सम्पादकीय : जांच एजेंसियों के काम में पारदर्शिता ज्यादा जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग के उसकी ओर से दर्ज मामलों में दोष सिद्धि की दर दस फीसदी से भी कम होने पर चिंता जताते हुए फटकार लगाई है।


सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग के उसकी ओर से दर्ज मामलों में दोष सिद्धि की दर दस फीसदी से भी कम होने पर चिंता जताते हुए फटकार लगाई है। साथ ही कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि ईडी को किसी ठग की तरह नहीं बल्कि कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोष सिद्धि दर कम होना न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खतरा है, बल्कि यह एजेंसी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। हालांकि इसमें दो राय नहीं कि हमारे यहां ईडी व सीबीआइ जैसी जांच एजेंसियों के साथ राज्यों में भी विभिन्न जांच एजेंसियां कई जटिल मामलों की बारीकी से जांच कर दोषियों को सजा दिलाने के काम में जुटी हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी जांच एजेंसियों की पारदर्शी कार्यप्रणाली के संदर्भ में गौर करने योग्य है। गाहे-बगाहे जांच एजेंसियां अपनी जांच प्रक्रिया को लेकर आलोचनाओं के घेरे में आती रहती हैं। पिछले पांच वर्षों में दर्ज मामलों में 1० प्रतिशत से कम में दोष सिद्धि हुई। दूसरी ओर, सीबीआइ की दोष सिद्धि दर 65 से 70 फीसदी बताई जाती है जो वैश्विक मानकों की तुलना में बेहतर है। अमरीका की बात करें तो फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआइ) की दोष सिद्धि दर लगभग 80-85 प्रतिशत है, जबकि ब्रिटेन में क्रॉउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) के तहत यह दर 8५ प्रतिशत के आसपास रहती है। यूरोपीय देशों, जैसे जर्मनी और फ्रांस में भी दोष सिद्धि दर 75-80 प्रतिशत के बीच है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि किसी भी जांच एजेंसी की जांच में दोष सिद्धि दर तब ही पर्याप्त हो सकती है जब जांच प्रक्रिया प्रभावी हो। हमारे यहां अपर्याप्त फॉरेंसिक सुविधाएं, जांच में देरी और प्रभावशाली आरोपियों द्वारा कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग जैसे कारणों से भी दोष सिद्धि दर कमजोर होती है। यह भी देखा जाता है कि जांच एजेंसियां गबन और भ्रष्टाचार तथा दूसरे अपराधों के मामले में जांच तो जोर-शोर से करती है लेकिन समुचित साक्ष्यों के अभाव में अदालतों में दोष सिद्धि तक नहीं पहुंच पाती।
जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि वह पारदर्शी और पुख्ता सबूतों के आधार पर जांच के काम को आगे बढ़ाए। जरा सी भी लापरवाही आरोपी को बरी करा सकती है। फॉरेंसिक सुविधाओं को मजबूत करने के साथ-साथ जांच अधिकारियों को प्रशिक्षण देना भी जरूरी है। साथ ही जांच एजेंसियों में स्वतंत्र अभियोजन तंत्र की स्थापना भी होनी चाहिए। जांच एजेंसियों को यह ध्यान रखना होगा कि बिना पुष्ट सबूतों के जांच न केवल किसी की भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता खतरे में डालने वाली हो सकती है बल्कि एजेंसियों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। सरकार और इन एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जांच निष्पक्ष हो जिसमें कानून का शासन सर्वोपरि रहे।
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