बीजेपी से हुई थी शुरुआत और चमक उठा सितारा
प्रशांत किशोर की पहचान एक इलेक्शन स्ट्रैटेजिस्ट के तौर पर तब बनी जब उन्होंने 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी मैनेजमेंट संभाला। ‘चाय पर चर्चा’, 3D रैली, ‘मंथन’, ‘रन फॉर यूनिटी’ और आक्रामक सोशल मीडिया कैंपेन ने मोदी को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में खड़ा कर दिया। उस लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया और एनडीए ने कुल 336 सीटों पर कब्जा किया। यही वह चुनाव था जिसने प्रशांत किशोर को राष्ट्रीय स्तर पर एक स्थापित चुनावी रणनीतिकार बना दिया।
बिहार में 2015 में मोदी लहर के बावजूद नीतीश-लालू की जीत
2015 में जब नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया तो प्रशांत किशोर ने उनकी रणनीति तैयार की। उस इलेक्शन में बिहार में मोदी लहर के बावजूद महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की और एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। यहां से उनकी पहचान और बढ़ी और बाद में उन्होंने जदयू ज्वाइन किया और उपाध्यक्ष बने।
कांग्रेस, पंजाब, आंध्र प्रदेश से बंगाल-तमिलनाडु तक
पीके ने 2017 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई लेकिन पार्टी को महज 7 सीटें मिलीं। लेकिन पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को 2017 में जीत दिलाने का श्रेय भी उन्हें दिया गया। 2019 में वाईएस जगन मोहन रेड्डी के लिए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में धमाकेदार प्रदर्शन किया। 2020 में अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में दोबारा सत्ता दिलाई। 2021 में ममता बनर्जी को बंगाल और एमके स्टालिन को तमिलनाडु में ऐतिहासिक जीत दिलाने में भी उनका अहम योगदान रहा।
चुनावी रणनीति छोड़ अब लोकतंत्र का सिपाही
2021 के बाद प्रशांत किशोर ने चुनावी मैनेजमेंट से खुद को अलग कर लिया और 2022 में जन सुराज अभियान की शुरुआत की। उन्होंने 3,000 किमी की पदयात्रा निकाली और गांव-गांव घूमकर जनता से सीधा संवाद किया। 2025 में अब बिहार विधानसभा चुनाव में जन सुराज पार्टी सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।
जाति समीकरण है सबसे बड़ी चुनौती
जानकार बताते हैं कि बिहार की राजनीति बिना जाति समीकरण के समझी ही नहीं जा सकती। राज्य में यादव लगभग 14-15% हैं और परंपरागत रूप से वे लालू-नीतीश के साथ खड़े रहते हैं। मुस्लिम करीब 17.7% हैं और उनका झुकाव ज्यादातर आरजेडी और कांग्रेस की तरफ रहा है। ब्राह्मण महज 3.6% हैं और इसी समुदाय से आने वाले प्रशांत किशोर को यहां बड़ा आधार नहीं दिखता। यानी पीके जातीय समीकरण के लिहाज से कमजोर स्थिति में हैं।
पिछले चुनाव में क्या था वोट शेयर
2020 के विधानसभा चुनाव नतीजे देखें तो आरजेडी को 23% वोट और 75 सीटें मिली थीं जबकि जदयू को 20.46% वोट और 43 सीटें। बीजेपी को 15.64% वोट और 74 सीटें, वहीं कांग्रेस को 6.09% वोट और 19 सीटें।
युवा वोट और फ्रेश फेस फैक्टर आ सकता है काम
बिहार में बड़ी संख्या में युवा वोटर हैं, जिनमें एक तबका बदलाव चाहता है। यहां प्रशांत किशोर अपने फ्रेश फेस और क्लीन इमेज के बूते कुछ सीटों पर पकड़ बना सकते हैं। कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि बिहार में 2025 वही कहानी दोहरा सकता है जो दिल्ली ने 2015 में देखी थी, जब अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने बीजेपी और कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए प्रचंड बहुमत हासिल किया था।
क्या पीके बनेंगे किंगमेकर?
विश्लेषकों का अनुमान है कि जन सुराज पार्टी इस बार सत्ता में भले ही न पहुंचे, लेकिन वोट कटवा या किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है। अगर पार्टी 10-15 सीटें भी निकाल लेती है तो सरकार बनाने की गुत्थी उलझ सकती है और पीके की अहमियत बढ़ जाएगी।