशल रिपोर्ट..

पर्वों पर धुलती है वर्दी, होती है इस्त्री

करगिल य़ुद्ध में शहीद हुए सिहोट निवासी शहीद गणपतसिंह ढाका की वर्दी विशेष अवसरों पर आज भी धुलकर इस्त्री होती है। भाई महेश ने बताया कि होली, दिवाली सरीखे अवसरों पर शहीद की वर्दी को ससम्मान धोया जाता है। बकौल महेश देश के लिए प्राण देकर अमर हुए भाई गणपत अब भी उनके परिवार के जीवित सदस्यों की तरह ही है।

तो वर्दी से लिपट जाती है मां व वीरांगना

16 जून 1999 को शहीद हुए पलसाना निवासी सीताराम कुमावत की वर्दी मां गीता देवी व वीरांगना सुनिता देवी का अब भी संबल बनी हुई है। वीर जवान की विरह वेदना से जब भी वे विचलित होती है तो वर्दी से लिपट जाती है। वे कहती हैं कि शहीद के शरीर को छूकर शौर्य का प्रतीक बन चुकी वर्दी परिवार में पवित्र व पूजनीय मानी जाती है।

वर्दी पहने पिता आज भी मुखिया

हरिपुरा निवासी शहीद श्योदाना राम अब भी अपने परिवार में अब भी मुखिया की भूमिका में है। घर में प्रवेश व बाहर जाने के रास्त पर परिवार ने उनकी वर्दी पहने तस्वीर लगा रखी है। जिन्हें परिवार के सदस्य अब भी घर से जाने व आने की सूचना देते हैं। परिवार ने वर्दी को एक संदूक में बड़े सम्मान से सहेज रखा है।

सीकर के सात जवानों ने दी थी जान

करगिल युद्ध में सीकर जिले के सात जवानों ने शहादत दी थी। इनमें शहीद गणपतसिंह ढाका, सीताराम कुमावत व हरिपुरा निवासी श्योदानाराम के अलावा सेवद बड़ी निवासी शहीद बनवारीलाल बगडिय़ा, रामपुरा निवासी शहीद विनोद नागा, लक्ष्मणगढ़ के रहनावा गांव निवासी दयाचंद जाखड़, सिहोट छोटी निवासी शहीद गणपतसिंह ढाका, रोरू बड़ी निवासी शहीद जगमाल सिंह शामिल थे।

Hindi News / Sikar / अब भी धुलती और प्रेस होती है शहीद की वर्दी, करगिल युद्ध के 26 साल बाद भी पूजनीय है जवानों की वर्दी

ट्रेंडिंग वीडियो