भारत ने उदारीकरण के बावजूद कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी मनमानी करने की पूरी छूट नहीं दी क्योंकि, ऐसा करना न सिर्फ कृषि क्षेत्र और किसानों के लिए बड़ा खतरा बनता, बल्कि आम लोगों की सेहत पर भी कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शिकंजा कस जाता। सीमित दायरे में मिली छूट का नतीजा भी कोई कम भयावह नहीं है। खेतों में जहर डालने के बाद होने वाली सेहत संबंधी समस्याओं के निदान के नाम पर बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों का नया शिकंजा भी अब दिखने ही लगा है। उदारीकरण और डब्ल्यूटीओ के गठन के करीब 35 साल बाद अब अमेरिका इस बात से निराश है कि व्यापार के भू-मंडलीकरण से जो ‘अमृत-कलश’ निकला वह पूरी तरह अमेरिका के हाथ नहीं लगा। वह इस बात से भी हैरान है कि भारत और चीन अपेक्षाकृत ज्यादा फायदा उठा ले गए। राष्ट्रपति ट्रंप ने अभी जो टैरिफ वॉर शुरू किया है, उसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भारत में अमेरिकी सामान पर अपेक्षाकृत ज्यादा टैरिफ होने या रूस से ईंधन की खरीद का मुद्दा तो सिर्फ फौरी कारण भर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ कर दिया कि भारतीय किसानों-पशुपालकों और मछुआरों के हितों से कोई समझौता नहीं करेंगे, भले ही इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
उदारीकरण से सबसे ज्यादा जिस सेक्टर को फायदा हुआ वह है – सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी)। दुनियाभर की आईटी कंपनियां मालामाल हुईं। लाभ की नदी से निकली नहरों ने कई दूसरे सेक्टरों को भी फायदा पहुंचाया। अब हम इलेक्ट्रॉनिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के एक नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं, जिसने कई नई चिंताओं को भी जन्म दिया है। एक राष्ट्र के रूप में चिंतित होने वाली बात यह है कि प्रयोगधर्मी बड़ी आईटी कंपनियां अमेरिकी हैं और अब वे राजनीतिक और सामरिक क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं। इसका नतीजा यह होगा कि भावी युद्ध के मैदानों में आईटी कंपनियों का दबदबा होगा और उसी धुरी में अमेरिका। रूस से युद्ध में यूक्रेन का संचार नष्ट हो जाने पर एलन मस्क की स्टारलिंक ने उसकी सहायता की। अब अचानक वह सहायता बंद करने की बात कहने लगे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीनी सैटेलाइट ने भारत के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं पाकिस्तान तक पहुंचाईं। वर्तमान युद्धों में ड्रोन का बढ़ता इस्तेमाल और भविष्य के युद्धों में एआई जनित उपकरणों की संभावित भूमिका आईटी कंपनियों को सामरिक दृष्टि से अहम और प्रभावी बनाती है।
अब हम उस युग में नहीं हैं, जहां वैश्वीकरण केवल व्यापार और सहयोग का माध्यम था। अब तकनीक, डेटा और सप्लाई चेन को हथियार बनाया जा रहा है। अमेरिका और चीन जैसे राष्ट्र अपनी आर्थिक और तकनीकी ताकत का उपयोग अन्य देशों पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं। भारत को यह समझने की जरूरत है कि खुले बाजार की सोच अब पर्याप्त नहीं। अमेरिका का 50 फीसदी टैरिफ लगाना, माइक्रोसॉफ्ट और शिपिंग कंपनियों का भारत में रूसी रिफायनरी नायरा एनर्जी को ब्लॉक करना, अमेरिकी कंपनी जीई एयरोस्पेस का फाइटर इंजन की डिलीवरी देर करना – भारत के महत्त्वाकांक्षी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) प्रोग्राम को प्रभावित करना – जैसी घटनाएं न सिर्फ कूटनीतिक बल्कि रणनीतिक चेतावनी भी हैं। स्वदेशीकरण में आगे बढ़ने के बावजूद फिलहाल भारत अपने सैन्य, तकनीकी और ऊर्जा क्षेत्रों में कई महत्त्वपूर्ण उपकरणों और प्लेटफॉर्म के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर है। यह निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है। इसलिए भारत को वैश्विक निर्भरता खत्म करने पर गंभीरता से विचार करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों यह स्पष्ट संकेत दे भी दिया है कि हम उन्हीं वस्तुओं का इस्तेमाल करें, जिसके निर्माण में भारतीय पसीना बहा हो। ग्लोबलाइजेशन का यह सबक क्या हमें आगे का रास्ता बताएगा?