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आतंकवाद से लड़ाई में अर्थव्यवस्था की भी जीत

प्रो. गौरव वल्लभ, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ

जयपुरAug 01, 2025 / 02:19 pm

Shaily Sharma

भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को प्राय: राष्ट्रीय सुरक्षा और भू-राजनीतिक स्थिरता के दृष्टिकोण से देखा गया है, जबकि यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी विचारणीय है। आतंकवाद केवल एक मानवीय और सुरक्षा संकट नहीं, बल्कि यह आर्थिक गतिरोध भी है। हर आतंकी घटना तबाही और विनाश के अलावा निवेश, रोजगार और विकास पर भी भयावह प्रभाव छोड़ती है। मूडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, आतंकी हमले झेलने वाले देशों की जीडीपी में उस वर्ष 0.5 से 0.8 प्रतिशत अंकों की गिरावट आती है, निवेश में 2.1 प्रतिशत तक की कमी देखी जाती है और सरकार के लिए उधारी की लागत 81 आधार अंकों तक बढ़ जाती है। इस क्षति की आर्थिक गूंज वर्षों तक बनी रह सकती है।
2000 से 2014 के बीच भारत दस सबसे अधिक आतंकवाद-प्रभावित देशों में रहा। इस पृष्ठभूमि में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल रणनीतिक अभियान नहीं, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य की दिशा तय करने वाला निर्णायक मोड़ है। तीनों सेनाओं का यह साझा ऑपरेशन सटीकता, पेशेवराना अंदाज और उद्देश्य की त्रयी पर आधारित था। इसमें भारत की पश्चिमी सीमा पर मौजूद नौ प्रमुख आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया गया और 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया। लेकिन इसका सबसे बड़ा प्रभाव निवेशकों और उद्योगों में उपजी सुरक्षा की वह भावना है, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की आधारशिला होती है।
देश का रक्षा उत्पादन क्षेत्र इसका सबसे प्रत्यक्ष लाभार्थी बना है। यूरोप और पश्चिम एशिया में जारी संघर्षों के कारण वैश्विक रक्षा खर्च में वृद्धि हो रही है। नाटो देश अपनी जीडीपी का 5 प्रतिशत रक्षा पर खर्च कर रहे हैं, लेकिन उत्पादन मांग से पीछे है। भारत अब इस अंतर को भरने की स्थिति में आ गया है।
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत में बने रक्षा उपकरणों की विश्वसनीयता को सिद्ध किया है। पश्चिमी देशों के महंगे हथियारों और चीनी उपकरणों की गुणवत्ता की तुलना में भारत एक सस्ता, भरोसेमंद और युद्ध-परीक्षित विकल्प बनकर उभरा है। ब्राजील, अर्मेनिया जैसे देश ‘आकाश एयर डिफेंस’, ‘गरुड़ आर्टिलरी’ और संचार उपकरणों में रुचि दिखा रहे हैं। भारत का रक्षा निर्यात 2013-14 में 686 करोड़ रुपए से बढ़कर 2023-24 में 23,622 करोड़ रुपए पहुंच गया है। निजी क्षेत्र की भागीदारी भी अब निर्णायक बन चुकी है। कभी नगण्य से निजी उद्यम अब रक्षा उत्पादन का 21 प्रतिशत हिस्सा हैं और उनकी क्षमताएं तेजी से बढ़ रही हैं। ऑपरेशन सिंदूर ने उनकी साख को और सुदृढ़ किया है। यह गति रोजगार सृजन को भी बढ़ावा दे रही है। लखनऊ में ब्रह्मोस संयंत्र से 10,000 प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नौकरियां संभावित हैं। अनुसंधान, लॉजिस्टिक्स, विनिर्माण और सहायता सेवाओं में इसका प्रभाव रक्षा क्षेत्र को एक कई गुना फायदे वाला उद्योग बना रहा है।
इस अभियान ने सटीक युद्ध और वास्तविक समय निगरानी के महत्त्व को रेखांकित किया है। इससे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और ड्रोन जैसे सहयोगी क्षेत्रों में तेजी से वृद्धि हुई है। भारत 26,000 करोड़ रुपए की लागत से 2029 तक 52 रक्षा उपग्रहों की ‘स्पेस शील्ड’ तैयार कर रहा है, जो मिसाइल ट्रैकिंग और सीमा निगरानी में सहायक होंगे। भारत की ड्रोन इंडस्ट्री, जो पहले ही दुनिया में तीसरे स्थान पर है, अब तेजी से विस्तार कर रही है। देश में 550 से अधिक ड्रोन कंपनियां और 5,500 पायलट हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद ये प्लेटफॉर्म अब निर्यात योग्य उत्पाद बन गए हैं, जिनमें इंडोनेशिया और अफ्रीकी देशों ने रुचि जताई है।
एक महत्त्वपूर्ण पहलू सिंधु जल संधि से जुड़ा है। 1960 से भारत को सिंधु जल प्रणाली का केवल 20 प्रतिशत उपयोग करने की अनुमति है, जिससे जम्मू-कश्मीर की कृषि और जल विद्युत क्षमता अवरुद्ध रही। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत हुई है और अब वह इस संधि पर पुनर्विचार- पुन:व्याख्या करवाने की स्थिति में है। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर की केवल 7 लाख एकड़ भूमि सिंचित है, जबकि 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है। सिंचाई परियोजनाओं के तेजी से पूर्ण होने पर किसानों की आय, फसल विविधता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में सुधार संभव है। राज्य की 20,000 मेगावाट की जल विद्युत क्षमता में से केवल 3,263 मेगावाट का ही दोहन हुआ है। यदि यह क्षमता विकसित हो सके तो ऊर्जा की कमी घटेगी, डीजल पर निर्भरता कम होगी, उत्तर ग्रिड मजबूत होगा और हरित नौकरियों के साथ पूंजी निवेश भी बढ़ेगा। भारत द्वारा नदियों के प्रवाह और डेटा साझा प्रक्रिया को रोकने से पाकिस्तान के बुवाई चक्र में रणनीतिक अनिश्चितता आई है, जिससे उसकी निर्यात विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।
सबसे अहम यह है कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के प्रति जोखिम धारणा को घटाया है। अस्थिर वैश्विक स्थिति में निवेशक स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं। भारत की संतुलित, संयमित और नियम-आधारित प्रतिक्रिया ने उसे एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया है, जिससे भारत में निवेश का राजनीतिक जोखिम कम हुआ है। इससे सरकार और कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए ऋण लेना सस्ता हो जाता है और रक्षा, अवसंरचना और स्वच्छ ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में दीर्घकालिक विदेशी निवेश के रास्ते खुलते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि सुरक्षा से समृद्धि तक की भारत की यात्रा में एक प्रेरक शक्ति है। यह उस विकसित भारत का प्रतीक है, जो अपने सामरिक कौशल को आर्थिक अवसर में बदलना जानता है।

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