विरोध
2017 के बाद यूपी सरकार ने सरकारी पार्षदीय स्कूलों की स्थिति सुधारने की दिशा में कई प्रयास किए। लेकिन संसाधन प्रभावी तरीके से उपयोग करने के उद्देश्य से कम नामांकन वाले स्कूलों को विलयकृत करने की नीति भी लागू की गई। इस नीति के तहत कई स्कूलों को बंद कर आसपास के बड़े स्कूलों में समाहित कर दिया जा रहा था। शिक्षक संघों और अभिभावकों ने इस फैसले का जोरदार विरोध किया। उनका मुख्य विरोध यह था कि विलय के बाद बच्चों को भारी दूरी तय करनी पड़ेगी, जिससे उनकी निरंतर उपस्थिति एवं सुरक्षा प्रभावित होगी। कई जिलों में अभिभावकों ने निर्जन या दूरस्थ स्कूलों का हवाला दे कर विलय की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया।मंत्री संदीप सिंह के निर्देश
लोकभवन में मीडिया को संबोधित करते हुए राज्यमंत्री संदीप सिंह ने कहा कि इस टिप्पणी और विरोधों को ध्यानपूर्वक देखने के बाद उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए हैं ,एक किलोमीटर दूरी वाले स्कूलों को विलय नहीं किया जाएगा।जहां छात्रों की संख्या 50 से अधिक है, उन स्कूलों का विलय स्थगित रहेगा। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले आठ वर्षों में परिषदीय स्कूलों की स्थिति में सुधार हुआ है। 96 प्रतिशत स्कूलों में अब पानी, शौचालय व अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले और उसे बेहतर हालात में शिक्षा प्रदान की जाए।

अन्य राज्यों का अनुभव: मध्य प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा
- संदीप सिंह ने बताया कि यूपी में पेयरिंग कोई नई नीति नहीं है। कई अन्य राज्यों में यह पहले से लागू हो चुकी है:
- राजस्थान: 2014 में लगभग 20,000 स्कूलों का विलय किया गया था।
- मध्य प्रदेश: 2018 में पहले चरण में 36,000 स्कूलों का विलय और 16,000 समेकित परिसरों का निर्माण किया गया।
- उड़ीसा: 2018–19 में लगभग 1,800 विद्यालयों को पेयर किया गया।
- हिमाचल प्रदेश: 2022 और 2024 में चरणबद्ध तरीके से विलिंग की प्रक्रिया पूरी की गई।
- इन राज्यों में संसाधनों का समेकन, टीचर-स्टूडेंट अनुपात व शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के उद्देश्य से यह नीति अपनाई गई थी।
बच्चों एवं अभिभावकों की संवेदनाएँ
विलय-समूह की प्रक्रिया से प्रभावित अभिभावकों ने बताया कि कई बार नये स्कूल उनके घर से 5-7 किमी दूर होते हैं। छोटे बच्चों और लड़कियों के लिए यह नाजुक स्थिति बन जाती है। अभिभावकों ने कहा कि स्कूल का आसपास होना प्राथमिक आवश्यकता है, जिससे उनकी नियमित उपस्थिति और अवसर बाधित न हों। शिक्षक संघों ने भी इस प्रक्रिया की आलोचना की, क्योंकि इससे प्राइमरी स्तर पर शिक्षकों की पोस्टिंग में असंगति पैदा हो रही थी। इससे शिक्षक स्थानांतरण और निजी पर्यटन हेतु समय-समय पर समस्या उत्पन्न हो रही थी।सरकार की सकारात्मक पहल और संतुलन
राज्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि विलय प्रक्रिया में सुधार और सुदृढ़ीकरण जारी रहेगा, लेकिन अभिभावकों की सहज पहुंच और सुविधा को प्राथमिकता दी जाएगी। उदाहरण के लिए:- कोई स्कूल अगर एक किमी दूरी में हो, उसे विलय से मुक्त रखा जाएगा।
- 50 से अधिक विद्यार्थियों वाले स्कूल को भी विलय के दायरे से बाहर रखा गया है।
- विकासशील जिलों में नए सुविधाजनक स्कूल बनाए जाएंगे जिनमें प्राथमिक सुविधाएँ पहले से हों।
- इस नीति सुधार से छोटे तथा सीमांत समुदायों को राहत मिलेगी और सरकार की समेकन परियोजनाओं में संतुलन दिखाई देगा।
डेटा और प्रभाव
इतिहासिक डेटा के आधार पर उत्तर प्रदेश में लगभग 10,000 से अधिक स्कूल विलय रखते थे, जिनमें से कुछ में नामांकन मात्र दर्ज किए गए थे। अनेक स्कूल ऐसे थे जहां 5–10 विद्यार्थी ही नामांकित थे। इन खाली स्कूलों को विलय करने का उद्देश्य था. शिक्षक अनुपात सही रखना, संसाधन गीपतम वितरण, और सुविधाओं का समेकित उपयोग करना। लेकिन, 50 विद्यार्थी या अधिक वाले स्कूलों में नियमित दशा में नामांकन रहता है, जिससे सरकार अब उन्हें विलय से बचाना चाह रही है। इसके पीछे का तर्क यह है कि ऐसे स्कूलों में शिक्षक भी तैनात रहते हैं और स्थानीय समुदाय की सहभागिता अधिक होती है।आगे की प्रक्रिया और सुझाव
- अब जब यह आदेश लागू हो गया है, आगे की कार्यवाही कैसे होगी?
- मंडल स्तरीय शिक्षा अधिकारी (DEO) सभी जिलों में निर्देश जारी करेंगे।
- स्कूलों से डेटा एकत्र कर यह देखेगा कि कौन से स्कूल विलय के दायरे में नहीं आते।
- जिन स्कूलों में छात्र संख्या 50 से अधिक है या जो 1 किमी के भीतर स्थित हैं, उन्हें विलय सूची से हटाया जाएगा।
- नए स्कूलों के निर्माण या उपयोगी क्षेत्रों में अतिरिक्त जनपद स्तर सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।
- शिक्षक संघों एवं अभिभावक प्रतिनिधियों के साथ बैठकर प्रक्रिया की समीक्षा की जाएगी।