scriptMahila Dangal: 90 साल की उम्र में 16 की फुर्ती से पटखनी, दो सौ साल पुरानी रस्म में महिलाओं का जलवा, पुरुषों की पूरी तरह मनाही | Mahila Dangal: 90 year old woman wrestles with the agility of a 16 year old woman, women dominate the 200 year old ritual, men are completely prohibited | Patrika News
लखनऊ

Mahila Dangal: 90 साल की उम्र में 16 की फुर्ती से पटखनी, दो सौ साल पुरानी रस्म में महिलाओं का जलवा, पुरुषों की पूरी तरह मनाही

200-Year-Old Tradition: लखनऊ के अहमामऊ गांव में 200 साल पुरानी परंपरा ‘हापा’ आज भी पूरी श्रद्धा और जोश से निभाई जा रही है। इस आयोजन में पुरुषों की सख्त मनाही है और महिलाएं खुद अखाड़े में उतरकर कुश्ती लड़ती हैं, पूजा करती हैं और आयोजन संभालती हैं,एक सशक्त महिला समाज की जीती-जागती मिसाल।

लखनऊJul 31, 2025 / 05:45 pm

Ritesh Singh

Hapa Tradition Ahmamau Village फोटो सोर्स : Patrika

Hapa Tradition Ahmamau Village फोटो सोर्स : Patrika

Mahila Dangal 200-Year-Old Tradition: लखनऊ के पास स्थित अहमामऊ गांव में इन दिनों चर्चा का केंद्र बना है एक ऐसा आयोजन, जिसकी जड़ें दो सौ साल पुरानी हैं लेकिन जिसकी ताक़त आज की महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है। इस अनूठे आयोजन का नाम है ‘हापा’, और इसकी सबसे ख़ास बात यह है कि यहां मर्दों की सख़्त नो-एंट्री है। हर साल नागपंचमी के बाद गांव की महिलाएं इस परंपरा को पूरे जोश और श्रद्धा से निभाती हैं। न कोई पुरुष दर्शक, न आयोजक और न ही दखल, हर जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर और हर काम उनके हाथों से।
Hapa Tradition Ahmamau Village

ढोल-नगाड़ों से गूंजा गांव, जैसे देवी अवतरित हो गई हों

‘हापा’ के दिन सुबह से ही गांव में माहौल एक उत्सव जैसा हो जाता है। रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी महिलाएं ढोलक और नगाड़ों की थाप पर लोकगीत गाती हैं। जब महिलाएं अखाड़े की ओर बढ़ती हैं, तो हर कदम पर जैसे संस्कृति का कोई नया अध्याय लिखा जा रहा हो। यह आयोजन न सिर्फ एक दंगल है, बल्कि एक आस्था और बहनापे की परंपरा है, जिसे महिलाएं पीढ़ियों से निभाती आ रही हैं।
Hapa Tradition Ahmamau Village

90 साल की फुर्ती, 16 की रफ्तार

इस बार का आयोजन उस वक्त और ख़ास हो गया जब 90 साल की एक बुजुर्ग महिला ने युवाओं जैसी फुर्ती दिखाते हुए एक प्रतिभागी को कंधे से उठाकर ज़मीन पर पटक दिया। यह दृश्य देख पूरा गांव तालियों की गूंज से भर गया। कोई मुकाबला नहीं, कोई इनाम नहीं-फिर भी वहां सिर्फ जीत का जज्बा था। लोगों ने इस दृश्य को केवल कुश्ती नहीं, बल्कि महिला शक्ति की मूर्त अभिव्यक्ति बताया।
Hapa Tradition Ahmamau Village

रीछ देवी की पूजा, लेकिन गाली देकर

‘हापा’ की शुरुआत होती है ‘रीछ देवी’ की पूजा से  पर यहां पूजा का तरीका बिल्कुल अनूठा है। देवी को बुलाने और प्रसन्न करने के लिए गाली दी जाती है। यह कोई अपमान नहीं, बल्कि लोक मान्यता है कि रीछ देवी गाली सुनकर ही प्रकट होती हैं और कृपा बरसाती हैं। पूजा की टोकरी में फल, सिंदूर, श्रृंगार सामग्री, बताशे और मिट्टी के खिलौने रखे जाते हैं। साथ ही गूंगे देवी, दुर्गा और भुईंया देवी की भी आरती होती है। पूजा के बाद ढोलक पर महिला गीत गाए जाते हैं जिनमें हास्य, व्यंग्य, परंपरा और समाज की झलक होती है।
Hapa Tradition Ahmamau Village

मर्दों की एक इंच भी एंट्री मना

‘हापा’ की सबसे ख़ास बात यह है कि इस आयोजन में पुरुषों की पूरी तरह से मनाही है। यहां तक कि कोई पुरुष अगर छत पर भी खड़ा दिखाई दे जाए, तो उसे हटने को कह दिया जाता है। आयोजन में सिर्फ महिलाएं और छोटे बच्चे ही शामिल हो सकते हैं। यह न कोई विद्रोह है, न कोई आंदोलन -बल्कि यह परंपरा और आत्मसम्मान का त्यौहार है, जिसमें महिलाएं देवी का रूप लेकर मैदान में उतरती हैं।
Hapa Tradition Ahmamau Village

अखाड़े में बहनापा, कुश्ती में अपनापा

कुश्ती के मुकाबले भी यहां खास अंदाज़ में होते हैं। कोई रेफरी नहीं, कोई स्कोर नहीं- सब कुछ आपसी समझ और इज्ज़त पर टिका होता है। हारने वाली महिला मुस्करा कर उठती है, और जीतने वाली उसे गले लगाकर सम्मान देती है।
इस बार शिखा सिंह और गीता कुमारी के बीच दिलचस्प मुकाबला हुआ। शिखा हार गईं, लेकिन उन्होंने कहा ,”ये हार नहीं, हमारे भीतर की शक्ति को पहचानने का मौका है।”
Hapa Tradition Ahmamau Village

200 साल की परंपरा, अब बेटियां संभाल रहीं कमान

‘हापा’ की वर्तमान आयोजक विनय कुमारी बताती हैं कि उन्होंने यह परंपरा अपनी दादी जनाका और मां विलासा से सीखी। अब उनकी बेटी शीला और पोती भी आयोजन की बागडोर संभालने को तैयार हैं। “हमारी बेटियां अब बेटों से कम नहीं। अगली बार मेरी बड़ी बेटी पूरा इंतज़ाम संभालेगी,”– विनय कुमारी (आयोजक)

बिना मंच, बिना नारे – सशक्तिकरण की असली तस्वीर

‘हापा’ किसी NGO का प्रोजेक्ट नहीं, किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं यह उस समाज की मिसाल है, जहां महिलाओं को बिना दिखावे के पूरा अधिकार और नेतृत्व मिल रहा है। वे पूजा करती हैं, कुश्ती लड़ती हैं, लोकगीत गाती हैं और कार्यक्रम का संचालन भी करती हैं ,बिना किसी पुरुष के सहयोग के।यह एक ज़िंदा उदाहरण है कि जब महिलाओं को जगह दी जाती है, तो वे हर जिम्मेदारी बखूबी निभा सकती हैं।

इतिहास से जुड़ी जड़ें, अब भविष्य की ओर बढ़ता कदम

कहते हैं इस परंपरा की शुरुआत 200 साल पहले बेगम नूरजहां और कमरजहां ने की थी। उस दौर में महिलाओं को समाज में खुलकर जीने की इजाज़त नहीं थी। तब इस परंपरा को शुरू कर महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत करने की कोशिश की गई। आज विनय कुमारी के पास मुगल काल के सिक्के और प्रतीक मौजूद हैं जो इस परंपरा की गवाही देते हैं।
Hapa Tradition Ahmamau Village

सरकार से है उम्मीद -मिले स्थायी अखाड़ा

विनय की बेटी शीला कहती हैं कि अब यह आयोजन इतना बड़ा हो गया है कि अखाड़ा छोटा पड़ने लगा है। “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से अपील है कि इस ऐतिहासिक परंपरा के लिए एक स्थायी अखाड़ा बनवाया जाए ताकि हमारी बेटियां सही ट्रेनिंग ले सकें और गांव का नाम रोशन करें।”

अंत में -सिर्फ रस्म नहीं, पहचान है ‘हापा’

‘हापा’ सिर्फ एक परंपरा नहीं, महिला नेतृत्व, परंपरा और आस्था का मिलाजुला प्रतीक है। यहां मर्दों की कोई जगह नहीं, लेकिन औरतों की मौजूदगी ने हर बंदिश को तोड़ दिया है। वे सिर्फ अखाड़े में नहीं लड़ रहीं – वे समाज के हर उस ढांचे से लड़ रही हैं, जिसने उन्हें कमतर समझा। और वे जीत भी रही हैं सम्मान से, श्रद्धा से और पूरे गांव के साथ।
Hapa Tradition Ahmamau Village

यह कहानी सिर्फ

अहमामऊ की नहीं – यह उन हर गांव, शहर और देश की है जहां महिलाएं बिना किसी मंच के इतिहास रच रही हैं। 

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