रतन थियाम को असाधारण बनाने वाली बात केवल उनकी मंचकला में महारत ही नहीं थी, बल्कि उनकी आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराई थी। उन्होंने प्रदर्शन नहीं बनाए, उन्होंने अपने अनुभवों को मूर्त रूप दिया। प्रत्येक निर्माण राजनीति, पहचान और मानवता पर एक कलात्मक ध्यान था। उनका काम मैतेई संस्कृति में जड़ों वाला, लेकिन वैश्विक कथाओं से प्रेरित भाषा और भूगोल से परे था। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पहले उत्तर-पूर्वी निदेशक के रूप में, उन्होंने थिएटर कलाकारों की एक पीढ़ी के लिए दरवाजे खोले, जो उन्हें एक सलाहकार और प्रेरक के रूप में देखते थे। थिएटर शिक्षा शास्त्र में उनका योगदान भी गहरा था। उन्होंने केवल अभिनेताओं को प्रशिक्षित नहीं किया, उन्होंने चिंतकों को जन्म दिया। मणिपुरी कला और संस्कृति के प्रति उनका प्रेम अटूट था। भले ही वे विश्वभर में घूमे, लेकिन वे अपनी मिट्टी में रचे-बसे रहे। उन्होंने मणिपुर की कहानियों को गर्व के साथ आगे बढ़ाया, मंच का उपयोग कर दुनिया को इसके संघर्ष और सौंदर्य के बारे में बताया और इसके लिए, हर मणिपुरी आज उन्हें गर्व से अपना कह सकता है। रतन थियाम एक ऐसा व्यक्ति था, जो अपनी जड़ों को कभी नहीं भूला, भले ही वह वैश्विक ख्याति तक पहुंचा।
रतन थियाम को अनेक सम्मान प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से लेकर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड तक से नवाजा। उन्होंने मणिपुर में जवाहरलाल नेहरू डांस अकादमी के निदेशक के रूप में भी सेवा की। उनके दूरदर्शी थिएटर टुकड़े – कविता, राजनीतिक चिंतन और दृश्यात्मक महारत से भरे हुए थे। उन्हें 1987 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1989 में पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया। इस अद्भुत रंगमंच के रसिया को देशभर से संवेदनाएं मिलीं। रतन थियाम को मणिपुरी थिएटर और संस्कृति में उनके अमूल्य योगदान के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
रतन थियाम की विरासत मणिपुरी नृत्य की तालों, भारतीय नाटक के पन्नों और हर उस मंच की आत्मा में बनी रहेगी, जिसने उन्हें सम्मान दिया। उनके दृष्टिकोण ने भारतीय थिएटर को वैश्विक सार्थकता तक ऊंचा किया, और उनका विदा होना एक युग के अंत को दर्शाता है लेकिन उस प्रभाव का नहीं, जो वे पीछे छोड़ गए।
मेरे लिए रतन थियाम का विदा होना एक दोस्त का जाना और एक अद्भुत शख्सियत का अलग होना है, जो लंबे समय तक अधूरापन छोड़ जाता है। लेकिन वे भारत के महान और हमारे समय के दार्शनिक रंगमंच चितेरे थे।