सत्र के पहले दिन हुई इस डिनर मीटिंग की अगुआई मुरादाबाद के कुंदरकी से भाजपा विधायक ठाकुर रामवीर सिंह और एमएलसी जयपाल सिंह व्यस्त ने की। इसमें विधान परिषद सभापति कुंवर मानवेन्द्र सिंह, पूर्व मंत्री जय प्रताप सिंह, रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया), दिनेश प्रताप सिंह, कुंवर ब्रजेश सिंह जैसे दिग्गज शामिल हुए। सपा से निष्कासित राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह की मौजूदगी ने सियासी मायने जोड़े। कुल 49 ठाकुर विधायकों में से 40 का एक साथ आना इसकी अहमियत को दर्शाता है। आयोजकों का दावा है कि यह सिर्फ एक पारिवारिक भोज था, लेकिन सत्र के दौरान ऐसी टाइमिंग ने इसे पॉलिटिकल मैसेजिंग का रूप दे दिया।
राजपूत पॉलिटिक्स का गौरवशाली रहा है अतीत
यूपी में राजपूत (ठाकुर) समुदाय की राजनीतिक भूमिका हमेशा से प्रभावशाली रही है। 1970-80 के दशक में कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह जैसे नेता सत्ता के शीर्ष पर थे। 1990 के मंडल काल में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने ठाकुर-ब्राह्मण गठजोड़ से सफलता हासिल की। मायावती ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए ठाकुरों को भी साधा, जबकि 2017 और 2022 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह समुदाय सत्ता संरचना में हावी रहा। ऐतिहासिक रूप से, ठाकुर नेताओं की निजी मीटिंग्स – चाहे लखनऊ के क्लब हों या यूपी भवन – हमेशा सियासी संकेतों से भरी रही हैं। सियासी मायने और भविष्य के संकेत
- जातिगत संदेश : भाजपा हाल के वर्षों में ओबीसी और दलित वोटरों पर जोर दे रही है। ऐसे में ठाकुर विधायकों का एकजुट होना पार्टी के भीतर अपनी अहमियत को रेखांकित करने की कोशिश हो सकती है। यह संदेश है कि राजपूत वोटबैंक अभी भी मजबूत है।
- बागियों का रोल: सपा के बागी विधायकों की मौजूदगी नई राजनीतिक धुरी बनाने की शुरुआत हो सकती है। यह जातिगत एकजुटता को पार्टी लाइनों से ऊपर उठाने का संकेत देता है।
- 2027 की तैयारी : 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह मीटिंग पावर बैलेंसिंग का हिस्सा हो सकती है। अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो विपक्ष भी राजपूत फैक्टर को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेगा।
- भाजपा के लिए चुनौती : पार्टी को इस जातिगत प्रदर्शन को संभालना होगा, ताकि अन्य वोटबैंकों में असंतोष न फैले। मंत्रिमंडल विस्तार और प्रदेश अध्यक्ष के चयन में यह मीटिंग असर डाल सकती है।
सिर्फ जलपान या कोई नई रणनीति?
हालांकि आयोजकों ने इसे सामाजिक कार्यक्रम बताया, लेकिन टाइमिंग, बागियों की भागीदारी और ऐतिहासिक संदर्भ इसे सियासी कदम बनाते हैं। यूपी में राजपूत पॉलिटिक्स की चमक फिर लौट रही है या यह महज एक शक्ति प्रदर्शन है, इसका जवाब वक्त देगा। फिलहाल, यह मीटिंग यूपी की सियासत में नए समीकरणों की नींव रख सकती है।