अलविदा कह गईं होनहार धाविका शुक्रवार को जब सविता का पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा, तो हर आंख नम थी। मां फोटो देवी और पिता फूलचंद पाल की चीख-पुकार से गांव का माहौल गमगीन हो गया। गंगा किनारे नीबी घाट पर सविता को अंतिम विदाई दी गई, जहां सैकड़ों लोगों ने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें श्रद्धांजलि दी।
खेल से जुनून और मेहनत की मिसाल थीं सविता खेती-किसानी और भेड़ पालन से परिवार का गुजारा करने वाले फूलचंद पाल की चार संतानों में सविता दूसरे नंबर पर थीं। उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ खेल को भी जीवन का अहम हिस्सा बनाया। पढ़ाई में होशियार सविता ने कोलकाता में रेलवे में टीटी की नौकरी खेल कोटे से हासिल की थी। कम उम्र में ही उन्होंने तय कर लिया था कि दौड़ ही उनका जीवन पथ है।
खेलों में शानदार सफर सविता पाल ने 5 और 10 किलोमीटर दौड़ में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराया। उनकी उपलब्धियों में 2018 साउथ एशियन गेम्स का स्वर्ण पदक, 2022 नेशनल सीनियर चैंपियनशिप का स्वर्ण और 2024 में रजत पदक शामिल हैं। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने प्रयागराज के मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में कोच रूस्तम खान के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण शुरू किया था।
हादसा जिसने छीन लिया चमकता सितारा मंगलवार सुबह सविता रोहतक में एक स्टेडियम में अभ्यास के लिए गई थीं, जहां एक तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी। इस हादसे ने न सिर्फ एक परिवार की खुशियां छीन लीं, बल्कि भारतीय एथलेटिक्स से एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी को भी हमेशा के लिए खो दिया।
शोक में डूबा परिवार सविता के भाई सुरेंद्र और धीरेंद्र (जो उत्तर पूर्वी पुलिस अकादमी में कार्यरत हैं), और बड़ी बहन कविता शोक में डूबे हुए हैं। हर कोई यही कह रहा है—सविता सिर्फ एक एथलीट नहीं, गांव की प्रेरणा थीं।