संपादकीय : सुरक्षा तंत्र के लिए चेतावनी है फर्जी दूतावास
गाजियाबाद में एक फर्जी दूतावास का खुलासा और आरोपी की गिरफ्तारी ने देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस व्यक्ति ने पिछले डेढ़ दशक से राष्ट्रीय राजधानी के नजदीकी क्षेत्र में काल्पनिक देशों के नाम पर दूतावास चला रखा था, वह न केवल नागरिकों को नौकरी और वीजा […]


गाजियाबाद में एक फर्जी दूतावास का खुलासा और आरोपी की गिरफ्तारी ने देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस व्यक्ति ने पिछले डेढ़ दशक से राष्ट्रीय राजधानी के नजदीकी क्षेत्र में काल्पनिक देशों के नाम पर दूतावास चला रखा था, वह न केवल नागरिकों को नौकरी और वीजा के नाम पर ठग रहा था, बल्कि हवाला और अन्य संदिग्ध गतिविधियों से भी जुड़ा हुआ था। एसटीएफ की यह कार्रवाई सतही तौर पर एक ठगी के मामले का खुलासा प्रतीत होती है, पर इसके पीछे छिपी संभावित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की परतें अभी खुलना बाकी है, जो इस मामले को और गंभीर बना रही है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि आरोपी के पास पूर्व में सेटेलाइट फोन भी मिला था, जो सामान्य व्यक्ति के पास नहीं होना चाहिए। ऐसे उपकरणों की उपलब्धता और उनका गैरकानूनी इस्तेमाल यह संकेत देता है कि मामला महज ठगी का नहीं, बल्कि संभवतः खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ाव का भी हो सकता है। इस दृष्टिकोण से यह आवश्यक हो जाता है कि सुरक्षा एजेंसियां इस पूरे नेटवर्क की गहनता से जांच करें।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह फर्जी दूतावास इतने लंबे समय तक बिना किसी रोक-टोक के कैसे संचालित होता रहा? क्या स्थानीय प्रशासन और खुफिया एजेंसियों की निगरानी व्यवस्था इतनी कमजोर थी कि एक व्यक्ति इतने वर्षों तक भोले-भाले नागरिकों को मूर्ख बनाता रहा और किसी को भनक तक नहीं लगी। यह घटना सुरक्षा तंत्र की निष्क्रियता और खुफिया तंत्र की विफलता को भी उजागर करती है। किसी भी देश की सुरक्षा व खुफिया एजेंसी उसके आंख, नाक और कान होती है। इनका काम देश के बाहर होने वाली विरोधी गतिविधियों पर नजर रखने के साथ ही आंतरिक संदिग्ध गतिवधियों पर नजर रखना भी है। क्योंकि, इनकी एक चूक से देश को जान व माल का भारी नुकसान हो सकता है।
यह समय है जब केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ऐसे मामलों पर ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाएं। प्रत्येक अज्ञात या संदिग्ध विदेशी संस्थान या संगठन की पृष्ठभूमि की नियमित जांच अनिवार्य की जाए। साथ ही यह आवश्यक है कि आम नागरिकों को जागरूक किया जाए कि वे किसी भी विदेशी नौकरी या वीजा के प्रलोभन में फंसने से पहले संबंधित सरकारी विभागों से पुष्टि करें। इस प्रकरण ने हमारी आंतरिक सुरक्षा प्रणाली में खामियों को भी उजागर किया है, जिन्हें दूर करना अब प्राथमिकता होनी चाहिए। फर्जी दूतावास जैसे मामलों को केवल ठगी के नजरिए से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य से देखा जाना चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
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