scriptचाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं… बिलासपुर जेल में प्रसिद्ध कवि ने रची ये अमर कविता | Independence Day 2025: Famous poem of Pandit Makhanlal Chaturvedi by Pushp ki Abhilasha | Patrika News
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चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं… बिलासपुर जेल में प्रसिद्ध कवि ने रची ये अमर कविता

Independence Day 2025: 1921 में बिलासपुर केंद्रीय जेल में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ लिखी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में जोश भर दिया और आज भी देशभक्ति का प्रतीक है।

रायपुरAug 15, 2025 / 05:29 pm

Laxmi Vishwakarma

पुष्प की अभिलाषा-माखन लाल चतुर्वेदी (Photo source- Patrika)

पुष्प की अभिलाषा-माखन लाल चतुर्वेदी (Photo source- Patrika)

Independence Day 2025: 1921 में बिलासपुर केंद्रीय जेल की चारदीवारी के भीतर लिखी गई पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की अमर कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ आज भी देशभक्ति का ज्वार भर देती है। असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार होकर जेल पहुंचे यह कवि, लेखक और पत्रकार ने अपने शब्दों से अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी और आजादी के दीवानों के दिलों में जोश जगा दिया।

यह कविता आज भी पढ़ाई जाती है स्कूलों में

साल 1921 में बिलासपुर केंद्रीय जेल के बैरक नंबर 9 में बंद एक देशभक्त कैदी ने ऐसी कविता लिखी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी और आजादी के दीवानों में जोश भर दिया। यह कैदी थे लेखक, कवि और पत्रकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी। उनकी यह कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ आज भी दुनिया भर के हिन्दी स्कूलों में पढ़ाई जाती है।

असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी

जून 1921 में पं. चतुर्वेदी ने बिलासपुर के शनिचरी बाजार में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भाषण दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर 5 जुलाई 1921 को बिलासपुर केंद्रीय जेल भेज दिया, जहां वे 1 मार्च 1922 तक कैद रहे।

अंग्रेजों की बत्ती गुल करने वाला किस्सा

एक सभा में भाषण के दौरान पेट्रोमेक्स बुझने पर उन्होंने कहा-“जैसे यह बत्ती बुझ गई, वैसे ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी।” रोशनी लौटने पर बोले-“जैसे फिर से प्रकाश फैल गया, वैसे ही स्वतंत्रता का प्रकाश फैलेगा।” इस बात पर उन्हें राजद्रोह का केस झेलना पड़ा और 8 महीने के कठोर कारावास की सजा मिली।
Independence Day 2025

जेल में नहीं बची कोई स्मृति

बिलासपुर जेल में पं. माखनलाल चतुर्वेदी की स्मृतियों को संरक्षित नहीं किया जा सका। जिस बैरक में उन्होंने बंदी जीवन बिताया और कविता की रचना की, वह ध्वस्त हो चुकी है। पुराना भवन जर्जर होने पर 2018 में तोड़कर नये भवन का निर्माण कराया गया। परिसर में उनकी कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है, हालांकि एक शिलालेख अवश्य लगाया गया है।

पुष्प की अभिलाषा- माखन लाल चतुर्वेदी

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं।
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं।
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊं।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूं, भाग्य पर इठलाऊं।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।
जिस पथ जावें वीर अनेक।

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