2024 में जलस्तर 6 मिमी बढ़ा
2024 में मानसून से पहले राज्य का औसत जलस्तर 28.83 मीटर की गहराई पर था, जो अब घटकर 23.01 मीटर हो गया है यानी पूर्वी राजस्थान में वर्षा का स्तर 588.7 मिमी तक पहुंच गया, जबकि सामान्य औसत 303 मिमी होता है। वहीं, पश्चिमी राजस्थान में 273 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य तौर पर 147 मिमी होती है। मानसून के 4 महीनों का विश्लेषण करें तो जून में 91%, जुलाई में 101%, अगस्त में 221% और सितंबर में 191% बारिश दर्ज की गई यानी हर महीने ने औसत से अधिक बारिश दी।
भारी बारिश का सीधा असर ग्राउंड वाटर लेवल पर पड़ा
इस भारी बारिश का सीधा असर ग्राउंड वाटर के लेवल पर पड़ा है। जलस्तर में औसतन 5.82 मीटर की बढ़त हुई है। यह आंकड़ा राजस्थान ग्राउंडवॉटर डिपार्टमेंट की पोस्ट-मानसून रिपोर्ट 2024 में सामने आया है। अब 2025 में जुलाई की बारिश को देखकर भी मानसून मेहरबान लगता है। जानकारों की मानें तो सिर्फ जुलाई की बारिश से जलस्तर में 3 से 4 मिमी की बढ़ोतरी होगी।
75% भूजल मानसून के 4 महीनों में ही आता है
वाटर प्रीजरवेशन के लिए काम कर रहे डॉ. विवेक अग्रवाल बताते हैं कि भारत में ग्राउंड वाटर का प्रमुख स्रोत मानसून की बारिश ही है। 75% भूजल मानसून के 4 महीनों में ही आता है। भूजल के रिचार्ज को प्रभावित करने में अनेक तत्व निर्णायक होते हैं, जिसमें सर्वाधिक क्षेत्र की पारिस्थितिकी, चट्टानें व मिट्टी अपनी भूमिका अदा करती है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों की संरचना भी इसमें अपनी भूमिका अदा करती है। शहरों में बन रही सीमेंट की सड़कें भविष्य में जल के भूमि स्रोतों तक पहुचने में बाधक होंगी। साथ ही समुचित निकास व्यवस्था का ना होना भी बाधक रहता है। भूजल के स्रोत के रूप में बारिश 67% व अन्य स्रोत जैसे नदी, हिमखंड, समुद्र आदि 33% योगदान देते हैं।
जलस्तर में सबसे अधिक बढ़त सवाई माधोपुर में
2024 में जलस्तर में सबसे अधिक बढ़त सवाई माधोपुर के खाली धाई में 36.35 मीटर की रही, जबकि सबसे कम बढ़त चूरू के धीरवास में 0.01 मीटर रही थी। पश्चिमी राजस्थान के 28% स्टेशनों पर जलस्तर में 2 मीटर से कम बढ़त दर्ज की गई, जबकि 34.2% स्टेशनों खासकर पूर्वी जिलों में 4 मीटर से ज्यादा जलस्तर उछला था।