नतीजा यह है कि छात्र मजबूरी में लाखों रुपए खर्च कर प्राइवेट यूनिवर्सिटी का रुख कर रहे हैं। बीयू में करीब 40 विषयों में पीएचडी के 2,379 सीटें हैं, लेकिन इस साल केवल नेट स्कोर को पात्रता मानने के कारण छात्रों ने आवेदन से दूरी बना ली।
पात्रता से बाहर हो जाएंगे स्टूडेंट
विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में 70 प्रतिशत वेटेज नेट स्कोर और 30 प्रतिशत इंटरव्यू को दिया गया है। यूजीसी के नियमों के अनुसार, नेट स्कोर केवल एक साल के लिए वैध होता है, जिससे हर साल हजारों छात्र इसकी पात्रता से बाहर हो जाएंगे। बीयू में बिना नेट स्कोर के छात्रों के लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा गया है। एचएस त्रिपाठी, पूर्व रजिस्ट्रार, बीयू का कहना है कि स्टेट के विश्वविद्यालयों को पूरा अधिकार है कि वह नेट स्कोट के साथ ही अपना एंट्रेंस एग्जाम भी ले सकते हैं। प्रदेश के कम ही छात्र ऐसे हैं जो नेट जैसा एग्जाम निकाल पाते हैं। बीयू को छात्र हित को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए। सीटें खाली रहने यूनिवर्सिटी को भी नुकसान है। यूजीसी के नियम में विश्वविद्यालयों को दोनों अधिकार दिए हैं।
डॉ. भरत शरण सिंह, अध्यक्ष, मप्र निजी विश्व का कहना है कि प्राइवेट विश्वविद्यालयों में नेट और जेआरएफ को प्राथमिकता दी जाती है। विश्वविद्यालय एंट्रेंस के आधार पर प्रवेश दे सकते हैं या नहीं इसके लिए मुझे नियमों का अध्ययन करना होगा।
प्राइवेट ही एक मात्र विकल्प
सरकारी विश्वविद्यालयों में पीएचडी की फीस करीब 90 हजार से 1 लाख रुपए तक होती है, लेकिन प्राइवेट यूनिवर्सिटी में यही डिग्री पाने के लिए छात्रों को 3 से 4 लाख रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।