सवाल यह है कि क्या गारंटी है कि ऐसे हादसे फिर नहीं होंगे। सरकार हादसे से चेतती जरूर है, लेकिन कुछ समय बाद अफसर फिर सो जाएंगे। सरकारी व्यवस्था फिर पुराने ढर्रे पर आ जाएगी। सरकारी सिस्टम के भरोसे नहीं रहें। स्कूली बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद लें।
कमेटियों में शामिल हों अभिभावक
स्कूल भवनों की जर्जर हालत की मॉनिटरिंग के लिए जिला शिक्षा अधिकारी के नेतृत्व में कमेटियां बनी हैं। कमेटी तय करती हैं कि स्कूल भवन बच्चों के लिए सुरक्षित है या नहीं। ऐसे में इन कमेटियों में अभिभावकों को भी शामिल करना चाहिए। ताकि अभिभावक स्कूल भवनों को लेकर अपने सुझाव दे सकें।
स्कूल में यह जाकर देखें आप
आपका बच्चा जिस स्कूल में जा रहा है, उस स्कूल का भवन कैसा है। बच्चा जिस कमरे में बैठ रहा है, उस कक्षा की हालत कैसी है। स्कूल का टॉयलेट कैसा है। बिजली है या नहीं। पीने के पानी की क्या व्यवस्था है। पढ़ाई हो रही है या नहीं, शिक्षकों की कमी तो नहीं। इन सभी का ध्यान खुद अभिभावकों को रखना होगा।
जिला कलेक्टर से सवाल करें
अगर अव्यवस्था है तो शिक्षकों, संस्था प्रधानों और जिला कलेक्टर से सवाल करें। क्योंकि बच्चा आपका है और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी आपको ही लेनी होगी। झालावाड़ हादसे में खामी सामने आई कि जिस स्कूल में हादसा हुआ उसे जर्जर भवनों की सूची में शामिल नहीं किया गया। ऐसे में जरूरी है कि अभिभावक महीने में एक बार बच्चे के स्कूल का दौरा करें। खामियों की रिपोर्ट बनाएं और जिला कलेक्टर तक पहुंचाएं।