कोटपूतली की जयसिंह गोशाला में 500 से ज्यादा गोवंश हैं। गोशाला को प्रति माह लगभग 4 लाख रुपए का अनुदान मिलता है, लेकिन कुल मासिक खर्च 10 लाख रुपए तक पहुंच जाता है। गोशाला दूध और गोबर खाद बेचकर 2 रुपए लाख की आय अर्जित करती है, बाकी की रकम दानदाताओं से जुटाई जाती है। अब जब सरकार की ओर से नवंबर से मार्च तक का बकाया अनुदान नहीं मिला है, तो व्यवस्थाएं लड़खड़ाने लगी हैं।
गोतस्करी के मामलों में पकड़ी गई गायों को भी इन्हीं गोशालाओं में रखा जाता है, जिससे गायों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन संसाधन नहीं बढ़े। प्रबंधकों के सामने चारे-पानी की व्यवस्था करना दिन-ब-दिन चुनौती बनता जा रहा है।
सरकार पंजीकृत गोशालाओं को 3 वर्ष से कम उम्र के गोवंश पर 25 रुपए और अधिक उम्र पर 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अनुदान देती है। गोशाला को पंजीकृत होना जरूरी है, 1 बीघा जमीन होनी चाहिए, और एक प्रबंध समिति बनी होनी चाहिए। तहसीलदार और पशु चिकित्सक भौतिक सत्यापन के बाद अनुदान का प्रस्ताव सरकार को भेजते हैं।
जिले की कई गोशालाएं अब तक पंजीकृत नहीं हैं, जिससे उन्हें किसी भी तरह का सरकारी सहयोग नहीं मिल रहा है। गांवों में लोग अपने स्तर पर गायों के लिए चारा-पानी जुटा रहे हैं। लेकिन बिना प्रशासनिक सहायता के इन गोशालाओं का भविष्य संकट में है।
सरकारी अनुदान में देरी और बढ़ती जरूरतों को देखते हुए ज़रूरी है कि आमजन भी आगे आएं। दान, चारा, पानी या श्रमदान के जरिए गोशालाओं की मदद कर सकते हैं। यह सिर्फ गायों का नहीं, हमारी संस्कृति और संवेदनशीलता का भी सवाल है।
जिले की गोशालाओं में पशु चिकित्सक समय समय पर गोवंश की जांच करते है। गोशालाओं को अनुदान के लिए तहसीलदार व पशु चिकित्सक गोवंश के भौतिक सत्यापन की जांच कर रहे है। भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की जाएगी। इसके अनुसार गोशालाओं को अनुदान राशि का भुगतान होगा।
-डॉ.हरीश गुर्जर, उप निदेशक पशुपालन विभाग कोटपूतली