आचार्य: हां, नई पौध अब जागरूक हो रही है। वे जान रहे हैं कि सुख केवल भौतिक चीजों में नहीं, बल्कि भीतर की शांति में है।
आचार्य: बहुत अहम। अगर माता-पिता सजग होंगे, तभी बच्चे संस्कारित होंगे। वे ही पहले गुरु होते हैं। माता-पिता जागरूक रहेंगे तो बच्चों की जड़ें मजबूत होंगी। परंपरा, भाषा और संस्कृति तभी टिकेगी जब घर से ही सही संस्कार मिलेंगे।
आचार्य: एक ही बात को कई दृष्टिकोण से, सरल शब्दों में और उदाहरणों के साथ कहने की कला होनी चाहिए। तभी युवा समझ पाएगा कि धर्म जीवन का हिस्सा है, कोई बोझ नहीं। आज का युवा तर्क चाहता है। हम उसी भाषा में बात करते हैं जो उसे समझ आती है। धर्म केवल किताबों में नहीं, व्यवहार में होना चाहिए। इसी सोच के साथ धर्म की बातें हम जीवन से जोड़ते हैं। हर व्यक्ति की समझ अलग होती है। एक ही बात को 15-20 वाक्यों में कहने से हर वर्ग के व्यक्ति तक उसका सार पहुंचता है।
आचार्य: समाज की स्थिरता के लिए जरूरी है कि विवाह अपनी जाति में ही हो। इससे सामाजिक संतुलन बना रहता है। समाज का संतुलन बनाए रखना जरूरी है। हर जाति की अपनी परंपराएं हैं। इसलिए विवाह भी उसी वर्ग में हो तो बेहतर है।
आचार्य: क्योंकि उसे मार्गदर्शन नहीं मिला। उसे रोल मॉडल चाहिए, न कि केवल उपदेश। दिशा नहीं है, लक्ष्य नहीं है। जब तक आत्मबोध नहीं होगा, भटकाव रहेगा। हमारे संस्कार ही उन्हें सही दिशा दे सकते हैं।
आचार्य: जब तक बच्चा मानसिक रूप से परिपक्व न हो, उसे मोबाइल से दूर रखना ही बेहतर है। हिंसक कंटेंट उनके कोमल मन पर बुरा असर डालता है। हिंसक सामग्री बालमन को विकृत करती है।
आचार्य: दिखावा आत्मा की सच्चाई को ढक देता है। सरल और सच्चा जीवन ही सबसे श्रेष्ठ हैैं। दिखावा आत्मिक विकास में बाधा है। जो सादगी से जीता है, वही सच्चा सुख पाता है।
आचार्य: पहले खुद अपनाइए, फिर दूसरों को बताइए। संस्कृति को किताबों में नहीं, व्यवहार में बचाना होगा। सवाल: आप सात्विक जीवनशैली की बात करते हैं, उसका आज के युग में क्या महत्व है?
आचार्य: बहुत जरूरी। आज मिलावटी खाना, कैमिकलयुक्त सब्जियां हमारे शरीर और मन दोनों को दूषित कर रही हैं। सात्विकता से शुद्धता आती है। जितना हो सके, सात्विक जीवनशैली अपनाइए। घर में उगाइए, सादा खाइए। शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहेंगे।
आचार्य: मैकाले की शिक्षा पद्धति ने धर्म और भारतीयता को तोड़ा है। आज जो पढ़ाई हो रही है, वह केवल नौकरी तक सीमित है, जीवन मूल्यों की बात नहीं करती। मैकाले की शिक्षा हमें हमारी जड़ों से काटती है। वह धर्म, संस्कृति और परंपरा से दूर ले जाती है। हमें अपनी जड़ें बचानी होंगी।
आचार्य: युवाओं को आत्मनिरीक्षण और आत्मविकास का अवसर देना। दस सेमिनार होंगे, जिनमें ध्यान, नैतिकता, भाषा और संस्कृति जैसे विषयों पर सत्र होंगे। इनमें चरित्र निर्माण, संयम, तकनीक का सदुपयोग जैसे विषयों पर चर्चा होगी।
आचार्य: खुद को पहचानो। अपनी भाषा, संस्कृति और आत्मा को मत भूलो। सात्विक बनो, सजग बनो।