कोरोना की दूसरी लहर में पुष्करणा ब्राह्मण समाज की ओर से जगाणी भवन में स्थापित आवासीय शिविर में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। वे सुबह-शाम शिविर में जाकर मरीजों की जांच करते और समाज के हर वर्ग के मरीजों को उपचार उपलब्ध करवाते। डॉ. संजय ने बताया कि उनके चिकित्सकीय जीवन में यह समय सबसे चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन यही समय उन्हें सबसे अधिक सीख भी दे गया।
उनकी नजर में सबसे बड़ी चुनौती यह रही कि तमाम प्रयासों के बावजूद कुछ मरीजों को नहीं बचाया जा सका। कई बार समय पर इलाज मिलने और स्थिति नियंत्रण में होने के बावजूद मरीजों की तबीयत अचानक बिगड़ जाती और वे दुनिया छोड़ जाते। ऐसे अनुभवों ने उन्हें चिकित्सकीय विज्ञान की सीमाएं समझने पर मजबूर कर दिया।
डॉ. संजय का मानना है कि डॉक्टर का काम केवल इलाज करना नहीं होता, बल्कि मरीज का मनोबल बढ़ाना भी उतना ही जरूरी होता है। कोरोना काल में उन्होंने इसी सोच को अपना मंत्र बनाकर कार्य किया और सैकड़ों लोगों को नया जीवन देने में सफलता पाई।