2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रही और इसके पीछे ओबीसी और दलित मतदाताओं के उस वर्ग की उदासीनता को जिम्मेदार माना गया, जिसका 2014 और 2019 के चुनाव में अप्रत्याशित रूप से भरपूर समर्थन मिला था, उससे पार्टी के कुछ रणनीतिकारों का मानना था कि किसी ओबीसी चेहरे को राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलनी चाहिए। इससे ओबीसी मतदाताओं में पकड़ मजबूत होगी। लिहाजा ओबीसी वर्ग से आने वाले संभावित चेहरों पर मंथन भी हुआ है। लेकिन, कुछ दूसरे रणनीतिकारों का कहना रहा कि चूंकि प्रधानमंत्री मोदी खुद ओबीसी वर्ग से आते हैं, ऐसे में संगठन की कमान भी ओबीसी के हवाले होने से पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग प्रभावित होगी। लेकिन, इस तर्क को यह कहकर खारिज करने की कोशिश हुई कि मोदी को जनता उनकी जाति नहीं बल्कि उनके हिंदू हृदय सम्राट जैसी छवि और गवर्नेंस मॉडल पर वोट देती है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, इस बीच अप्रैल में जब मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर दी तो अब पार्टी ओबीसी अध्यक्ष बनाने के दबाव से कुछ हद तक मुक्त हो गई है। संघ और भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर सोशल इंजीनियरिंग से ज्यादा उसके चुनावी प्रबंधन के कौशल को देखे जाने की जरूरत है। संघ और पार्टी के कुछ रणनीतिकार पार्टी के कोर वोटर वर्ग से ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के पक्षधर हैं।
संघ और भाजपा के बीच मंथन जारी
सूत्रों के मुताबिक संघ और भाजपा के बीच अभी तय नहीं हो पाया है कि अध्यक्ष किस वर्ग और देश के किस हिस्से का होगा। इसको लेकर मंथन जारी है। भाजपा को इस बार दक्षिण से अध्यक्ष बनाना चाहिए या पूरब या उत्तर से, इन सब सवालों पर मंथन चल रहा है। भाजपा में इस वक्त संगठन महामंत्री, भाजपा युवा मोर्चा, ओबीसी मोर्चा और महिला मोर्चा चारों पद पर दक्षिण भारत के चेहरे हैं। ऐसे में एक वर्ग का मानना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर दक्षिण के चेहरे की गुंजाइश तभी बनेगी, जब अन्य पदों पर दूसरे हिस्से से चेहरे आएं। अगर अध्यक्ष से इतर चारों शीर्ष पदों पर पहले की तरह दक्षिण भारत के चेहरों को मौका मिलेगा तो फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद पूरब, पश्चिम या उत्तर के चेहरे को मौका मिलेगा।
अभी कोई नाम तय नहीं
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि मीडिया भले ही दो साल से तमाम नामों पर अटकलें लगा रहा हो, लेकिन सच तो ये है कि अभी तक कोई भी नाम तय नहीं है। यह भी सच है कि इस मसले पर पार्टी की कुछ बैठकें हुई हैं और संभावित नामों पर चर्चा जरूर हुई है, लेकिन अभी तीन नामों का पैनल भी तय नहीं हुआ है। राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनेगा और क्यों बनेगा, उसके बनने से संगठन और सरकार को कितना फायदा होगा? सबको साथ लेकर चलने की कितनी क्षमता है, संगठनात्मक उपलब्धियां क्या हैं, ऐसे तमाम कसौटियों पर कुछ नामों को कसा जा रहा है। अगले महीने तक अध्यक्ष चुनने की संभावना है। बिहार चुनाव नए अध्यक्ष के नेतृत्व में ही होगा, इस बात की जरूर गारंटी है।
तीन राज्यों के लिए चुनाव अधिकारी नियुक्त
भाजपा ने महाराष्ट्र, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के प्रदेश अध्यक्षों और कार्यसमति सदस्यों के चुनाव के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है। महाराष्ट्र में किरेन रिजिजू, उत्तराखंड में हर्ष मल्होत्रा और पश्चिम बंगाल में रविशंकर प्रसाद को नियुक्त किया है।