यह एक्शन लापरवाह तरीके से सर्वोच्च न्यायालय के सामने हलफनामा दाखिल करने को लेकर हुआ है। बता दें कि मिश्रा अब पटना के पुलिस मुख्यालय में विशेष शाखा के पुलिस अधीक्षक (जी) के पद पर तैनात हैं।
उनका आचरण तब जांच के दायरे में आ गया, जब बिहार राज्य ने 4 अप्रैल, 2025 को आरोपी का समर्थन करते हुए एक हलफनामा दायर किया। दरअसल, आरोपी के खिलाफ अपराध बिहार पुलिस द्वारा दर्ज किया गया था। इसके बाद उचित जांच और अभियोजन के बाद दोषसिद्धि हुई थी। इस तथ्य पर गौर किए बिना आरोपी के समर्थन में हलफनामा दायर किया गया था।
कोर्ट से मांगी थी माफी
19 मई को एक आदेश में, सर्वोच्च न्यायालय ने आईपीएस मिश्रा (तत्कालीन समस्तीपुर एसएसपी) को मामले में प्रतिवादी के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया। इसके साथ उन्हें अपना रुख स्पष्ट करते हुए एक व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने का आदेश दिया। जब 1 अगस्त को मामला फिर से सुनवाई के लिए आया, तो जज अमानुल्लाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने आईपीएस मिश्रा के स्पष्टीकरण पर गौर किया, जिसमें उन्होंने हलफनामे के विवादास्पद अंशों को ‘अनजाने/चूक’ बताया और बिना शर्त माफी मांगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा- बताएं क्यों एक्शन न लिया जाए?
सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के रुख पर आश्चर्य व्यक्त किया। इसके साथ कोर्ट ने तंज कसते हुए कहा कि अगर एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस न्यायालय के प्रति इतनी गंभीरता दिखाई है, तो अन्य न्यायालयों के प्रति उनके दृष्टिकोण को अच्छी तरह समझा जा सकता है। यह देखते हुए कि बिना शर्त माफी पर्याप्त नहीं होगी, न्यायमूर्ति अमानुल्लाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनके आचरण पर न्यायिक संज्ञान लेने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि हम आईपीएस अशोक मिश्रा को कारण बताओ नोटिस जारी करते हैं। वे हमें बताएं कि यह न्यायालय इस मामले पर सख्त रुख क्यों न अपनाए और उनके खिलाफ उचित आदेश क्यों न पारित करे। शीर्ष अदालत ने अधिकारी को 19 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया है।