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सदा यादों में रहेंगे भारतीय दार्शनिक रंगमंच के चितेरे

प्रो. (डॉ.) के.के. रत्तू
पूर्व उप महानिदेशक, दूरदर्शन

जयपुरJul 24, 2025 / 06:10 pm

Neeru Yadav

हमारे समय के भारतीय रंगमंच के अनूठे चेहरे और परंपरा की सहज अभिव्यक्ति के जनक, रंगमंच के बादशाह रतन थियाम अब हमारे बीच नहीं रहे। वे अब केवल हमारी यादों में रहेंगे।
भारत में ‘थिएटर ऑफ रूट्स’ की शुरुआत करने वाले पद्मश्री रतन थियाम भारतीय रंगमंच और नाटककारी के एक ऐसे हस्ताक्षर और एक हरफनमौला व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति की जीवंत प्रस्तुति के साथ रंगमंच पर पारंपरिक संगीत शैलियों को जिस अंदाज में पेश किया, वह केवल मणिपुर राज्य की संस्कृति ही नहीं थी, बल्कि पूरे भारत की एक आकर्षक पहचान थी, जिसे उन्होंने जीवित रखा और अंतिम सांस तक निभाया।
रतन थियाम ने भारतीय नाट्य शास्त्र, प्राचीन ग्रीक नाटक, जापानी नोह थिएटर और अंध युग जैसे नाटकों के साथ मणिपुरी, विशेषकर मैतेई भाषा में प्रस्तुति देकर अपनी शख्सियत और रंगमंचीय समझ का लोहा मनवाया। आज समूचा भारत इस महान हस्ती के बिछोह पर शोक मना रहा है। 23 जुलाई को रतन थियाम का 77 वर्ष की आयु में मणिपुर में देहांत हो गया।
भारत के सबसे प्रशंसित थिएटर निर्देशकों, नाटककारों और कवियों में से एक, रतन थियाम ने अपने पीछे एक विशाल विरासत छोड़ी है, जिसने समकालीन भारतीय रंगमंच को गहराई से आकार दिया। आधुनिक कथात्मक रूप के साथ पारंपरिक मणिपुरी सौंदर्यशास्त्र के सहज मिश्रण के लिए जाने जाते थे और आज उनका काम संस्कृतियों और महाद्वीपों में गूंजता है। उनका थिएटर समूह, कोरस रेपरट्री थिएटर भारत के लिए एक सांस्कृतिक राजदूत बन गया, जिसने अमरीका, फ्रांस, जापान और कई यूरोपीय देशों में प्रदर्शन किए।
रतन थियाम का इस धरती से विदा होना वास्तव में एक किंवदंती का अंत है। वे भारतीय रंगमंच के रत्न थे और उनकी शाश्वत विरासत हमारी यादों में ताजा रहेगी। मुझे याद है रतन थियाम के साथ मेरी आखिरी मुलाकात भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता में, जहां सागर सरहदी (फिल्म निर्माता), रतन थियाम और मैं एक संवाद गोष्ठी में शामिल थे, जिसमें भारतीय रंगमंच, फिल्म और टेलीविजन के समन्वय को भारतीय संस्कृति के लिए एक नए मंच के रूप में बताया गया था। वे दोस्तों के दोस्त और मणिपुरी नृत्य की निश्चल शैली के संजीदा दोस्त थे, जो अब केवल यादों में बसे हैं। आज पद्मश्री रतन थियाम के निधन के साथ, न केवल मणिपुर, बल्कि पूरे देश और वास्तव में प्रदर्शन कला की दुनिया ने एक महान व्यक्तित्व को खो दिया है। 20 जनवरी, 1948 को पश्चिम बंगाल के नबद्वीप में जन्मे, रतन थियाम का पालन-पोषण इंफाल के हाओबम दीवान लेन में हुआ। उनका जन्म एक प्रसिद्ध कलाकार परिवार में हुआ था। उनके पिता गुरु थियाम तरुणकुमार एक सम्मानित मणिपुरी नृत्य गुरु थे और उनकी मां बिलासिनी देवी एक प्रसिद्ध नर्तकी थीं। थियाम की कला मंच से परे फैली थी और वे एक चित्रकार, कवि, प्रकाश डिजाइनर, संगीतकार और दृश्यात्मक कहानी कहने के वास्तुकार भी थे।
उन्हें यह सब विरासत में मिला था, क्योंकि उनके पिता मणिपुरी शैली के प्रख्यात नर्तक थे। मणिपुरी नृत्य में डूबे एक कलात्मक परिवार में जन्मे रतन थियाम की नियति अपनी मातृभूमि की तालों, मिथकों और भावनाओं से जटिल रूप से जुड़ी थी। फिर भी, उन्होंने कभी खुद को क्षेत्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने मणिपुर की कहानियों, दर्शन और सौंदर्यशास्त्र को अपने साथ लिया और उन्हें एक वैश्विक शब्दावली दी, जिसे न्यूयॉर्क, पेरिस, टोक्यो और उससे आगे सराहना मिली। इंफाल के केंद्र में स्थित उनका कोरस रेपरट्री थिएटर एक प्रकाशस्तंभ बन गया, जिसने उत्तर-पूर्व की समृद्ध विरासत को रोशन किया और प्राचीन परंपरा व आधुनिक अभिव्यक्ति के बीच की खाई को पाटा।
मुझे याद है मणिपुर प्रवास और मणिपुर टेलीविजन पर काम करते हुए कई शामें रतन थियाम के इस अद्भुत रंगमंच और मंच पर बैठकर विश्वभर की बहसों और कलाकारों से मिलते हुए बिताईं। अब यह मेरी यादों की एक उज्ज्वल विरासत है, जिसमें रतन थियाम हमेशा जीवित रहेंगे।
रतन थियाम को असाधारण बनाने वाली बात केवल उनकी मंचकला में महारत ही नहीं थी, बल्कि उनकी आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराई थी। उन्होंने प्रदर्शन नहीं बनाए, उन्होंने अपने अनुभवों को मूर्त रूप दिया। प्रत्येक निर्माण राजनीति, पहचान और मानवता पर एक कलात्मक ध्यान था। उनका काम मैतेई संस्कृति में जड़ों वाला, लेकिन वैश्विक कथाओं से प्रेरित भाषा और भूगोल से परे था। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पहले उत्तर-पूर्वी निदेशक के रूप में, उन्होंने थिएटर कलाकारों की एक पीढ़ी के लिए दरवाजे खोले, जो उन्हें एक सलाहकार और प्रेरक के रूप में देखते थे। थिएटर शिक्षा शास्त्र में उनका योगदान भी गहरा था। उन्होंने केवल अभिनेताओं को प्रशिक्षित नहीं किया, उन्होंने चिंतकों को जन्म दिया। मणिपुरी कला और संस्कृति के प्रति उनका प्रेम अटूट था। भले ही वे विश्वभर में घूमे, लेकिन वे अपनी मिट्टी में रचे-बसे रहे। उन्होंने मणिपुर की कहानियों को गर्व के साथ आगे बढ़ाया, मंच का उपयोग कर दुनिया को इसके संघर्ष और सौंदर्य के बारे में बताया और इसके लिए, हर मणिपुरी आज उन्हें गर्व से अपना कह सकता है। रतन थियाम एक ऐसा व्यक्ति था, जो अपनी जड़ों को कभी नहीं भूला, भले ही वह वैश्विक ख्याति तक पहुंचा।
रतन थियाम को अनेक सम्मान प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से लेकर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड तक से नवाजा। उन्होंने मणिपुर में जवाहरलाल नेहरू डांस अकादमी के निदेशक के रूप में भी सेवा की। उनके दूरदर्शी थिएटर टुकड़े – कविता, राजनीतिक चिंतन और दृश्यात्मक महारत से भरे हुए थे। उन्हें 1987 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1989 में पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया। इस अद्भुत रंगमंच के रसिया को देशभर से संवेदनाएं मिलीं। रतन थियाम को मणिपुरी थिएटर और संस्कृति में उनके अमूल्य योगदान के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
रतन थियाम की विरासत मणिपुरी नृत्य की तालों, भारतीय नाटक के पन्नों और हर उस मंच की आत्मा में बनी रहेगी, जिसने उन्हें सम्मान दिया। उनके दृष्टिकोण ने भारतीय थिएटर को वैश्विक सार्थकता तक ऊंचा किया, और उनका विदा होना एक युग के अंत को दर्शाता है लेकिन उस प्रभाव का नहीं, जो वे पीछे छोड़ गए।
मेरे लिए रतन थियाम का विदा होना एक दोस्त का जाना और एक अद्भुत शख्सियत का अलग होना है, जो लंबे समय तक अधूरापन छोड़ जाता है। लेकिन वे भारत के महान और हमारे समय के दार्शनिक रंगमंच चितेरे थे।

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