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हुबली

आज का युवा शांति एवं स्थिरता की तलाश में, इसीलिए आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहा झुकाव

आज का युवा जीवन की सच्चाई को समझने लगा है। वह दिखावे और बाहरी चमक से हटकर शांति और स्थिरता की तलाश में है। दीक्षा उसे एक उद्देश्य, एक दिशा देती है। पढ़े-लिखे युवा खुद से सवाल कर रहे हैं—क्या यही जीवन है? यही दौड़-भाग? इसीलिए वे आध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं और दीक्षा लेने का निर्णय ले रहे हैं। आचार्य विमल सागर सूरीश्वर ने राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में धर्म-ध्यान, संस्कार-संस्कृति, भाषा-विचार समेत विभिन्न मुद्दों पर बात की। प्रस्तुत हैं राजस्थान पत्रिका के अशोक सिंह राजपुरोहित के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

हुबलीJun 28, 2025 / 11:31 am

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

आचार्य विमल सागर सूरीश्वर

आचार्य विमल सागर सूरीश्वर

सवाल: आप हमेशा मातृ भाषा के महत्व पर जोर देते हैं। ऐसा क्यों?
आचार्य:
अपनी भाषा हमारी पहचान है। अगर हम अपनी भाषा भूल जाएंगे, तो संस्कृति भी साथ चली जाएगी। बच्चों को शुरू से मातृ भाषा में सिखाइए, फिर देखिए उनकी सोच कितनी मजबूत होती है। क्योंकि अपनी भाषा में ही सोच स्पष्ट होती है। मातृभाषा केवल शब्द नहीं, वो हमारी संस्कृति की आत्मा है। अगर भाषा बचेगी, तो परंपराएं और संस्कार भी बचेंगे।
सवाल: क्या आज का युवा आध्यात्मिक जीवन शैली से जुड़ पा रहा है?
आचार्य:
हां, नई पौध अब जागरूक हो रही है। वे जान रहे हैं कि सुख केवल भौतिक चीजों में नहीं, बल्कि भीतर की शांति में है।
सवाल: माता-पिता की भूमिका आप कैसे देखते हैं?
आचार्य:
बहुत अहम। अगर माता-पिता सजग होंगे, तभी बच्चे संस्कारित होंगे। वे ही पहले गुरु होते हैं। माता-पिता जागरूक रहेंगे तो बच्चों की जड़ें मजबूत होंगी। परंपरा, भाषा और संस्कृति तभी टिकेगी जब घर से ही सही संस्कार मिलेंगे।
सवाल: धर्म को आप आधुनिक अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। यह कैसे संभव होता है?
आचार्य:
एक ही बात को कई दृष्टिकोण से, सरल शब्दों में और उदाहरणों के साथ कहने की कला होनी चाहिए। तभी युवा समझ पाएगा कि धर्म जीवन का हिस्सा है, कोई बोझ नहीं। आज का युवा तर्क चाहता है। हम उसी भाषा में बात करते हैं जो उसे समझ आती है। धर्म केवल किताबों में नहीं, व्यवहार में होना चाहिए। इसी सोच के साथ धर्म की बातें हम जीवन से जोड़ते हैं। हर व्यक्ति की समझ अलग होती है। एक ही बात को 15-20 वाक्यों में कहने से हर वर्ग के व्यक्ति तक उसका सार पहुंचता है।
सवाल: अंतरजातीय विवाहों को लेकर आपकी क्या राय है?
आचार्य:
समाज की स्थिरता के लिए जरूरी है कि विवाह अपनी जाति में ही हो। इससे सामाजिक संतुलन बना रहता है। समाज का संतुलन बनाए रखना जरूरी है। हर जाति की अपनी परंपराएं हैं। इसलिए विवाह भी उसी वर्ग में हो तो बेहतर है।
सवाल: आज का युवा वर्ग क्यों भटक रहा है?
आचार्य:
क्योंकि उसे मार्गदर्शन नहीं मिला। उसे रोल मॉडल चाहिए, न कि केवल उपदेश। दिशा नहीं है, लक्ष्य नहीं है। जब तक आत्मबोध नहीं होगा, भटकाव रहेगा। हमारे संस्कार ही उन्हें सही दिशा दे सकते हैं।
सवाल: आज बच्चों के हाथ में मोबाइल है। हिंसक वीडियो पर आपकी क्या राय है?
आचार्य:
जब तक बच्चा मानसिक रूप से परिपक्व न हो, उसे मोबाइल से दूर रखना ही बेहतर है। हिंसक कंटेंट उनके कोमल मन पर बुरा असर डालता है। हिंसक सामग्री बालमन को विकृत करती है।
सवाल: समाज में दिखावे का चलन बढ़ रहा है। इस पर क्या कहना चाहेंगे?
आचार्य:
दिखावा आत्मा की सच्चाई को ढक देता है। सरल और सच्चा जीवन ही सबसे श्रेष्ठ हैैं। दिखावा आत्मिक विकास में बाधा है। जो सादगी से जीता है, वही सच्चा सुख पाता है।
सवाल: भारतीय संस्कृति को कैसे बचाया जा सकता है?
आचार्य:
पहले खुद अपनाइए, फिर दूसरों को बताइए। संस्कृति को किताबों में नहीं, व्यवहार में बचाना होगा।

सवाल: आप सात्विक जीवनशैली की बात करते हैं, उसका आज के युग में क्या महत्व है?
आचार्य:
बहुत जरूरी। आज मिलावटी खाना, कैमिकलयुक्त सब्जियां हमारे शरीर और मन दोनों को दूषित कर रही हैं। सात्विकता से शुद्धता आती है। जितना हो सके, सात्विक जीवनशैली अपनाइए। घर में उगाइए, सादा खाइए। शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहेंगे।
सवाल: आप मैकाले की शिक्षा पद्धति के खिलाफ क्यों हैं?
आचार्य:
मैकाले की शिक्षा पद्धति ने धर्म और भारतीयता को तोड़ा है। आज जो पढ़ाई हो रही है, वह केवल नौकरी तक सीमित है, जीवन मूल्यों की बात नहीं करती। मैकाले की शिक्षा हमें हमारी जड़ों से काटती है। वह धर्म, संस्कृति और परंपरा से दूर ले जाती है। हमें अपनी जड़ें बचानी होंगी।
सवाल: चातुर्मास में युवाओं को जोडऩे की क्या योजना है?
आचार्य:
युवाओं को आत्मनिरीक्षण और आत्मविकास का अवसर देना। दस सेमिनार होंगे, जिनमें ध्यान, नैतिकता, भाषा और संस्कृति जैसे विषयों पर सत्र होंगे। इनमें चरित्र निर्माण, संयम, तकनीक का सदुपयोग जैसे विषयों पर चर्चा होगी।
सवाल: युवा पीढ़ी को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
आचार्य:
खुद को पहचानो। अपनी भाषा, संस्कृति और आत्मा को मत भूलो। सात्विक बनो, सजग बनो।

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