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Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत से कम आयु पति हो जाता है दीर्घायु, जानें डेट, मुहूर्त, मंत्र और पूजा विधि

Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य और पुत्र पौत्र की कामना से करती हैं। आइये जानते हैं कब है वट सावित्री व्रत, जानें डेट, मुहूर्त और महत्व ..

भारतMay 12, 2025 / 06:30 pm

Pravin Pandey

Kab Hai Vat Savitri Vrat 2025 Date

Kab Hai Vat Savitri Vrat 2025 Date: वट सावित्री व्रत 2025 कब है

Vat Savitri Vrat Mahatv: वट सावित्री व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है, हालांकि इस व्रत को कुमारी लड़कियां भी रखती हैं और वट यानि बरगद के वृक्ष का पूजन करती हैं। यह व्रत स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगल कामना के साथ करती हैं। इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है। साथ ही वट वृक्ष को कच्चे सूत बांधकर परिक्रमा की जाती है।

वट सावित्री व्रत की महिमा निराली है, इसके चलते राजपुत्री सावित्री को उसके अल्पायु पति को दीर्घ जीवन मिला। साथ ही उसका राजपाट भी वापस मिल गया। सावित्री को यमराज का वरदान भी प्राप्त हुआ। इसीलिए विवाहित स्त्रियां अपने पति की सकुशलता और दीर्घायु की कामना से वट सावित्री व्रत रखती हैं। इसके साथ ही वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होने से इनकी पूजा सुख शांति समृद्धि देने वाली होती है।

ऐसा अनोखा व्रत कैलेंडर में भेद के कारण उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अलग-अलग दिन मनाया जाता है। जहां उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है तो दक्षिणभारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को, आइये जानते हैं कब है वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत कब है (Kab Hai Vat Savitri Vrat Date)

ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभः 26 मई 2025 को दोपहर 12:11 बजे
अमावस्या तिथि समापनः 27 मई 2025 को सुबह 08:31 बजे
वट सावित्री अमावस्याः सोमवार 26 मई 2025 को
वट सावित्री पूर्णिमा व्रतः मंगलवार 10 जून 2025 को
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वट सावित्री व्रत दो दिन

पंचांगकर्ताओं की मानें तो उत्तर भारतीय राज्यों (यूपी,एमपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा) में पूर्णिमांत कैलेंडर का पालन किया जाता है, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में सामान्यतः अमान्त चंद्र कैलेंडर का पालन किया जाता है। इनमें त्योहार चाहे अमांत चंद्र कैलेंडर हो या पूर्णिमांत एक ही दिन पर आते हैं, सिर्फ वट सावित्री व्रत को छोड़कर।

पूर्णिमांत कैलेंडर में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या पर यानी शनि जयंती के दिन जबकि अमांत कैलेंडर में वट सावित्री व्रत 15 दिन बाद ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मनाया जाता है और इसे वट पूर्णिमा व्रत कहते हैं।
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वट सावित्री व्र‍त पूजा सामग्री (Vat Savitri Vrat Puja Samagri)


सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, कच्चा सूत, बांस का पंखा, लाल कलावा, बरगद का फल, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फल (आम, लीची आदि), फूल, बताशे, रोली (कुमकुम), कपड़ा 1.25 मीटर का, इत्र, सुपारी, पान, नारियल, लाल कपड़ा, सिंदूर, दूर्वा घास, चावल (अक्षत), सुहाग का सामान, नगद रुपये, पूड़ि‍यां, भीगा चना, स्टील या कांसे की थाली, मिठाई, घर में बना हुआ पकवान, जल से भरा कलश, दो बांस की टोकरी आदि।
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वट सावित्री व्रत पूजा विधि (Vat Savitri Vrat Puja Vidhi)

1.सुबह घर की साफ सफाई कर नित्यकर्म पूरा कर स्नान करें।
2. इसके बाद गंगा जल का पूरे घर में छिड़काव करें और बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।

3. ब्रह्मा के बाएं देवी सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
4. दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वटवृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।

5. इसके बाद ब्रह्मा और सावित्री का पूजन करें और नीचे लिखे हुए मंत्र को पढ़ते हुए अर्घ्य दें
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

6. इसके बाद सावित्री और सत्यवान की पूजा कर बरगद की जड़ में पानी दें। इस दौरान नीचे लिखे मंत्र को पढ़ते हुए वटवृक्ष की प्रार्थना करें

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।

7. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।

8. जल से बरगद के पेड़ को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें।
9. बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।

10. भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, दक्षिणा रखकर सासुजी के चरण स्पर्श करें, यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
11. पूजा के बाद ब्राह्मणों को वस्त्र और फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें और इस व्रत का संकल्प लें
मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं
सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।

12. इसके बाद वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा को सुनें, इससे मनोवांछित फल मिलते हैं।

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