Munshi premchand से ही कहानी की दुनिया में आया
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त रंग निर्देशक राजकमल नायक ने कहा, मैंने मुंशीजी की ‘निमंत्रण’ और ‘मोटेराम शास्त्री’ पर नाट्य मंचन किया है। प्रेमचंद को पढ़ते हुए ही साहित्य से जुड़ाव हुआ। उनकी कहानियों ने मुझे सोचने की दिशा दी। संघर्षों से भरे उनके जीवन ने लेखन को धार दी। गरीबी, जात-पात, महंगाई जैसे हर मुद्दे को उन्होंने सहजता से छूआ। ‘कफन’ तो ऐसी कहानी है जिसमें दो क्लाइमेक्स हैं। उनके शब्द इतने बारीकी से गढ़े जाते थे कि हर कहानी एक निष्कर्ष तक पहुंचती है। वे वास्तव में कलम के जादूगर थे।
कहानी समाज का दस्तावेज होती है
रंग निर्देशक योग मिश्र ने कहा, प्रेमचंद की कहानियां हर वर्ग और हर उम्र के पाठक को शिक्षा देती हैं। समाज के हर पहलू को उन्होंने अपनी कलम से छुआ-चाहे वह अंधविश्वास हो या सामाजिक अन्याय। उनकी कहानियों में विद्रूपताएं उजागर होती हैं। वे हर काल में प्रासंगिक हैं क्योंकि कहानी अपने समय का दस्तावेज होती है। प्रेमचंद की भाषा सरल है, लेकिन असर गहरा। वे समाज को आईना दिखाने वाले लेखक हैं, जिनकी लेखनी आने वाले समय में भी उतनी ही जरूरी बनी रहेगी। उनका लेखन हमेशा के लिए प्रासंगिक रहेगा।
मेरी फिल्मों में दिखती है प्रेमचंद की झलक
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक सतीश जैन ने कहा, मैंने अनेक नामचीन लेखकों को पढ़ा, लेकिन जब प्रेमचंद को पढ़ा तो बाकी सब फीके लगने लगे। मेरी फिल्मों में ग्रामीण जीवन और यथार्थ की जो झलक मिलती है, वह प्रेमचंद से ही प्रेरित है। मैंने सिनेमाई संस्कृति में उनकी सोच और दृष्टिकोण को उतारने की कोशिश की है। उनकी गहराई को समझे बिना भारत को समझना अधूरा है। मैं अन्य फिल्मकारों को भी प्रेरित करता हूं कि वे प्रेमचंद को पढ़े और समझें, तभी हमारी कहानियों में समाज का सच्चा प्रतिबिंब आ पाएगा।