मास्टर प्लान के तहत चल रही विकास परियोजनाएं
दरअसल, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र में कुल 264 गांव शामिल हैं। इनमें से 124 गांव ग्रेटर नोएडा फेज-1 और 140 गांव फेज-2 के अंतर्गत आते हैं। यह क्षेत्र अधिसूचित घोषित है, जहां मास्टर प्लान के तहत योजनाबद्ध विकास की प्रक्रिया चल रही है। विकास प्राधिकरण औद्योगिक, आवासीय और संस्थागत श्रेणियों में भूमि का अधिग्रहण कर सेक्टर विकसित करता है। ऐसे क्षेत्र में बिना अनुमति किसी भी प्रकार का निर्माण गैरकानूनी है, लेकिन इन गांवों में बिल्डर किसानों की खेतिहर जमीनों को आवासीय रूप में रजिस्ट्री करवा रहे हैं और तेजी से अवैध कॉलोनियां विकसित हो रही हैं।
भूमाफिया के सहारे फल-फूल रही हैं अवैध कॉलोनियां
प्राधिकरण को हाल ही में जानकारी मिली है कि अधिसूचित क्षेत्र की कई ऐसी जमीनें जो अब तक अधिग्रहित नहीं हुई हैं। उनके मालिक बिना अनुमति के अवैध रूप से कॉलोनियां काटकर छोटे भूखंड (50 से 60 गज) बेच रहे हैं। भूमाफिया और निजी बिल्डर किसानों से साठगांठ कर इस काम को अंजाम दे रहे हैं। स्थिति तब और गंभीर हो जाती है, जब इन भूखंडों की रजिस्ट्री स्टांप एवं निबंधन कार्यालय में आवासीय प्रयोजन से कर दी जाती है। इस प्रक्रिया से न सिर्फ खरीददार भ्रमित होते हैं, बल्कि कृषि भूमि की रजिस्ट्री आवासीय रूप में होने के कारण उन पर बैंकों से लोन भी मिल जाता है। लोग यह मान बैठते हैं कि उनकी खरीदी गई संपत्ति वैध है। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत होती है।
नोएडा वेस्ट सबसे ज्यादा प्रभावित
ग्रेटर नोएडा वेस्ट के गांव अवैध कॉलोनियों के हॉटस्पॉट बन चुके हैं। यहां सबसे अधिक ऐसे भूखंड बेचे जा रहे हैं जो किसी भी वैध योजना या स्वीकृति के दायरे में नहीं आते। मास्टर प्लान के तहत प्राधिकरण ही अधिकृत विकास कर सकता है, लेकिन भूमाफिया मास्टर प्लान को दरकिनार कर भोले-भाले लोगों को गुमराह कर रहे हैं। इससे न सिर्फ आम आदमी की पूंजी डूब रही है, बल्कि प्राधिकरण को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
महाप्रबंधक ने उठाया मामला
प्राधिकरण के महाप्रबंधक परियोजना एके सिंह ने HT को बताया कि उन्होंने स्टांप एवं निबंधन विभाग को पत्र भेजकर अपील की है कि फेज-1 और फेज-2 के गांवों में रजिस्ट्री केवल खसरा खतौनी में दर्ज भूमि उपयोग की श्रेणी के अनुसार ही की जाए। इससे न केवल अवैध कॉलोनियों की रोकथाम होगी। बल्कि जनसंपत्ति की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। यानी अब किसान अपनी खेतिहर जमीन को आवासीय भूमि में रजिस्ट्री नहीं करा सकेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अवैध निर्माणों को गिराने में प्राधिकरण और पुलिस प्रशासन का समय और संसाधन दोनों ही बर्बाद होते हैं। यदि शुरुआती स्तर पर ही रजिस्ट्री पर रोक लग जाए तो ऐसे मामलों की संख्या में भारी कमी आ सकती है।