आपकी बात : पिछले पांच वर्षो में केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन घटने के पीछे आप क्या कारण मानते हैं?
पाठकों ने इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं दी हैं, प्रस्तुत हैं पाठकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाएं


रिक्त पदों पर नियमित शिक्षक न लगाना वजह
पिछले 5 वर्षों में केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन घटने का मुख्य कारण शिक्षकों के रिक्त पदों के कारण शिक्षण कार्यों के आई गुणवत्ता में कमी है। नियमित शिक्षक न लगाकर अतिथि शिक्षकों से अध्ययन कराने से केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले में कमी आई है। – आनंद सिंह राजावत, देवलीकलां, पाली, राजस्थान
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निजी विद्यालयों की चकाचौंध
पिछले पांच वर्षों में केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन घटने के कई कारण हो सकते हैं। पहला कारण है निजी विद्यालयों की बढ़ती संख्या और उनकी आधुनिक सुविधाएं, जो अभिभावकों को आकर्षित करती हैं। दूसरा, कई क्षेत्रों में नए केंद्रीय विद्यालय नहीं खुल पाए हैं, जिससे पहुंच सीमित हुई है। तीसरा, ट्रांसफर-पॉलिसी में बदलाव के कारण सरकारी कर्मचारियों की स्थिरता बढ़ी है, जिससे बच्चों को नए स्कूल में दाखिला लेने की जरूरत कम हुई। साथ ही, ऑनलाइन शिक्षा के विकल्पों और क्षेत्रीय स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार ने भी केंद्रीय विद्यालयों की प्राथमिकता को कुछ हद तक कम किया है। – गणेश मीणा देशमा, टोंक
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गुणवत्ता में कमी
केंद्रीय विद्यालयों की ख्याति अब पहले जैसी नहीं रही है। उसमें लगातार गिरावट आ रही है। यह शिक्षा व्यवस्था के बदलते रुझान को जाहिर करती है। नामांकन की कमी का कारण निजी विद्यालयों की संख्या बढ़ रही है। वहां आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। शहरों में वैकल्पिक शिक्षा के कई विकल्प हैं। गुणवत्ता, संसाधन व शिक्षकों की कमी के कारण भी केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन घट रहे हैं। केंद्रीय विद्यालयों को अपना इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारना होगा। – लता अग्रवाल चित्तौडग़ढ़
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निजी स्कूलों में बेहतर सुविधाएं
निजी स्कूलों में बेहतर सुविधाएं अधिक आकर्षक लगती हैं, जिसके कारण केंद्रीय विद्यालयों के नामांकन में कमी आई है। शहरों में कई अन्य अच्छे स्कूलों के विकल्प उपलब्ध होने से अभिभावकों का रुझान केंद्रीय विद्यालयों से कम हो रहा है। केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों और संसाधनों की कमी भी एक बड़ा कारण है। – राजन गेदर, सूरतगढ़
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अभिभावकों की बदलती सोच
पिछले पांच वर्षों में केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन घटने का प्रमुख कारण अभिभावकों की बदलती सोच है। आज के माता-पिता अपने बच्चों के लिए ग्लोबल एक्सपोजर, व्यक्तिगत ध्यान और भविष्योन्मुखी शिक्षा चाहते हैं। निजी स्कूलों की आधुनिक सुविधाएं, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और करियर-केंद्रित दृष्टिकोण केंद्रीय विद्यालयों की पारंपरिक छवि को चुनौती दे रहे हैं। यह नई सोच, जो गुणवत्तापूर्ण और समग्र शिक्षा पर जोर देती है, युवा पीढ़ी के सपनों को पंख देने में केंद्रीय विद्यालयों को पीछे छोड़ रही है। – इशिता पाण्डेय, कोटा
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निजी स्कूल के प्रति बढ़ता रुझान
शहरी क्षेत्रों में, कई माता-पिता अब निजी अंतरराष्ट्रीय या आईसीएसई-संबद्ध स्कूलों का चयन कर रहे हैं जो आधुनिक बुनियादी ढांचे, छोटे आकार की कक्षाएं, पाठ्येतर गतिविधियों की विविधता और तकनीक-एकीकृत कक्षाएं प्रदान करते हैं। – अजीतसिंह सिसोदिया- खारा, बीकानेर
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संसाधनों की अपर्याप्तता
निजी स्कूलों में आधुनिक सुविधाएं आकर्षण का केंद्र हैं। केंद्रीय विद्यालयों में स्थानांतरण की समस्या जटिल होने के साथ-साथ नए केंद्रीय विद्यालयों का न खुल पाना, सीटों का सीमित रहना, ऑनलाइन शिक्षा, केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों की कमी, संसाधनों की अपर्याप्तता और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की धीमी गति के कारण भी छात्र संख्या में गिरावट आई है। – बाबूलाल गुप्ता, जयपुर
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बुनियादी सुविधाओं का अभाव
केंद्रीय विद्यालयों में वर्ष दर वर्ष घटते नामांकन के पीछे संभवत: शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या है जो आधुनिक सुविधाएं और विभिन्न शिक्षण विकल्प प्रदान करते हैं। कई अभिभावक अब इन निजी स्कूलों को प्राथमिकता दे रहे हैं। टियर-2 और टियर-3 शहरों में किफायती, सीबीएसई से संबद्ध निजी स्कूलों का उदय भी संभावित आवेदकों को केंद्रीय विद्यालयों से दूर कर रहा है। इसके अतिरिक्त शिक्षकों और संसाधनों की कमी भी केंद्रीय विद्यालयों की लोकप्रियता को प्रभावित कर रहा है। -डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
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