पशुपालक संघ और डीएनटी संघर्ष समिति के अध्यक्ष लालजी राईका ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी इन जातियों के कल्याण के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनी। पहले 7 जनवरी को पाली और 3 फरवरी को जोधपुर में आंदोलन हुआ, लेकिन सरकार ने कोई समाधान नहीं निकाला। उन्होंने कहा कि भाजपा हो या कांग्रेस, किसी ने घुमंतु जातियों का भला नहीं किया। इन समुदायों ने अब तक करीब 5 लाख करोड़ का टैक्स दिया है, फिर भी 70 फीसदी लोग आज भी मकान से वंचित हैं। इन जातियों से कोई आईपीएस, आईएएस या उच्च पदों पर नहीं पहुंच पाया। आयोगों ने भी इनकी स्थिति सुधारने और 10 फीसदी राजनीतिक आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन रिपोर्टें धूल खा रही हैं।
प्रदेशाध्यक्ष रतन नाथ कालबेलिया ने कहा कि डीएनटी जातियों को मजबूरी में आंदोलन करना पड़ रहा है। कागजों में करोड़ों की घोषणाएं होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ नहीं है। न कोई सामुदायिक भवन बना, न बस्तियों में सरकारी नल लगे। घुमंतु जातियां वन भूमि में रहती हैं, मगर वहां भी स्थायी पट्टे नहीं दिए जाते। कालबेलिया ने बताया कि दफनाने के लिए भी प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है और अलग कब्रिस्तान तक नहीं मिला।
उन्होंने आरोप लगाया कि इनके विकास के पैसे अधिकारियों और नेताओं के रिश्तेदारों के एनजीओ में चले जाते हैं। नवजीवन योजना का लाभ भी धरातल पर नहीं पहुंचा। कालबेलिया ने कहा कि तिब्बती लोगों के लिए बाजार और सुविधाएं सरकार दे देती है, पर हमारे लिए कोई कदम नहीं उठाए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर मांगें नहीं मानी गईं तो बड़ा आंदोलन होगा।