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Thai Magur: क्या सच में इस मछली को खाने से होता है कैंसर, जानिए कैंसर के डॉक्टर ने क्या कहा

Thai Magur: थाई मागुर एक मांसाहारी मछली है। इसे “थाई मागुर” या क्लैरियस गैरीपिनस कहा जाता है। हाल के वर्षों में भारत में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है, क्योंकि शोध में पाया गया है कि इससे कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। जानिए कैंसर विशेषज्ञ से इससे जुड़ी पूरी जानकारी।

भारतJul 29, 2025 / 04:52 pm

MEGHA ROY

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Thai Magur: भारत के तटीय और नदी किनारे बसे इलाकों में मछली-चावल एक आम और पसंदीदा भोजन है। हालांकि कई प्रजातियां पाई जाती हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि हम ऐसी मछलियों का चयन करें जो सेहत के लिए सुरक्षित हों।
हाल के वर्षों में एक विशेष प्रकार की मछली जिसे थाई मागुर या क्लैरियस गैरीपिनस कहा जाता है । इसको लेकर स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ी गंभीर चिंताएं सामने आई हैं।अब थाई मागुर मछली को लेकर लंबे समय से यह दावा किया जा रहा है कि इसका सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। लेकिन क्या इन दावों में कोई सच्चाई है? क्या सच में थाई मागुर मछली कैंसर का कारण बन सकती है? इस मुद्दे पर कैंसर सर्जन डॉ. जयेश शर्मा ने इससे जुड़ी कई अहम जानकारियां दी हैं। आइए जानते हैं उनकी राय।

क्या सच में मागुर मछली खाने से बढ़ता है कैंसर का खतरा? – कैंसर एक्सपर्ट की राय

मागुर मछली खुद कैंसर का कारण नहीं बनती। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब इस मछली को गंदे नालों, सीवर और ऐसे स्थानों पर पाला जाता है जहां केमिकल कचरा मौजूद होता है। ऐसे हालात में इस मछली के शरीर में हेवी मेटल्स और अन्य कैंसरकारी (Carcinogenic) रसायनों के जमा होने की आशंका रहती है।अगर ऐसी मछली बिना किसी जांच के सीधे खाने में आ जाए, तो उसमें कई जहरीले तत्व हो सकते हैं, जो डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं। इसलिए हमेशा लाइसेंस प्राप्त फार्म से खरीदी गई मछली ही खाएं। नालों और तालाबों से लाई गई सस्ती मछली से बचें।
अगर आप बच्चों, बुज़ुर्गों या रोगियों को मागुर मछली खिला रहे हैं, तो बहुत कम मात्रा में दें और अगर मछली की गंध या रंग अजीब लगे, तो उसे बिल्कुल न खाएं। अगर मछली खानी हो, तो रोहू, कतला जैसी साफ और सुरक्षित मछलियों को प्राथमिकता दें।

भारत में कब लगा बैन?

वैज्ञानिक रूप से Clarias gariepinus के नाम से जानी जाने वाली थाई मागुर मछली 3 से 5 फीट तक लंबी हो सकती है। इसमें खास बात यह है कि यह हवा में भी सांस ले सकती है और कुछ समय के लिए जमीन पर भी जीवित रह सकती है। यह क्षमता इसे अन्य मछलियों से अलग बनाती है।भारत सरकार ने साल 2000 में थाई मागुर के पालन और प्रजनन पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बावजूद कई जगहों पर यह मछली अवैध रूप से बेची जा रही है।

क्यों खतरनाक है थाई मागुर?

कम लागत, लेकिन ज्यादा खतरा
थाई मागुर की लोकप्रियता का कारण इसका सस्ता पालन और बाजार में उच्च मांग है। लेकिन इसका मांसाहारी स्वभाव इसे पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक बना देता है, क्योंकि यह छोटी और देशी प्रजातियों की मछलियों को खा जाती है।
देशी मछलियों के लिए बड़ा खतरा
रिसर्च में पाया गया है कि थाई मागुर के कारण भारत की देशी मछली प्रजातियों की आबादी में 70% तक की गिरावट आई है। इसकी आक्रामक प्रवृत्ति और तेज़ प्रजनन क्षमता देशी जलीय जीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है।
पर्यावरणीय असंतुलन की मुख्य वजह
ये मछली जहां भी पनपती है, वहां के प्राकृतिक जलीय संतुलन को बिगाड़ देती है। इसके चलते कई तालाबों और नदियों में देशी मछलियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक
यह मछली अक्सर गंदे पानी में पाली जाती है और कई मामलों में इसमें हानिकारक केमिकल्स और जीवाणु पाए गए हैं। इसके सेवन से फूड प्वाइजनिंग या पेट से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

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