मुनि: युवा पीढ़ी बिजनेस में अधिक व्यस्त होने के चलते धर्म-आध्यात्म पर कम ध्यान दे पाती है। उन्हें रविवार एवं अन्य दिनों में शिविर एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से धार्मिक कार्यों से जोडऩे का प्रयास किया जाएगा। आज के युवाओं को तर्कसंगत समझाना पड़ता है। इससे वे धर्म-आध्यात्म की तरफ प्रवृत्त भी होने लगे हैं। यदि तर्कपूर्ण ढंग से बताया जाएं तो युवाओं का जुड़ाव निसंदेह अधिक होता है।
मुनि: समाज में संस्कार बढ़े हैं। संस्कारों को लेकर जागरुकता आई है। नई पीढ़ी का धर्म-ध्यान के प्रति झुकाव लगातार बढ़ रहा हैं। जो प्रवचन सुनने के लिए आते हैं, उनका असर जरूर होता है और कुछ श्रावक-श्राविकाएं अपने जीवन में बदलाव भी जरूर लाते हैं।
मुनि: सहशीलता का गुण बचपन से ही आने लगता है। पांच वर्ष तक के बच्चे का लालन-पालन किया जाता है। जब बच्चा छह वर्ष से ऊपर का हो जाएं तब डांट-डपट सकते हैं। किशोरवय में मित्रवत व्यवहार किया जाना चाहिए। समझ की कमी के कारण अशांति आती है। शांति के लिए धर्म-आराधना करते हैं। पाप से जीवन में कष्ट आता है। पुण्य से भौतिक सुख मिलता है। धर्म से शांति मिलती है।
मुनि: जो सूर्य की रोशनी में भोजन किया जाता है, उसका पाचन आसान रहता है। शरीर स्वस्थ रहता है। रात्रि भोजन निषेध हो। सवाल: मोबाइल हमारे लिए कितना फायदेमन्द या नुकसानदेय साबित हो रहा है?
मुनि: यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम मोबाइल का उपयोग कैसे करते हैं। इसका सदुपयोग भी है तो दुरुपयोग भी। बच्चे के परिपक्व हो जाने के बाद ही मोबाइल हाथ में दिया जाता है तो बेहतर रहता है। नासमझ हाथ में मोबाइल नहीं हो।
मुनि: हमारी जीवन शैली एवं खान-पान बदल रहा है। आजकल फास्टफूड का चलन बढऩे लगा है। सात्विक भोजन हो।
मुनि: संयुक्त परिवार की व्यवस्था अच्छी हैं। इसमें समर्पण का भाव अधिक देखने को मिलता है। एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना अधिक रहती है। सहनशीलता का गुण अधिक मिलता है। सामंजस्य बना रहता है। आजकल हर किसी को अधिक स्वतंत्रता चाहिए। इसी वजह से एकल परिवार भी अधिक हो गए हैं। एकल परिवार में शांति नहीं मिल सकती है।