scriptकरगिल के नायक: जान जोखिम में डालकर आगे जाते थे, इनके इशारे पर टोली आगे बढ़ती, जख्मी हुए पर हार नहीं मानी | Kargil heroes: They used to go forward risking their lives, the group would move forward on their signal, they got injured but did not give up | Patrika News
ग्वालियर

करगिल के नायक: जान जोखिम में डालकर आगे जाते थे, इनके इशारे पर टोली आगे बढ़ती, जख्मी हुए पर हार नहीं मानी

नारायण विहार कॉलोनी (गोला का मंदिर ) निवासी सौदान सिंह कारगिल युद्ध का मंजर याद करते हुए बताते हैं वह आरआर राइफल्स (राजपूताना राइफल्स) में स्नाइपर थे। टोली में उन के सहित कुल छह स्नाइपर थे। इसलिए उन्हें टीम से करीब दो से तीन किलोमीटर आगे चलना था। जब तक वह इशारा नहीं करते सेना […]

ग्वालियरJul 26, 2025 / 06:22 pm

प्रवेंद्र तोमर

  • अस्पताल से ठीक होकर घर जा रहे थे तो यूनिट के कर्नल आए और बोले अपने जैसे स्नाइपर तैयार करो
  • आदेश का पालन करते हुए छह स्नाइपर तैयार किए, सेना के स्नाइपर सौदान सिंह की कहानी उनकी जुबानी
    फोटो.
    ग्वालियर. करगिल की जंंग में ग्वालियर के सपूतों ने भी अपनी जान की बाजी लगाई थी। इन्हीं वीर जवानों में नायक सौदान सिंह भी शुमार हैं। सेना की राजपूतना राइफल में स्नाइपर रहे सौदान ने पत्रिका को बताया कि कारगिल हमारे लिए आन, बान और शान की बात थी। हम किसी भी कीमत पर पाकिस्तानी सेना को करगिल पर नहीं रहने देना चाहते थे। हालांकि यह आसान टास्क नहीं था। दुश्मन ऊंची चोटियों पर बैठकर गोलियां और बम बरसा रहा था, हमारी सेना नीचे से उनका मुकाबला कर रही थी।
नारायण विहार कॉलोनी (गोला का मंदिर ) निवासी सौदान सिंह कारगिल युद्ध का मंजर याद करते हुए बताते हैं वह आरआर राइफल्स (राजपूताना राइफल्स) में स्नाइपर थे। टोली में उन के सहित कुल छह स्नाइपर थे। इसलिए उन्हें टीम से करीब दो से तीन किलोमीटर आगे चलना था। जब तक वह इशारा नहीं करते सेना की टुकड़ी आगे नहीं बढ़ती। 28 जून 1999 को टाइगर हिल और तोलोलिंग की चोटी पर अटैक के बाद तीसरा टारगेट थ्री पिम्पल (टाइगर हिल्स और तोलोलिंग की चोटी के बाजू वाली पहाड़ी) टारगेट थी। क्योंकि यहां पाकिस्तानी सेना का कब्जा बचा था।
हवाई जहाज और मोटार्र के गोलों से जख्मी
सेवानिवृत नायक सौदान सिंह बताते हैं, पाकिस्तान के लड़ाकू विमान और थ्री पिम्पल की चोटी पर बैठी पाकिस्तानी फौज मोटार्र से गोले बरसा रही थी। उनकी टीम के पांच स्नाइपर शहीद हो चुके थे, वही अकेले बचे थे। हवाई हमले और आरटी फायर में बम के स्प्लेंडर आकर उनके चेहरे और दाहिने घुटने में घंस गए। उनके लिए हिलना ढुलना भी मुश्किल हो गया। लेकिन दुश्मन को खत्म करने का जुनून सिर पर सवार था। उसी हालत में पोजीशन लिए पूरी रात दुश्मन से लोहा लेते रहे। सुबह जब भारतीय सेना की टुकडी आगे बढ़ती हुई आई तब उन्हें जख्मी हालत में देखा। उसके बाद पहाडिय़ों की ओट लेकर सेना का हेलीकाॅप्टर जंगली नाले के सहारे आकर उन्हें श्रीनगर अस्पताल लेकर गया। हालत गंभीर होने की वजह से उन्हें इलाज के लिए दिल्ली लाया गया।
वापस ले गए कमांडर, बोले तैयार करो स्नाइपर
सौदान सिंह का कहना है अस्पताल में हालत ठीक होने पर घर लौटने की तैयारी में थे। तब तक जंग भी खत्म हो चुकी थी। भारतीय सेना ने करगिल फतह कर लिया था। लेकिन घर वापसी से पहले बटालियन के कमांडर कर्नल एम बी रविंद्रनाथ ने अस्पताल आकर कहा अभी घर नहीं जाओगे। तुम्हें अपने जैसे स्नाइपर तैयार करना है। कर्नल का आदेश का पालन किया फिर फौज में लौटे जवानों को स्नाइपर की ट्रेनिंग दी। इनमें 6 जवान स्नाइपर बने तब 30 नवंबर 2001 को सेना ने सेवानिवृत किया।
क्या होती स्नाइपर की भूमिका

जंग के मैदान में स्नाइपर सेना की आंख और कान होता है। उसे जंग के मैदान में सेना की टुकड़ी से करीब दो से तीन किलोमीटर आगे भेजा जाता है। यहां से स्नाइफर किसी एक जगह पर छिप कर दुश्मन की हलचल पर नजर रखता है। जब वह रास्ता साफ होने का इशारा करता है तब पीछे चल रही टुकड़ी को आगे बढ़ती है।

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