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नागौर

जिले की साक्षरता दर 47.8 फीसदी, लिंगानुपात भी 950, फिर भी ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बढ़ाओ’ का 40 प्रतिशत बजट खर्च नहीं

जिले में पिछले 8 साल में एक बार भी पूरा खर्च नहीं हो पाया बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत आवंटित बजट, महिला अधिकारिता विभाग में पद खाली होने से भी सरकार की महत्वपूर्ण योजना पर फिर रहा पानी

नागौरJul 24, 2025 / 11:57 am

shyam choudhary

Beti Bachao Beti Padhao completed ten years

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नागौर. जिले की साक्षरता दर 47.8 प्रतिशत है और लिंगानुपात भी 950 है, यानी एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 950 ही है। इसके बावजूद जिले को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के तहत जो बजट आवंटित हो रहा है, उसमें से 60 प्रतिशत ही खर्च हो रहा है, 40 प्रतिशत राशि लैप्स हो रही है। पिछले आठ सालों में जिले को कुल 169.21 लाख रुपए का बजट आवंटित हुआ, जिसमें से महिला अधिकारिता विभाग की ओर से 101.86 लाख ही खर्च किए गए। इसके लिए चाहे विभागीय अधिकारियों की उदासीनता जिम्मेदार रही या फिर विभाग में रिक्त पड़े पद, लेकिन नुकसान जिले की बेटियों का हुआ, जिनको सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाया।
ऐसा नहीं है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के तहत मिलने वाला बजट केवल नागौर जिले में खर्च नहीं हो पा रहा है, बल्कि प्रदेश के भी यही हाल हैं। वर्ष 2019 से 2023 तक ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजनान्तर्गत केन्द्र से राजस्थान को 33.37 करोड़ रुपए का बजट मिला, जिसमें से मात्र 20.20 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाए। जबकि प्रदेश में भी महिला साक्षरता (52.1 प्रतिशत) और लिंगानुपात (928) की स्थिति काफी चिंताजनक है।
आठ सालों में नागौर जिले को आवंटित बजट व व्यय

वित्तीय वर्ष – आवंटित राशि – व्यय राशि

2018-19 – 24.45 – 16.36

2019-20 – 24.93 – 15.76

2020-21 – 9.30 – 9.28
2021-22 – 30 – 25.50

2022-23 – 20 – 4.46

2023-24 – 35.53 – 19.35

2024-25 – 10 – 4.93

2025-26 – 15 – 6.23

कुल – 169.21 – 101.86
नोट : राशि लाखों में।

धरातल पर नहीं हो रहा काम

गौरतलब है वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, राजस्थान का लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 928 महिलाएं था। यह राष्ट्रीय औसत 943 से कम था। इसमें भी राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में लिंगानुपात 914 था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 933 था, यानी शहरों में स्थिति ज्यादा खराब है। चिंता का विषय यह भी है कि राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में 0-6 साल के बच्चों का लिंगानुपात 1,000 लडक़ों पर 874 लड़कियां था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1,000 लडक़ों पर 892 लड़कियां था। दोनों आंकड़ों पर नजर डालें तो यह साफ नजर आ रहा है कि आगामी दिनों में यह और ज्यादा बिगड़ेगा। इसके बावजूद प्रदेश में जिला स्तर पर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजनान्तर्गत आयोजित होने वाली गतिविधियों में कलक्टर की अध्यक्षता में होने वाली जिला टास्क फोर्स कमेटी के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि कई जगह तो केवल कागजी कार्रवाई करके बजट खर्च हो रहा है।
प्रदेश के भी बुरे हाल : चार सालों में राज्य को प्राप्त बजट व व्यय

वित्तीय वर्ष – प्राप्त राशि – व्यय राशि

2019-20 – 8.86 करोड़ – 4.36 करोड़

2020-21 – 8.45 करोड़ – 5.25 करोड़
2021-22 – 8.75 करोड़ – 5.76 करोड़

2022-23 – 7.03 करोड़ – 4.81 करोड़

केवल बैठकों तक सीमित

पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना में जिला स्तर के अधिकारी केवल बैठकों में चर्चा करने व निर्देश देने तक सीमित रहते हैं। कुछ मद तो ऐसे हैं, जिनमें एक रुपया भी खर्च नहीं किया जाता। इनमें निगरानी, मूल्यांकन एवं दस्तावेजीकरण तथा क्षेत्रीय गतिविधियां आयोजन में कई जिलों का बजट खर्च शून्य है।
नहीं पूरे अधिकारी

इस योजना की क्रियान्विति की जिम्मेदारी महिला अधिकारिता विभाग पर है, लेकिन विभाग में कई पद लम्बे समय से रिक्त चल रहे हैं। कई जगह दूसरे विभागों के अधिकारियों को अतिरिक्त चार्ज दिया हुआ है।
आगामी दिनों में पूरा खर्च करेंगे

जिले में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत जो बजट आवंटित होता है, वो पिछले तीन-चार साल से अलग-अलग मॉड्यूल होने से समय पर बजट नहीं मिल पाया। इसके कारण कुछ गतिविधियां आयोजित नहीं हो पाई। आगे हमारा प्रयास रहेगा कि बजट को पूरा खर्च करें।
-जितेन्द्र शर्मा, उप निदेशक, महिला अधिकारिता, नागौर

पूरा बजट खर्च करने का प्रयास करेंगे

जिले में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, फिर भी यदि पूरा बजट खर्च नहीं हो रहा है तो इसकी जानकारी लेकर पूरा खर्च करवाने का प्रयास करेंगे।
– अरुण कुमार पुरोहित, जिला कलक्टर, नागौर

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