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राजस्थान के इन मंदिरों में होती है अनोखी जन्माष्टमी पूजा, कहीं झांकी-कहीं रासलीला… जानें इस साल बन रहे 6 शुभ योग

Famous Krishna temples Rajasthan: राजस्थान के मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि कहीं झांकी, कहीं रासलीला, कहीं भजन संध्या तो कहीं दही-हांडी-हर मंदिर का अपना अलग रंग होता है। आइए जानते हैं राजस्थान के उन मंदिरों के बारे में, जहां जन्माष्टमी पर अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।

जयपुरAug 16, 2025 / 08:51 am

Kamal Mishra

janmashtami 2025

जन्माष्टमी 2025 (फोटो-पत्रिका)

Famous Krishna temples Rajasthan: जयपुर। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का नाम आते ही मन में कान्हा की बांसुरी, झूला झूलते नंदलाल और गोकुल की गलियों में माखन चुराते बाल गोपाल की छवि ताजा हो जाती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और उल्लास का उत्सव है। भारत के हर कोने में इस पर्व को खास तरीके से मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान में जन्माष्टमी का रंग सबसे निराला होता है। यहां के मंदिरों में पूजा की विधि, झांकी, भजन और रस्में ऐसी हैं जो किसी को भी भक्ति-रस में डुबो दें।

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ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के मुताबिक, जन्माष्टमी पर इस साल वृद्धि, ध्रुव, श्रीवत्स, गजलक्ष्मी, ध्वांक्ष और बुधादित्य छह शुभ योगों का विशेष संयोग रहेगा। ये योग धन, सुख, प्रेम और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 15 अगस्त रात 11:50 से प्रारंभ होकर 16 अगस्त रात 9:35 तक रहेगी। अष्टमी तिथि सूर्योदय व्यापिनी है। ऐसे में जन्माष्टमी का पर्व शनिवार को मनाया जाएगा।

श्रीनाथजी मंदिर (नाथद्वारा, राजसमंद)

नाथद्वारा को कृष्ण भक्तों का धाम माना जाता है। जन्माष्टमी पर यहां का नजारा किसी राजसी महल से कम नहीं होता। श्रीनाथ जी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर रात 12 बजे श्रीनाथजी का जन्मोत्सव होता है। मंदिर में छप्पन प्रकार का भोग लगाया जाता है, जिसकी झलक देखने हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं। झांकी और आरती के समय घंटियों और शंख की गूंज पूरे शहर को आध्यात्मिक माहौल से भर देती है।
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श्रीनाथजी मंदिर (नाथद्वारा, राजसमंद)

गोविंददेव जी मंदिर (जयपुर)

जयपुर का गोविंददेव जी मंदिर जन्माष्टमी पर अद्भुत रोशनी से जगमगाता है। जन्म की घड़ी आते ही मंदिर में इतनी भीड़ होती है कि तिल रखने की जगह नहीं मिलती। कान्हा को सोने-चांदी के आभूषण पहनाए जाते हैं और झूला सजाया जाता है। आधी रात को जयकारों और कीर्तन के बीच बाल गोपाल का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
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गोविंददेव जी मंदिर (जयपुर)

खाटूश्यामजी मंदिर (सीकर)

श्याम बाबा का धाम भी जन्माष्टमी पर खास तैयारियों का गवाह बनता है। मंदिर को फूलों और झालरों से सजाया जाता है। रात्रि को रासलीला और भजन संध्या का आयोजन होता है। यहां कृष्ण जन्म के साथ श्याम बाबा की महिमा का गुणगान भी किया जाता है, जो इस उत्सव को और खास बना देता है। पूरी रात खाटूश्यामजी धाम भक्तों से भरा रहता है।
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खाटूश्यामजी मंदिर (सीकर)

मदन मोहन मंदिर (करौली)

करौली में जन्माष्टमी सिर्फ मंदिर तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरा शहर इसमें शामिल हो जाता है। झांकियां, शोभायात्राएं और लोक नृत्य लोगों को कृष्ण के द्वापर युग में ले जाते हैं। मंदिर में खास घी से बना प्रसाद वितरित किया जाता है। रात 12 बजे मंदिर की घंटियों और नगाड़ों की आवाज पूरे नगर में गूंजती है।
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मदन मोहन मंदिर (करौली)

जगदीश मंदिर (उदयपुर)

उदयपुर का ऐतिहासिक जगदीश मंदिर जन्माष्टमी के लिए प्रसिद्ध है। यहां कलाकार रासलीला का मंचन करते हैं। पर्यटक और स्थानीय लोग मिलकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं। रात 12 बजे ‘अभिषेक’ और आरती के साथ भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
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जगदीश मंदिर (उदयपुर)

अजमेर का अंबाजी मंदिर

अजमेर का अंबाजी मंदिर भी जन्माष्टमी पर सज-धज कर स्वर्णिम हो उठता है। यहां भक्त महिलाएं झूला सजाकर ‘कन्हैया’ को झुलाती हैं। मंदिर में पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म के समय दीपों से पूरा प्रांगण रोशन कर दिया जाता है।

रंगजी मंदिर (अलवर)

अलवर का रंगजी मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना है, लेकिन जन्माष्टमी पर इसकी सजावट राजस्थानी रंग में डूबी होती है। मंदिर में दक्षिण भारत की परंपरा के मुताबिक वेदिक मंत्रों के बीच भगवान का अभिषेक होता है। रात को भव्य झांकी सजाई जाती है। प्रसाद में खास तौर पर माखन-मिश्री और पंचामृत वितरित किया जाता है।
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पुष्कर के कृष्ण मंदिर

पुष्कर सिर्फ ब्रह्माजी के मंदिर के लिए नहीं, बल्कि यहां के कृष्ण मंदिरों में भी जन्माष्टमी का उल्लास देखने लायक होता है। संकीर्तन मंडलियां घाटों पर कीर्तन करती हैं। रात को झांकी सजाई जाती है, जिसमें कृष्ण की बाल लीलाओं का अभिनय होता है।

लक्ष्मीनाथ मंदिर (बीकानेर)

बीकानेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर में जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही पारंपरिक ढंग से मनाया जाता है। मंदिर में झूला झूलते लड्डू गोपाल की झांकी सजाई जाती है। स्थानीय लोग घरों से बने व्यंजन भगवान को अर्पित करते हैं। आधी रात को मंदिर के शिखर पर दीपक जलाकर रोशनी की जाती है। यहां की सबसे अहम बात यह है कि भगवान कृष्ण की जन्म कुंडली का वाचन किया जाता है।
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‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की’

राजस्थान के मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं रहता। यहां लोक संस्कृति, लोक नृत्य, लोकगीत और सामूहिक भक्ति का भी अद्भुत संगम होता है। कहीं झांकी, कहीं रासलीला, कहीं भजन संध्या तो कहीं दही-हांडी-हर मंदिर का अपना अलग रंग होता है। जब आधी रात को घंटियां बजती हैं, शंख गूंजते हैं और भक्त एक स्वर में ‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की’ गाते हैं, तो लगता है मानो स्वयं वृंदावन राजस्थान की धरती पर उतर आया हो। यही इस भूमि की सबसे बड़ी खूबसूरती है।

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