प्लास्टिक प्रदूषण का संकट अब वैश्विक स्तर पर पहुंच चुका है, जो पृथ्वी और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरा बन गया है। इस संकट के समाधान के रूप में रीसाइक्लिंग (पुनः उपयोग) को एक उपाय माना जा रहा है। लेकिन एक नए अध्ययन ने चेतावनी दी है कि रीसाइकल की गई प्लास्टिक की एक छोटी सी गोली (पैलेट) में 80 से ज्यादा तरह के रसायन हो सकते हैं। इनमें से कई रसायन पानी में मिलकर हार्मोन सिस्टम और वसा चयापचय (लिपिड मेटाबॉलिज्म) पर असर डाल सकते हैं।
यह अध्ययन Journal of Hazardous Materials में प्रकाशित हुआ है। इसमें वैज्ञानिकों ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से रीसाइकल किए गए पॉलीइथिलीन प्लास्टिक के पैलेट्स खरीदे और उन्हें 48 घंटे तक पानी में डुबोकर रखा। इसके बाद ज़ीब्राफिश की लार्वा (लार्वा मछली) को उस पानी में 5 दिन तक रखा गया।
परीक्षण के नतीजों में पाया गया कि मछली के लार्वा में वसा चयापचय, वसा कोशिका बनने (एडिपोजेनेसिस) और हार्मोन नियंत्रण से जुड़े जीन की गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई।
यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग की शोधकर्ता अज़ोरा कोनिग कार्डगर ने कहा, “इतने कम समय में ही रिसाव और प्रभाव का दिखना यह बताता है कि प्लास्टिक में मौजूद रसायन जीवों के लिए कितने खतरनाक हो सकते हैं।”
पहले हुए शोध भी यह संकेत दे चुके हैं कि इंसानों पर भी ऐसे रसायनों का असर हो सकता है—जैसे प्रजनन क्षमता में कमी, मोटापा, कैंसर और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का खतरा। शोधकर्ताओं ने कहा कि यही कारण है कि रीसाइक्लिंग को समाधान मानने में एक बड़ी बाधा है। हम कभी यह ठीक से नहीं जान सकते कि किस रीसाइकल प्लास्टिक वस्तु में कौन-से रसायन मिल सकते हैं। इसके अलावा, रीसाइक्लिंग के दौरान रसायनों के मिश्रण से नई और खतरनाक विषैली चीजें बन सकती हैं।
इस बीच, दुनिया के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि अगस्त में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा शहर में एक बैठक के लिए जुटेंगे, जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत वैश्विक प्लास्टिक संधि (Global Plastics Treaty) पर अंतिम बातचीत के रूप में देखी जा रही है।