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Rabies Scare : रेबीज का खतरा या दिल की बीमारी? होसूर में 24 साल के युवक की मौत से दहशत, जानिए रैबीज PEP के लिए दिशानिर्देश

Rabies Scare or Heart Condition : तमिलनाडु के होसुर में 24 वर्षीय युवक की मौत से रैबीज का डर फैल गया है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मौत का कारण रैबीज नहीं, बल्कि दिल की बीमारी हो सकती है। सच्चाई जानने के लिए जांच जारी है।

भारतJul 11, 2025 / 11:18 am

Manoj Kumar

Rabies Scare or Heart Condition

Rabies Scare : रेबीज का खतरा या दिल की बीमारी? होसूर में 24 साल के युवक की मौत से दहशत, जानिए रैबीज PEP के लिए दिशानिर्देश (फोटो सोर्स: AI Image@Gemini)

Rabies Scare or Heart Condition : तमिलनाडु के होसुर में एक 24 वर्षीय युवक की मौत ने पूरे इलाके में रैबीज के डर (Rabies Scare) का साया फैला दिया है। हर कोई सोच रहा है कि क्या यह जानलेवा बीमारी फिर से अपने पैर पसार रही है? लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस बात से इनकार कर रहे हैं और कह रहे हैं कि मौत का कारण कुछ और ही है। आखिर क्या है सच्चाई? आइए जानते हैं…

क्या हुआ एडविन के साथ?

24 साल के वी. एडविन, जो थिन्नूर गांव के रहने वाले थे और एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। बुधवार को अचानक बीमार पड़ गए। उन्हें बदन दर्द, गले में दर्द और बुखार था। पहले वे कक्काडसम के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) गए, जहां उन्हें शुरुआती इलाज मिला और वे घर लौट आए। लेकिन शाम होते-होते उनकी हालत बिगड़ गई। उन्हें सांस लेने और निगलने में दिक्कत होने लगी जिसके बाद उन्हें एक प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया। यहां उनकी हालत ‘संदिग्ध रैबीज’ (Suspected Rabies) के तौर पर दर्ज की गई हालांकि एडविन को किसी कुत्ते के काटने का कोई इतिहास नहीं था।
इसके बाद एडविन को एक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने भी उनकी हालत को ‘संदिग्ध रैबीज’ बताया और यह भी दर्ज किया कि उन्हें कुत्ते के काटने का इतिहास था। यहीं से उन्हें होसुर के सरकारी अस्पताल रेफर कर दिया गया।

असली वजह रैबीज नहीं, बल्कि दिल की बीमारी (Rabies Scare or Heart Condition)

Rabies Scare or Heart Condition
Rabies Scare or Heart Condition : असली वजह रैबीज नहीं, बल्कि दिल की बीमारी (फोटो सोर्स : Freepik)
होसुर पहुंचने पर एडविन का इलाज शुरू हुआ लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका और गुरुवार को उनकी मौत हो गई। इसके बाद रैबीज का डर और भी बढ़ गया। लेकिन कृष्णगिरी के जिला कलेक्टर सी. दिनेश कुमार और जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जी. रमेश कुमार ने रैबीज की आशंका को खारिज कर दिया। डॉ. रमेश कुमार ने थाली के प्राइवेट अस्पताल की ईसीजी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि एडविन को ‘लेफ्ट वेंट्रिकुलर हाइपरट्रॉफी’ (LVH) और ‘पल्मोनरी एडिमा’ था। LVH एक ऐसी स्थिति है जिसमें दिल के बाएं वेंट्रिकल की मांसपेशियां मोटी हो जाती हैं जिससे रक्त को प्रभावी ढंग से पंप करने में दिक्कत होती है।
प्राथमिक जांच में स्वास्थ्य अधिकारियों ने रैबीज से मौत की बात को सिरे से खारिज कर दिया है। हालांकि आगे की पुष्टि के लिए एडविन के बायो-सैंपल को NIMHANS, बेंगलुरु भेजा गया है, ताकि RT-PCR टेस्ट किए जा सकें। यह भी खबर है कि थाली PHC के डॉक्टर पर गलत निदान के लिए विभागीय कार्रवाई की जा सकती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी लेफ्ट वेंट्रिकुलर हाइपरट्रॉफी और पल्मोनरी एडिमा की पुष्टि हुई है।

सावधान रहें, लेकिन डरें नहीं

एडविन की मौत के बाद होसुर सरकारी अस्पताल में उनके संपर्क में आए लगभग 20 लोगों को एहतियात के तौर पर एंटी-रैबीज वैक्सीन (ARV) दी गई जिनमें पुलिसकर्मी, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी और कुछ रिपोर्टर भी शामिल थे।
यह घटना एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है: आखिर रैबीज के निदान में इतनी गलतियां क्यों होती हैं?

रैबीज के टीके के बावजूद मौतें: कहां हो रही है चूक?

हाल ही में केरल में रैबीज के टीके लगने के बावजूद दो बच्चों की मौत ने पूरे देश में चिंता बढ़ा दी है। सार्वजनिक स्वास्थ्य निदेशालय (DPH) और निवारक चिकित्सा विभाग ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि स्वास्थ्यकर्मियों को कुत्ते के काटने की श्रेणी को सही ढंग से पहचानने और एंटी-रैबीज वैक्सीन (ARV) के साथ-साथ रैबीज इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) को सही तरीके से देने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
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क्या हैं गलतियों के मुख्य कारण?

DPH के निदेशक टी.एस. सेलविनयागम ने जिला और शहर के स्वास्थ्य अधिकारियों को भेजे गए एक संदेश में स्पष्ट किया है कि रैबीज पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (PEP) तभी जीवन रक्षक होता है जब इसे सही ढंग से किया जाए। इसमें घाव की उचित देखभाल, समय पर और पूर्ण टीकाकरण, आवश्यकता पड़ने पर RIG का उपयोग और टीकों का सही तापमान पर भंडारण महत्वपूर्ण है। उन्हें यह जानना चाहिए कि रैबीज एक घातक वायरल संक्रमण है जो मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और एक बार लक्षण दिखाई देने पर यह लगभग हमेशा घातक होता है जिसके लिए PEP को सही और तुरंत प्रशासित किया जाना चाहिए।

मौत के संभावित कारण, टीके लगने के बावजूद:

PEP शुरू करने में देरी: अगर PEP शुरू करने में कुछ दिनों की भी देरी होती है खासकर अगर घाव चेहरे या सिर के पास गहरे हों तो टीका बीमारी को नहीं रोक सकता।
टीके की खुराक छूटना या देरी: खुराक का छूटना या गलत समय पर देना।

गलत तरीके से टीका लगाना: गलत इंजेक्शन साइट या प्रशासन का गलत तरीका।

घावों की अनुचित सफाई: घाव को साबुन और पानी से कम से कम 15 मिनट तक अच्छी तरह धोना सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम है।
RIG का न देना (श्रेणी III के मामलों में): अगर बच्चे को गहरे या खून बहने वाले घाव थे तो ARV के साथ RIG देना चाहिए। RIG घाव वाली जगह पर वायरस को बेअसर करता है खासकर शुरुआती दिनों में जब तक टीके से एंटीबॉडी विकसित नहीं होते। RIG के बिना वायरस तंत्रिका तंत्र में फैल सकता है भले ही बाद में ARV दिया जाए।
टीके का अनुचित भंडारण: निर्माता द्वारा अनुशंसित तापमान पर टीके का भंडारण न करना।

बच्चों में अधिक जोखिम: बच्चों में अपरिपक्व प्रतिरक्षा प्रणाली कम प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया कर सकती है जिससे उन्हें अधिक जोखिम होता है।

रैबीज PEP के लिए दिशानिर्देश: (Guidelines for Rabies PEP)

Guidelines for Rabies PEP
Guidelines for Rabies PEP : (फोटो सोर्स : Freepik)
श्रेणी I: जानवरों को छूना/खिलाना, बिना त्वचा टूटे चाटना – PEP की आवश्यकता नहीं।

श्रेणी II: छोटे खरोंच/घर्षण बिना खून बहने के – केवल टीका।
श्रेणी III: ट्रांसडर्मल काटने या खरोंच, टूटी हुई त्वचा पर चाटना – टीका और RIG दोनों।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि रैबीज एक गंभीर बीमारी है, लेकिन सही जानकारी और त्वरित कार्रवाई से इससे बचा जा सकता है। स्वास्थ्यकर्मियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और आम जनता को भी रैबीज के लक्षणों और बचाव के तरीकों के बारे में जागरूक होना चाहिए।

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