Kargil Vijay Diwas 2025: करगिल युद्ध में जीत की कीमत कई वीरों की शहादत से चुकाई। वे लौटे नहीं, लेकिन उनकी यादें आज भी घरों के आंगन में गूंजती हैं और उनके परिजन के दिल में समाई हैं। शहीदों के परिजन आज भी उनकी चीजों को संजोकर रखते हैं। किसी के पास अंतिम पत्र है तो किसी के पास शहादत स्थल की मिट्टी सहेज रखी है।
परबतसर के हरनावां गांव के शहीद सुबेदार मंगेज सिंह राठौड़ के बेटे महेंद्र सिंह बताते हैं कि लड़ाई उनके लिए अधूरी कहानी है। पापा जब जा रहे थे, उन्होंने मुझे एक घड़ी दी थी। आज तक वो नहीं पहनी। वो उनकी आखिरी निशानी है। पापा ने चिट्ठी में लिखा था कि 12वीं कक्षा में फर्स्ट आओगे तो बाइक दिलवाऊंगा। उनका वादा अधूरा रह गया। उनकी मां संतोष कंवर ने शव नहीं मिलने तक 64 दिन उपवास रखा।
शहादत की मिट्टी को शो-केस में सहेज रखा
जयपुर के मालवीय नगर निवासी शहीद कैप्टन अमित भारद्वाज की मां सुशीला शर्मा और बहन सुनीता भारद्वाज ने उनकी स्मृतियों को सहेज रखा है। उनकी वर्दी, बूट, किताबें, मेडल, यहां तक कि जिस पोस्ट पर शहादत मिली, वहां की मिट्टी भी एक डिब्बी में रखी हुई है। सुनीता बताती हैं, हमने उनकी वर्दी के लिए एक खास शो-केस बनवाया है, जिसमें उनकी यूनिफॉर्म हर समय सजी रहती है।
जाने से पहले खिंचवाया था फोटो
खेतड़ी के पपुरना गांव निवासी लांस नायक शहीद भगवान सिंह के बेटे कमलदीप सिंह बताते हैं, मैं 10 साल का था जब पापा कारगिल युद्ध में शहीद हुए। मुझे बहुत कुछ याद नहीं, लेकिन पापा और मम्मी के साथ खिंचवाया हुआ फोटो आज भी मेरी सबसे बड़ी दौलत है। उन्होंने कहा कि, पापा शहीद भगवान सिंह 27 राजपूत रेजीमेंट में थे और कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय में बलिदान दिया।
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