प्रधानाचार्य ने बताया शिक्षा में संवाद का नया अध्याय
विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. घनश्याम सिंह राठौड़ ने इस पहल को ‘पुस्तकालय के पन्नों में आवाज़ का संचार’ बताया। उन्होंने कहा कि अब हमारी लाइब्रेरी किताबों की अलमारी नहीं, बच्चों के विचारों और कल्पनाओं का मंच है। उन्होंने लाइब्रेरियन छापरवाल के इस प्रयोग को ‘सरकारी स्कूलों के लिए प्रेरणादायक मॉडल’ करार दिया।सिर्फ 1500 रुपए में शिक्षा में नवाचार
इस अनोखे प्रयोग के लिए महज़ 1500 रुपये में एक हेडफोन और जरूरी सामान जुटाया गया। मोबाइल पर कहानियां रिकॉर्ड की गईं, ऑनलाइन ऑडियो लाइब्रेरी से सामग्री ली गई और बच्चों को अपनी कहानियां रिकॉर्ड करने का मौका भी दिया गया। बच्चों को अब नानी-दादी की कहानियों जैसी आवाज़ों में कहानियां सुनने को मिल रही हैं।कक्षा 6 की नेहा कहती है कि ऐसा लगता है जैसे नानी मेरे पास बैठकर कहानी सुना रही हों। अब मैं रोज़ नई कहानी सुनती हूं। कक्षा 8 के देवराज ने ‘सफेद हिरणी’ कहानी सुनकर बताया कि अब मुझे लगता है कि कहानियां किताबों में ही नहीं, आवाज़ों में भी जिंदा रहती हैं।
एक कोना, हजार कहानियां- सुनने से सजीव हुई किताबें
छापरवाल ने अपने स्कूल की लाइब्रेरी के एक कोने को ‘ऑडियो स्टोरी कॉर्नर’ में बदल दिया। बस एक मोबाइल, एक हेडफोन और कुछ पोस्टरों के साथ इस कोने ने बच्चों की दुनिया बदल दी। अब वही बच्चे, जिन्हें किताब के पन्ने डराते थे, कहानियाँ सुनने के लिए लाइब्रेरी की तरफ दौड़ पड़ते हैं। कहानी सुनते-सुनते न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है बल्कि उनकी कल्पनाएँ भी पंख लगा रही हैं।एक कोना, कई फायदे
पढ़ने में कमजोर बच्चों के लिए सुनकर सीखने का अवसरअपनी कहानियां रिकॉर्ड कर खुद को अभिव्यक्त करने का मंच
भाषा कौशल और कल्पनाशक्ति का विकास