प्रेमानंद महाराज कहते हैं क्षण में रूठना और क्षण में मान जाना हृदय के हल्केपन की निशानी है। इसी से ईर्ष्या और जलन जैसी भावनाओं को खाद पानी मिलता है। यह इस बात का संकेत है कि अंतःकरण (हृदय) मलिन हो चुका है, इसको न संभालने पर यह छोटी-छोटी बातों पर परेशान करेगा।
इसलिए इसको पवित्र करना होगा। गुरु के नामजप और भगवान की कथा पढ़ने सुनने से ही इसका इलाज संभव है। साथ ही भजन कीर्तन, सत्संग करना होगा, शास्त्रों का स्वाध्याय करें, इससे हृदय शीतल होगा। ऐसा होने पर कोई कड़वी बात कह दे, निंदा कर दे या अपमान कर दे तो भी व्यक्ति मुस्कुराकर उस पर ध्यान नहीं देता कि यह निंदक का अपना विचार है, हम क्यों उसके गलत रास्ते पर चलें। आइये जानते हैं आपकी कुछ अन्य परेशानियों का जवाब
कारोबार से आसक्ति हटाने और प्रपंच से बचने का क्या उपाय है
एक सवाल के जवाब में प्रेमानंद महाराज ने कहा कि कारोबार से आसक्ति नहीं हटाना है, क्योंकि ऐसा होने पर व्यक्ति कारोबार ही नहीं करेगा। उसे पूजा समझना होगा, ऐसे में आप प्रपंच में भी प्रवेश कर भी खुश रहेंगे, भले कष्ट मिले। समाज की सेवा भगवान की सेवा है। ऑफिस पूजा घर है, यहां ईमानदारी से समाज के लोगों को कैसे सुख मिले इस तरह की सोच, नामजप के साथ कार्य करें और कोई व्यसन न करें, शराब न पीएं, मांस न खाएं, बेईमानी न करें या कोई और गलत काम न करें तो यही भगवान की प्राप्ति करा देगा।