scriptयूपी में 42 जिलों के बिजली निजीकरण पर घमासान, CBI जांच की मांग, उठे ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के सवाल | Controversy over electricity privatisation in 42 districts of UP, demand for CBI investigation | Patrika News
लखनऊ

यूपी में 42 जिलों के बिजली निजीकरण पर घमासान, CBI जांच की मांग, उठे ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के सवाल

उत्तरप्रदेश में बिजली के निजीकरण को लेकर घमासान मचा हुआ है। उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री से तत्काल निजीकरण के फैसले को निरस्त करने की मांग की है। परिषद का तर्क है कि पूरा फैसला ही विवादों के घेरे में है।

लखनऊJul 30, 2025 / 08:34 pm

Avaneesh Kumar Mishra

बिजली निजीकरण मामले में CBI जांच की मांग।

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों में बिजली के निजीकरण को लेकर जारी घमासान अब और तेज हो गया है। उपभोक्ता परिषद ने इस पूरे मसौदे को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए इसकी सीबीआई जांच की जोरदार मांग उठाई है। परिषद का आरोप है कि निजीकरण का मसौदा तैयार करने वाली कंपनी, ग्रांट थॉर्नटन अमेरिका, खुद एक रेगुलेटर द्वारा दोषी पाई गई थी, इसके बावजूद एनर्जी टास्क फोर्स ने इस मसौदे को आगे बढ़ाया। यह स्थिति ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के गंभीर सवाल खड़े करती है, जिसकी पूरी जांच होनी चाहिए।

एनर्जी टास्क फोर्स पर सवाल

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष और राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि एनर्जी टास्क फोर्स ने निजीकरण से संबंधित निर्णय लेते समय कई बार ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के मामलों में ढिलाई बरती है। उनका कहना है कि यह सभी को पता है कि यह निर्णय उद्योगपतियों के दबाव में लिए गए हैं, लेकिन कौन से उद्योगपति इस पूरे मामले को अपने अनुसार संचालित कर रहे थे, इसका खुलासा होना बेहद जरूरी है। उपभोक्ता परिषद ने मांग की है कि एनर्जी टास्क फोर्स के अलग-अलग निर्णयों की पूरी जांच हो और जिन लोगों ने उद्योगपतियों के दबाव में ऐसा किया है, उन्हें दोषी ठहराया जाए।

सीएम से तत्काल निजीकरण रद्द करने की मांग

उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री से तत्काल निजीकरण के फैसले को निरस्त करने की मांग की है। परिषद का तर्क है कि पूरा फैसला ही विवादों के घेरे में है। परिषद ने पहले ही इस पूरे मसौदे के खिलाफ देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को एक विस्तृत प्रस्ताव भेजकर सीबीआई जांच की मांग उठाई थी। इस प्रस्ताव के बाद कैग ने भी निजीकरण की जांच शुरू कर दी है, और वहीं उपभोक्ता परिषद की लोक महत्व याचिकाओं के बाद विद्युत नियामक आयोग ने भी पूरे मसौदे में बड़े पैमाने पर वित्तीय और संवैधानिक कमियां पाई हैं।
बिजली विवाद।

ऊर्जा मंत्री ने भी झाड़ा पल्ला, CAG ने मांगी रिपोर्ट

अवधेश वर्मा ने दावा किया कि स्वयं माननीय ऊर्जा मंत्री ने हाल ही में बयान देकर निजीकरण प्रस्ताव से पल्ला झाड़ लिया है और कहा है कि यह प्रस्ताव एनर्जी टास्क फोर्स के स्तर पर तैयार हो रहा है। वहीं, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट मांगी है।

RSAC में भी उठा विरोध, आयोग पर जताई आपत्ति

परिषद ने कहा कि राज्य सलाहकार समिति (RSAC), जो ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी संवैधानिक समिति है, उसमें भी तीन सदस्यों ने निजीकरण का तीखा विरोध किया है। ऐसे में नियामक आयोग को 2003 के विद्युत अधिनियम के तहत अपनी भूमिका निभाते हुए सरकार को सलाह भेजनी चाहिए।

Adani केस का हवाला, समान मानकों की मांग

परिषद ने आयोग को यह भी याद दिलाया कि 2023 में नोएडा व गाजियाबाद में अडानी की याचिका पर आयोग की पूर्ण पीठ ने जो मानक तय किए थे, उन्हें वर्तमान निजीकरण प्रक्रिया में भी लागू किया जाए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो यह निजी घरानों को सीधा लाभ देने जैसा होगा।

RDSS योजना में ₹44,094 करोड़ की सहमति पर सवाल

परिषद ने आरडीएसएस (Reforms-based and Results-linked, Distribution Sector Scheme) के तहत 44,094 करोड़ रुपए की बिजली सुधार योजना को मंजूरी देने के निर्णय पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि दक्षिणांचल व पूर्वांचल डिस्कॉम में अकेले ₹16,000 करोड़ खर्च हो रहे हैं और इन्हीं कंपनियों का निजीकरण प्रस्तावित है। यानी सरकारी धन से कंपनियों को सुधारकर निजी हाथों में सौंपना जनविरोधी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कदम है।

दोषी कंपनी को ब्लैकलिस्ट क्यों नहीं किया गया?

अवधेश कुमार वर्मा ने सवाल उठाया है कि निजीकरण का मसौदा तैयार करने वाली ग्रांट थॉर्नटन अमेरिका को एक रेगुलेटर द्वारा दोषी पाया गया था और उस पर 40,000 डॉलर का जुर्माना भी लगा था। इसके बावजूद, उस पर ब्लैकलिस्टिंग की कार्रवाई क्यों नहीं की गई? वर्मा ने कहा कि इस मामले पर सब चुप्पी क्यों साधे हुए हैं और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, इसका खुलासा होना चाहिए।
बिजली विवाद।

जनता का विरोध और सरकार पर दबाव

वर्मा ने बताया कि बिजली दर की सुनवाई में पूरे प्रदेश में, चाहे वह प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस की बात हो, आगरा, केस्को कानपुर, मेरठ, या नोएडा पावर कंपनी की बात हो, सभी सुनवाई बैठकों में उद्योगपतियों, किसानों, नौजवानों, बुनकरों और कार्मिकों सहित सभी वर्गों ने निजीकरण का खुलकर विरोध किया है। जनता ने साफ कहा है कि किसी भी हालत में उत्तर प्रदेश में निजीकरण स्वीकार नहीं है। ऐसे में उपभोक्ता परिषद ने उत्तर प्रदेश सरकार से जनहित में इस जनभावना का सम्मान करते हुए अपने फैसले को वापस लेने का आग्रह किया है।
ट्विटर पर ऊर्जा मंत्री कार्यालय द्वारा जारी ट्वीट में भी यह स्पष्ट हो गया है कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एनर्जी टास्क फोर्स द्वारा निजीकरण के संबंध में निर्णय लिए जा रहे हैं। ऐसे में उपभोक्ता परिषद का मानना है कि उत्तर प्रदेश सरकार को सबसे पहले निजीकरण के फैसले को जनहित में निरस्त करते हुए पूरे प्रकरण की जांच करनी चाहिए और उपभोक्ता हित में अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

Hindi News / Lucknow / यूपी में 42 जिलों के बिजली निजीकरण पर घमासान, CBI जांच की मांग, उठे ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के सवाल

ट्रेंडिंग वीडियो