भू-प्रवेश बनाम भू-अर्जन में नियमों का खेल खनन के लिए लीज पर दी गई जमीनों पर अनुमति के लिए भू-प्रवेश की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया में मुआवजे का निर्धारण कर भूमि स्वामी किसानों को भुगतान किया जाता है, लेकिन जमीन का स्वामित्व किसानों के पास रहता है। इसके विपरीत, भू-अर्जन प्रक्रिया का उपयोग फैक्ट्री निर्माण, यार्ड या सड़क जैसे कार्यों के लिए किया जाता है। इसमें मुआवजा भुगतान के बाद जमीन का स्वामित्व फैक्ट्री के नाम हस्तांतरित हो जाता है, जिससे किसान अपनी जमीन के मालिकाना हक से वंचित हो जाते हैं। बठिया खुर्द और बिरहुली में लगभग 5 हेक्टेयर जमीन (बिरहुली में 1.5 हेक्टेयर और बठिया खुर्द में 3.5 हेक्टेयर से अधिक) के लिए भू-अर्जन का आवेदन किया गया है, जिससे करीब 50 किसान प्रभावित होंगे।
ये है नियम-विरुद्ध प्रक्रिया और अनियमितताएं किसानों का आरोप है कि भू-अर्जन ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013’ के तहत किया जा रहा है, ताकि उनका मालिकाना हक छीना जा सके। जबकि अन्य गांवों जैसे भरजुना कला और नीमी में भू-प्रवेश प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इसके अलावा, भू-अर्जन की प्रक्रिया में भी गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। नियमों के अनुसार, निजी क्षेत्र को भू-अर्जन के लिए 80 फीसदी भू-स्वामियों की लिखित सहमति और धारा 4 के तहत सामाजिक प्रभाव आकलन आवश्यक है। लेकिन कलेक्टर की भू-अर्जन शाखा ने बिना धारा 4 के सीधे धारा 11 की कार्यवाही शुरू कर दी। बाद में गड़बड़ी उजागर होने पर धारा 4 की प्रक्रिया पूरी की गई। इसमें भी केवल एक रिपोर्ट तैयार करके, बिना ग्राम सभा में प्रकाशन या दावा-आपत्ति लिए प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई।
” यह मामला संज्ञान में नहीं था। प्रकरण गंभीर है और इसकी जांच करवाई जाएगी। भू-अर्जन में नियम-विरुद्ध प्रक्रिया पाए जाने पर विधि-सम्मत कार्रवाई भी की जाएगी।” – डॉ. सतीश कुमार एस, कलेक्टर