सवाल यह है कि क्या भारत को भी ऐसा ही कानून लाना चाहिए? पहले अमेरिका का जीनियस एक्ट क्या है, इसे समझते हैं। जीनियस एक्ट को अमेरिकी कांग्रेस ने इसी माह पारित किया है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस नए कानून पर हस्ताक्षर किए। यह कानून विशेष रूप से स्टेबलकॉइन्स को रेग्युलेट करता है, यानी ऐसी डिजिटल करेंसी, जो अमेरिकी डॉलर या किसी अन्य सुरक्षित संपत्ति के साथ 1:1 अनुपात में जुड़ी होती हैं।
इस एक्ट के अनुसार हर स्टेबलकॉइन को अमेरिकी डॉलर या सरकारी बॉन्ड जैसी सुरक्षित संपत्तियों से पूरी तरह समर्थित होना होगा। सभी जारीकर्ता संस्थाओं को अपनी एसेट की मंथली रिपोर्ट पब्लिक करनी होगी। यदि कोई कंपनी दिवालिया हो जाती है तो सबसे पहले स्टेबलकॉइन होल्डर्स को भुगतान किया जाएगा। केवल लाइसेंस प्राप्त संस्थाएं स्टेबलकॉइन जारी कर सकेंगी। किसी स्टेबलकॉइन पर इंटरेस्ट या रिटर्न देने की अनुमति नहीं होगी। स्टेबलकॉइन को‘सिक्योरिटी’या‘कमोडिटी’नहीं माना जाएगा, जिससे रेग्युलेशन सरल बनता है।
अब भारत में क्या वस्तुस्थिति है? इस पर बात करते हैं। वर्ष 2022 में भारत में केंद्र सरकार ने क्रिप्टो करेंसी से होने वाली आय पर 30 प्रतिशत टैक्स और 1 प्रतिशत टीडीएस लागू किया था, लेकिन अब तक न तो कोई औपचारिक कानून बना है और न ही क्रिप्टो करेंसी को कानूनी मान्यता मिली है।
दूसरी ओर आरबीआई सार्वजनिक रूप से क्रिप्टो करेंसी के खिलाफ रहा है। वह इसे फाइनेंशियल स्टेबिलिटी और मौद्रिक नीति के लिए खतरा मानता है, जबकि केंद्र सरकार अब बैलेंस बनाने की कोशिश कर रही है। वित्त मंत्रालय और नीति आयोग मिलकर इस संदर्भ में एक पॉलिसी पेपर लाने की तैयारी में हैं।
बड़ा सवाल यह है कि भारत के लिए जीनियस एक्ट जैसा कानून क्यों जरूरी है? दरअसल, भारत में हजारों स्टार्टअप और लाखों इन्वेस्टर्स क्रिप्टो करेंसी से जुड़े हुए हैं, लेकिन नियमों के अभाव में उन्हें या तो विदेशों में जाकर रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है या जोखिम में काम करना पड़ता है। एक कानून से यह अनिश्चितता समाप्त होगी। भारत में डिजिटल भुगतान , पहचान (आधार) और डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर से जो क्रांति आई है, उसे स्टेबलकॉइन के साथ और मजबूती मिल सकती है। लेकिन सबकुछ इतना सरल नहीं है।
भारत को न केवल सावधानी बरतने की जरूरत है, बल्कि ढेरों चुनौतियां भी मौजूद हैं। सर्वप्रथम, यदि निजी कंपनियां डिजिटल करेंसी जारी करती हैं तो यह आरबीआई की मौद्रिक नीति को प्रभावित कर सकती है। करेंसी कंट्रोल से बाहर जा सकती है, जिससे इन्फ्लेशन और इंटरेस्ट रेट जैसे मुद्दों पर असर पड़ सकता है। दूसरा, ज्यादा सख्त लाइसेंसिंग व्यवस्था (जैसा अमेरिकी जीनियस एक्ट में है) छोटे स्टार्टअप्स को पीछे कर सकती है। तीसरा, यदि प्रत्येक लेन-देन का रिकॉर्ड सरकार या रेग्युलेटर के पास होता है तो यह लोगों की डिजिटल प्राइवेसी और स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा कर सकता है। चौथा, यदि और एंटी मनी लॉन्ड्रिंग व्यवस्था मजबूत नहीं हुई तो स्टेबलकॉइन का प्रयोग अवैध कार्यों में हो सकता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
वैसे, यदि जीनियस एक्ट जैसा कानून भारतीय संदर्भ में संशोधित करके लाया जाए तो यह क्रांति भी ला सकता है। भारत जरूरतों के अनुसार जीनियस मॉडल को अपने अनुरूप अपना सकता है जैसे व को अधिक मजबूत बनाया जाए, जिससे टेक्नोलॉजी आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम मजबूत हो तथा अवैध लेन-देन पर अंकुश लगे। भारत विदेशी करेंसी के बजाय भारतीय रुपये को आधार मानकर स्टेबलकॉइन ला सकता है। भारत छोटे उद्यमियों को ध्यान में रखकर सरल नियम बना सकता है। समय की मांग है कि भारत वैश्विक क्रिप्टो क्रांति का न केवल हिस्सा बने, बल्कि इसका नेतृत्व भी करे।