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कटनी

राहतभरी खबर: जिले में मिले 401 गिद्ध, सफाई मित्रों के 166 आशियाने

वन विभाग की गिद्ध गणना रिपोर्ट जारी, जैव विविधता संरक्षण की दिशा में अहम कदम, फरवरी माह में हुई गणना से 20 से ज्यादा मिले अधिक गिद्ध

कटनीMay 02, 2025 / 08:27 pm

balmeek pandey

There are 401 vultures in Katni

There are 401 vultures in Katni

कटनी. जिले में वन विभाग द्वारा सोमवार को कराई गई गिद्ध गणना में कुल 401 गिद्ध पाए गए हैं। यह आंकड़ा कटनी वनमंडल के तीन प्रमुख क्षेत्रों कटनी, विजयराघवगढ़ और रीठी से प्राप्त हुआ है। सबसे अधिक 353 गिद्ध विजयराघवगढ़ में गिने गए, जबकि कटनी में 39 और रीठी में 9 गिद्धों की उपस्थिति दर्ज की गई। इस गणना में 298 वयस्क और 103 अवयस्क गिद्ध शामिल हैं। साथ ही कुल 166 घोंसले भी पाए गए, जिनमें 147 घोंसले अकेले विजयराघवगढ़ में स्थित हैं। ये सभी घोंसले चट्टानों और स्मारकों पर मिले, जबकि एक भी घोंसला पेड़ों पर नहीं पाया गया। जिले में गिद्धों की बढ़ती संख्या पर्यावरण संरक्षण के लिए सकारात्मक संकेत है। वन विभाग द्वारा की गई यह गणना न केवल संरक्षण नीति के लिए दिशा तय करती है, बल्कि आम नागरिकों को भी इस अभियान से जुडऩे की प्रेरणा देती है।

संरक्षण की दिशा में उम्मीद की किरण

गणना से यह राहत की बात सामने आई है कि जिले में गिद्धों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। फरवरी में हुई तीन दिवसीय गणना में 382 गिद्ध पाए गए थे, जबकि अब यह संख्या बढकऱ 401 हो गई है। गिनती में शामिल कई गिद्ध देशी प्रजाति इंडियन लॉन्ग बिल्ड वल्चर के हैं। जिले में 2016 से गिद्धों की गणना की जा रही है। एक समय प्रदेश में 6,999 गिद्ध थे, लेकिन अब इनकी संख्या में गिरावट आई है।

ऐसे की गई गणना

गणना के दौरान सुबह 7 से 8 बजे के बीच घोंसलों में बैठे गिद्धों को ही गिना गया। विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की टीमों को अलग-अलग क्षेत्रों में तैनात किया गया था। ऑनलाइन फॉर्म भरकर जानकारी वन बिहार नेशनल पार्क भेजी गई। इसके अतिरिक्त तीन स्तरों पर प्रपत्र तैयार कर रेंज ऑफिस, डिवीजन ऑफिस और भोपाल भेजे गए। इस साल यह गणना दो बार की जानी थी। फरवरी के बाद 29 अप्रेल को ग्रीष्मकालीन गणना कराई गई, जिससे यह पता चला कि जिले में स्थायी गिद्धों की वास्तविक संख्या कितनी है।
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गिद्धों के लिए घातक साबित हुईं ये दवाएं

समाजसेवी मोहन नागवानी ने बताया कि पशु चिकित्सा में उपयोग की जा रही कुछ दवाएं गिद्धों के लिए प्राणघातक सिद्ध हुई हैं। इनमें प्रमुख रूप से डाइकलोफेनिक जो 5 जुलाई 2008 से प्रतिबंधित है। एसिकलोफेनिक दवा 31 जुलाई 2023 से प्रतिबंधित है। इसी प्रकार कीटोप्रोफेन 31 जुलाई 2023 से प्रतिबंधित है। निमोशिड पर प्रतिबंधित 30 दिसंबर 2024 से लगा है। हालांकि प्रतिबंध के बावजूद ये दवाएं अब भी बाजार में उपलब्ध हैं। विशेषज्ञों ने आम नागरिकों, पशु चिकित्सकों, गौ-रक्षकों और किसानों से इन दवाओं के तत्काल उपयोग पर रोक लगाने की अपील की है। अब बाजार में ‘मिलासिके वल्चर’ नामक सुरक्षित दवा उपलब्ध है, जो गिद्धों के लिए हानिकारक नहीं है।

गिद्धों की विविधता और प्रदेश में स्थिति

दुनिया भर में कुल 23 प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं, जिनमें से भारत में 9 और मध्यप्रदेश में 7 प्रजातियां मौजूद हैं। इनमें से 4 स्थानीय प्रजातियां इंडियन लॉन्ग बिल्ड वल्चर (देशी), चमर गिद्ध, गोबर गिद्ध, इजिप्शियन गिद्ध शामिल हैं। 3 प्रवासी प्रजातियां हैं जिसमें रेड हेड (राज गिद्ध), हिमालयन ग्रेफान वल्चर, यूरोपीय ग्रेफान वल्चर, सेनेरियस वल्चर (काला गिद्ध) शामिल हैं।
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पर्यावरण संतुलन में गिद्धों की अहम भूमिका

गिद्धों को प्रकृति का सफाईकर्मी कहा जाता है, क्योंकि ये मृत जानवरों के शव खाकर रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया और विषाणुओं का प्रसार रोकते हैं। 1985 में देश में गिद्धों की संख्या लगभग 5 करोड़ थी, जो घटकर अब महज 70 हजार रह गई है। इनकी कमी से आवारा श्वानों की संख्या, मानवों पर हमलों और बीमारियों में वृद्धि हुई है। एंटी-रेबीज वैक्सीनेशन पर करोड़ों रुपए का अतिरिक्त खर्च आ रहा है। गिद्धों की उपस्थिति से न सिर्फ जैव विविधता, बल्कि स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था दोनों की रक्षा होती है।

डीएफओ ने कहीं यह बात


गौरव शर्मा, डीएफओ ने कहा कि जिले में गिद्धों की गणना कराई गई है। जिले के तीन वन परिक्षेत्र विजयराघवगढ़, रीठी व कटनी में गिद्ध पाए गए हैं। 401 गिद्ध 166 घोंसलों में पाए गए हैं। फरवरी माह की तुलना में 20 गिद्ध अधिक हैं, जो सफाई मित्रों की बढ़ती संख्या राहत के संकेत हैं।

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