26 जुलाई को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मैंग्रोव संरक्षण दिवस की पूर्व संध्या पर गुजरात सरकार ने यह जानकारी साझा की। इसके तहत गुजरात का मैंग्रोव आवरण वर्ष 1991 के 397 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,175 वर्ग किलोमीटर हो गया है। बीते तीन दशकों में गुजरात में मैंग्रोव के क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर, मैंग्रोव क्षेत्रफल के मामले में गुजरात पश्चिम बंगाल के बाद देश में दूसरे स्थान पर है।
भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में मैंग्रोव क्षेत्र में 241.29 वर्ग किलोमीटर की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई। वन एवं पर्यावरण मंत्री मुलु बेरा, वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री मुकेश पटेल के अनुसार गुजरात में मैंग्रोव वृक्षारोपण बढ़ाने के लिए किए गए ठोस प्रयासों के परिणामस्वरूप, आज मैंग्रोव क्षेत्र 1,175 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हुआ है।
गुजरात में सबसे ज्यादा कच्छ में हैं मैंग्रोव गुजरात में मैंग्रोव का आवरण राज्य के चार प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित है। कच्छ जिला 799 वर्ग किलोमीटर के मैंग्रोव आवरण के साथ पहले स्थान पर है। कच्छ की खाड़ी, जिसमें मरीन नेशनल पार्क और अभयारण्य शामिल हैं वह, जामनगर, राजकोट, मोरबी, पोरबंदर और देवभूमि द्वारका में 236 वर्ग किलोमीटर में मैंग्रोव हैं।
मध्य और दक्षिण गुजरात में खंभात की खाड़ी और डुमस-उभराट क्षेत्र सहित भावनगर, अहमदाबाद, आणंद, भरूच, सूरत, नवसारी और वलसाड जिले में मैंग्रोव आवरण 134 वर्ग किलोमीटर का है। सौराष्ट्र के अमरेली, जूनागढ़ और गिर-सोमनाथ जैसे जिले में मैंग्रोव आवरण 6 वर्ग किलोमीटर का है।
12 हजार हेक्टेयर में मैंग्रोव के पौधरोपण का लक्ष्य
गुजरात सरकार ने बाया कि वर्ष 2024-25 में 12,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में मैंग्रोव के पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक मैंग्रोव वृक्षारोपण अभियान चलाया गया था। वर्ष 2023-24 में, राज्य में 6,930 हेक्टेयर क्षेत्र में मैंग्रोव वृक्षारोपण किया गया है।
चक्रवात के प्रभाव को कम करते हैं मैंग्रोव
मैंग्रोव तटीय वन हैं, जिनमें खारे पानी में उगने वाले वृक्ष शामिल हैं। ये वृक्ष पोषक तत्वों और तलछट को छानकर जल की गुणवत्ता में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री जीवन को सहारा देने, तटीय भूमि को स्थिर करने, लवणता के निर्माण को रोकने और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण है। मछलियों और पक्षियों सहित पौधों और जानवरों की लगभग 1,500 प्रजातियां मैंग्रोव पर निर्भर हैं।