ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के वैज्ञानिकों की टीम के अनुसार ‘प्रकृति का यह अलकेमिस्ट’ अपने विशेष प्राकृतिक रक्षा तंत्र का उपयोग करके सोने व कॉपर जैसे घातक धातु-आयनों को निष्क्रिय कर देता है। जब यह घुलनशील सोने के आयनों के संपर्क में आता है तो कॉप-ए और कप-ए नामक एंजाइम बनाता है, जो इन आयनों को कम जहरीले रूप में परिवर्तित कर छोटे-छोटे सोने के कणों के रूप में बाहर निकाल देते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार प्राकृतिक गोल्ड डिपॉजिट बनने में भी इस बैक्टीरिया की अहम भूमिका होती है। ऑस्ट्रेलिया के गोल्डफील्ड्स में पाए गए कई कण संभवतः समय के साथ इसी सूक्ष्म जीव द्वारा निर्मित हुए हैं।
भविष्य की ‘बायो-माइनिंग’
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस माइक्रोब की कार्यप्रणाली को समझकर भविष्य में टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल तरीके से सोना निकाला जा सकता है। वर्तमान में खनन प्रक्रियाएं ऊर्जा-गहन और प्रदूषणकारी हैं। लेकिन यदि इस बैक्टीरिया की जैविक प्रणाली को दोहराया जाए तो ई-वेस्ट, माइन टेलिंग्स और कम-गुणवत्ता वाले अयस्कों से भी सोना निकाला जा सकता है।
ऑक्सीजन के बिना सांस लेने वाला पाया गया था जीव
बता दें कि वैज्ञानिक आए दिन धरती पर पाए जाने वाले खास तरह के जीवों की तलाश करते रहते हैं। इससे पहले, साल 2020 में एक नए जीव की खोज की थी। यह जीव जिंदा रहने के लिए ऑक्सीजन नहीं लेता है। इस जीव का नाम का नाम जेलिफिश बताया गया था। यह सालमोन मछली के टिश्यू में पाया जाता है। इस जीव की खोज तेल अवीव विश्वविद्यालय (टीएयू) के शोधकर्ताओं ने की थी। अध्ययन के बाद पता चला था यह जीव ऊर्जा के लिए सांस के रूप में ऑक्सीजन नहीं लेता है।