सेवानिवृत नायक सौदान सिंह बताते हैं, पाकिस्तान के लड़ाकू विमान और थ्री पिम्पल की चोटी पर बैठी पाकिस्तानी फौज मोटार्र से गोले बरसा रही थी। उनकी टीम के पांच स्नाइपर शहीद हो चुके थे, वही अकेले बचे थे। हवाई हमले और आरटी फायर में बम के स्प्लेंडर आकर उनके चेहरे और दाहिने घुटने में घंस गए। उनके लिए हिलना ढुलना भी मुश्किल हो गया। लेकिन दुश्मन को खत्म करने का जुनून सिर पर सवार था। उसी हालत में पोजीशन लिए पूरी रात दुश्मन से लोहा लेते रहे। सुबह जब भारतीय सेना की टुकडी आगे बढ़ती हुई आई तब उन्हें जख्मी हालत में देखा। उसके बाद पहाडिय़ों की ओट लेकर सेना का हेलीकाॅप्टर जंगली नाले के सहारे आकर उन्हें श्रीनगर अस्पताल लेकर गया। हालत गंभीर होने की वजह से उन्हें इलाज के लिए दिल्ली लाया गया।
वापस ले गए कमांडर, बोले तैयार करो स्नाइपर
सौदान सिंह का कहना है अस्पताल में हालत ठीक होने पर घर लौटने की तैयारी में थे। तब तक जंग भी खत्म हो चुकी थी। भारतीय सेना ने करगिल फतह कर लिया था। लेकिन घर वापसी से पहले बटालियन के कमांडर कर्नल एम बी रविंद्रनाथ ने अस्पताल आकर कहा अभी घर नहीं जाओगे। तुम्हें अपने जैसे स्नाइपर तैयार करना है। कर्नल का आदेश का पालन किया फिर फौज में लौटे जवानों को स्नाइपर की ट्रेनिंग दी। इनमें 6 जवान स्नाइपर बने तब 30 नवंबर 2001 को सेना ने सेवानिवृत किया।
क्या होती स्नाइपर की भूमिका जंग के मैदान में स्नाइपर सेना की आंख और कान होता है। उसे जंग के मैदान में सेना की टुकड़ी से करीब दो से तीन किलोमीटर आगे भेजा जाता है। यहां से स्नाइफर किसी एक जगह पर छिप कर दुश्मन की हलचल पर नजर रखता है। जब वह रास्ता साफ होने का इशारा करता है तब पीछे चल रही टुकड़ी को आगे बढ़ती है।